आर्थिक आधार पर आरक्षण का लॉंलीपौप

क्या आर्थिक आधार पर आरक्षण भाजपा को लाभ दिला पाएगा?

आज दोपहर बाद खबरिया चैनलों की न्यूज़पट्टी पर अचानक ये खबर चलने लगी कि मोदी सरकार ने ये निर्णय लिया है कि स्वर्णों के लिए आर्थिक आधार पर 10% आरक्षण दिया जाएगा। स्वाभाविक था कि तुरत-फुरत में सोशल-मीडिया पर इसकी धूम मच गई और यह लिखे जाने तक टीवी चैनल पूरी तरह इस घोषणा के रंग मे रंग गए हैं। राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएँ आना शुरू हो गई हैं और स्वाभाविक है कि कॉंग्रेस पार्टी आर्थिक आधार पर आरक्षण की घोषणा से थोड़ा अचकचा गई लगती है। कॉंग्रेस ने प्रैस कॉन्फ्रेंस करके तमाम पृष्ठभूमि बताते हुए और शासन की अन्य ढेरों कमियाँ दिखाते हुए सरकार के इस “नीतिगत निर्णय” का समर्थन किया है। संभवत: उनके पास और कोई चारा भी ना था। इसी प्रेस कॉन्फ्रेंस उन्होने रोजगार के मुद्दे पर जमकर सरकार की आलोचना तो कि लेकिन उन्हें बार बार ये स्पष्ट करना पड़ा कि उनकी पार्टी मोदी सरकार द्वारा औचक की गई इस घोषणा का पूरा समर्थन करती है।

     राजनीतिक विश्लेषक जिनकी प्रतिक्रियाएँ अभी सोशल मीडिया पर देखने को मिली हैं, इस बात पर एकमत हैं कि मोदी सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले स्वर्ण नौजवानों की तरफ आर्थिक आधार पर आरक्षण के रूप में एक लॉंलीपौप फेंका है। कहने की आवश्यकता नहीं कि भाजपा को उम्मीद है कि बेरोज़गारी के मुद्दे पर पूरी तरह विफल मोदी सरकार से नाराज़ स्वर्ण युवक जो पिछले लोकसभा चुनावों मे खुलकर नरेन्द्र मोदी  के समर्थन में उतरा था, एक बार फिर उनके साथ खड़ा हो सकता है, खासतौर पर तब जब कि राहुल गांधी अभी भी अपने आपको सर्व-स्वीकार्य प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप मे स्थापित नहीं कर पाये हैं।

     आर्थिक आधार पर आरक्षण के इस नए प्रस्ताव (जिसके बारे में ये कहा जा रहा है कि इसे लागू करने के लिए आवश्यक संविधान संशोधन का प्रस्ताव कल ही संसद मे पेश कर दिया जाएगा) में आगे आने वाले दिनों में कई पेंच आएंगे जिनके बारे मे सरकार को निश्चित तौर पर जानकारी होगी किन्तु इस कदम का पूरा राजनीतिक लाभ लेने के लिए सरकार इसे आम चुनावों से चार महीने पहले लेकर आ गई है। सभी को मालूम है कि सरकार के इस कदम को सीधे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जाएगी और पहले के अनुभव के आधार पर आसानी से कहा जा सकता है कि सरकार का ये निर्णय अदालतों मे नहीं टिकने वाला। स्पष्ट है कि सरकार को इसकी चिंता नहीं है, उनकी चिंता बस इतनी भर है कि विगत पाँच वर्षों मे अगर नौजवानों मे भाजपा के प्रति कोई खास बेरुखी आई है तो आरक्षण का ये प्रस्ताव उनके घावों पर मरहम का काम कर जाये।

     भाजपा के रणनीतिकारों की इस निर्णय के पीछे कुछ ऐसी गहरी सोच है जिसे लोग अभी बिलकुल नहीं देख पा रहे हों तो बात अलग है लेकिन इस स्तंभकार की नज़र में इस निर्णय से भाजपा को कोई लाभ नहीं होने वाला। पहली बात तो ये कि भारत का वोटर बहुत परिपक्व है और वह चुनावों से पहले की जाने वाली ऐसी घोषणाओं के खोखलेपन से अच्छी तरह वाकिफ है। याद दिलाने की आवश्यकता नहीं कि काँग्रेस ने भी आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के नाम पर एक कमीशन का गठन किया था और लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जाट आरक्षण की भी घोषणा की थी किन्तु तब लोगों ने मोदी जी के लिए मन बना रखा था तो वो सब घोषणाएँ धरी की धरी रह गईं। वैसे भी भाजपा के जो प्रतिबद्ध टाइप वोटर हैं, वह तो थोड़ा-बहुत नाराज़ होते हुए भी उसके पक्ष मे वोट करने जाएँगे ही लेकिन पार्टी के रणनीतिकारों ने क्या इस पर विचार किया कि उसके इस कदम से दलित और पिछड़े वर्ग के लोग भाजपा के खिलाफ ज़्यादा शिद्दत से गोलबंद हो सकते हैं?

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