बिरसा मुंडा संग्रहालय

बिरसा मुंडा आदिवासियों के शोषण के खिलाफ संघर्ष के प्रतीक पुरुष हैं

झारखंड की चिट्ठी

नीरज पाठक

   

झारखंड की चिट्ठी की शुरुआत के लिए बिरसा मुंडा को समर्पित संग्रहालय शायद सबसे सार्थक विषय हो। पाठकों को ध्यान होगा कि झारखंड देश का अठाइसवां राज्य बना था । छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड का गठन 1 नवंबर, 2000 को हुआ लेकिन झारखंड के नेताओं ने अमर शहीद बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर को औपचारिक रूप से झारखंड के गठन का आग्रह किया था जिसे केंद्र ने स्वीकार कर लिया। इस तरह लगभग 18 वर्ष पूर्व बिहार के जनजातीय बहुल इलाकों को मिलाकर नया राज्य अस्तित्व में आया।

आदिवासियों के संघर्ष के प्रतीक पुरुष बिरसा मुंडा झारखंड के सबसे मूल्यवान  प्रतीकों में शामिल हैं। राजधानी रांची में बिरसा मुंडा जेल को बिरसा मुंडा संग्रहालय के रूप में विकसित करने के लिए तमाम गांवों की मिट्टी एकत्रित की जा रही  है। रघुवर सरकार ने राज्य के ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित करने का संकल्प व्यक्त किया था  ताकि आने वाली पीढ़ी के साथ साथ राज्य के बारे में कम जानकारी रखने वाले भी झारखंड के अतीत से परिचित हो सके।

बिरसा मुंडा संग्रहालय के लिए जिले के सभी प्रखंडों में 9 जनवरी से तीन दिनों तक यानि 11 जनवरी तक मिट्टी एकत्र की गई । जिस तरह लौह पुरुष सरदार पटेल की प्रतिमा स्थापित करने के लिए देश भर के किसानों से लोहा एकत्रित कर किया गया, उसी तर्ज पर रांची सहित राज्य भर के गांवों से मिट्टी एकत्रित कर संग्रहालय को विकसित करने की योजना पर काम जारी है । राज्य सरकार के आदेश के बाद रांची जिले के 18 प्रखंडों के 305 पंचायत अंतर्गत 1311 गांव की मिट्टी एकत्रित करने का सिलसिला जारी रहा।  

गांवों से जमा की गई मिट्टी को एक पात्र में रखकर 19 जनवरी को जिला मुख्यालय में जमा किया जाएगा। सभी गाँवों से एकत्रित की गई मिट्टी रांची मुख्यालय पहुँचने के बाद जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति में एक कार्यक्रम का आयोजन होगा।  वहीं 23 जनवरी को आयोजित होने वाले कार्यक्रम में सभी जिलों से प्राप्त पावन मिट्टी को दो बड़े तांबे के बर्तनों में जमा किया जाएगा। राज्य स्तर पर संग्रहित मिट्टी को पदयात्रा के जरिए पुराना बिरसा मुंडा जेल परिसर तक समारोहपूर्वक लाया जाएगा। 

इधर विपक्षी पार्टियों विशेषकर झारखंड मुक्ति मोर्चा ,झारखंड विकास मोर्चा और कांग्रेस ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया है कि भाजपा सरकार राज्य की महान विभूतियों का भी राजनैतिक इस्तेमाल करना चाहती है। विपक्ष का मानना है कि खूंटी स्थित बिरसा मुंडा की जन्मस्थली समेत स्वाधीनता सेनानियों से जुड़े राज्य के अनेक स्थल बरसों से उपेक्षित पड़े हैं।

बिरसा मुंडा जिन्हें राज्य के लोग “भगवान बिरसा मुंडा” कह कर पुकारते हैं, राज्य के लिए सदैव से ही  पूजनीय रहे हैं । उनका भव्य संग्रहालय निश्चित रूप से ना केवल राज्य के लोगों को बल्कि देश और विश्व के युवाओं और संघर्षरत आदिवासियों को प्रेरित करता रहेगा। आज जब भारत सहित विश्व के अधिकांश देशों में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ विकास के बहाने आदिवासियों की ज़मीन हड़पने का काम कर रही हैं, बिरसा मुंडा की शोषण के खिलाफ संघर्ष की गाथा निश्चय ही उनके लिए प्रेरणा का काम करेगी। संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल के नाम पर विश्व भर में आदिवासियों को उनकी ज़मीन से जिस तरह बेदखल किया जा रहा है, ऐसे में बिरसा मुंडा की स्मृति सँजोने का काम निश्चय ही महत्वपूर्ण है।

झारखंड के आदिवासी दम्पति सुगना और करमी के घर 15 नवंबर 1875 को जन्मे बिरसा मुंडा ने अंग्रजों के विरुद्ध अपार शौर्य का परिचय दिया । उन्होंने हिन्दू धर्म और ईसाई धर्म का बारीकी से अध्ययन किया तथा जनजातियों के शोषण के विरुद्ध आवाज बुलंद की थी ।

उस समय भारतीय जमींदारों और जागीरदारों तथा ब्रिटिश शासकों के शोषण की भट्टी में आदिवासी समाज झुलस रहा था। बिरसा मुंडा ने आदिवासियों को शोषण की नाटकीय यातना से मुक्ति दिलाने के लिए उन्हें तीन स्तरों पर संगठित करना आवश्यक समझा। पहला तो सामाजिक स्तर पर ताकि आदिवासी-समाज अंधविश्वासों और ढकोसलों के चंगुल से छूट कर पाखंड  से बाहर आ सके। इसके लिए उन्होंने ने आदिवासियों को स्वच्छता का संस्कार सिखाया। शिक्षा का महत्व समझाया।

सामाजिक स्तर पर आदिवासियों के इस जागरण से जमींदार-जागीरदार और तत्कालीन ब्रिटिश शासन तो बौखलाया ही, स्थानीय स्तर पर आदिवासियों का शोषण करने वालों की दुकानदारी भी ठप हो गई। स्वाभाविक था कि ये सब बिरसा मुंडा के खिलाफ गोलबंद हो गए। 

बिरसा मुंडा ने जब सामाजिक स्तर पर आदिवासी समाज में चेतना पैदा कर दी तो आर्थिक स्तर पर सारे आदिवासी शोषण के विरुद्ध स्वयं ही संगठित होने लगे। बिरसा मुंडा ने उनके नेतृत्व की कमान संभाली और झारखंड में नवजागरण का सूत्रपात किया। इस तरह आदिवासियों के संघर्ष के इस प्रतीक पुरुष की गाथा को राज्य और देश भर के लोगों के सामने लाने से शोषण के खिलाफ लड़ने वालों को, चाहे वो कहीं भी हों, बल मिलेगा।

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