किसान की आय पता नहीं, दोगुनी का छलावा !

अजय तिवारी*

सरकार ने किसानों को आमदनी दोगुनी करने के नाम पर जितना गुमराह किया है उसकी कहीं मिसाल नहीं मिलती। सरकार गुमराह उन छोटे और सीमांत किसानों को कर रही है,जिनकी संख्या देश के 14 करोड किसानों में 85% है।
यह भी कम दिलचस्प नहीं है कि किसानों की आमदनी दोगुनी करने का खूब प्रचार किया लेकिन सच्चाई यह है कि किसान की आमदनी कितनी है इसका कोई वास्तविक सर्वे पिछले एक दशक में नहीं हुआ है।

सरकार ने 2012-13 के बाद से किसानों की आमदनी का कोई सर्वे नहीं किया है। उस सर्वे में बताया गया था कि किसान की आमदनी 6426 रुपए महीना है। जब तक किसान की आमदनी का पता नहीं होगा तब तक यह कैसे मालूम होगा कि दोगुनी आमदनी कितनी होगी। सरकार खुद तो सर्वे करा नहीं रही है लेकिन संसद में एक संसदीय समिति का हवाला देकर कहती है कि किसानों की मासिक आमदनी 10248 रुपए है। यह आंकड़ा भी 2018-2019 का है और व्यापक नहीं होने से सटीक नहीं है। यह भी कम आश्चर्यजनक नहीं है कि कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की रिपोर्ट का हवाला देकर कहते हैं कि लाखों किसानों की आमदनी दोगुनी हो चुकी है। हालांकि कृषि अनुसंधान परिषद 2016-17 से 2020-21 तक की अवधि में सिर्फ 75,000 ही ऐसे किसानों की पहचान कर सका है जिनकी आय बीते आठ वर्ष में दोगुनी या अधिक हुई है।

कृषि मंत्री एक आंकड़ा यह भी देते हैं कि पश्चिम बंगाल,छत्तीसगढ़,पुडुचेरी और उत्तराखंड के किसानों की आय 200% तक बढ़ गई है। इसमें से आधे राज्य गैर भाजपा शासित हैं। भाजपा का मॉडल प्रदेश कहा जाने वाला गुजरात इस मामले में दूर-दूर तक कहीं नहीं है। सरकार भी किसानों की आय दोगुनी होने के मामले में गुजरात का उल्लेख नहीं करती। सरकार को अपने वादे के मुताबिक फरवरी 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करनी थी। इसमें नाकाम हुए एक साल से ज्यादा हो चुका है लेकिन सरकार ने इस पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है। आशा थी वित्त मंत्री बजट भाषण में इस पर कोई सफाई देंगी। जब बजट भाषण में कुछ नहीं कहा तो लगा बजट पर चर्चा के दौरान वित्त मंत्री और कृषि मंत्री देश को संतुष्ट करेंगे। संसद में हंगामे के चलते बजट पर कोई चर्चा ही नहीं हुई।

किसानों की आय दोगुनी करने के संदर्भ में जितने मुंह उतनी बातें हैं। सरकार का राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय कहता है किसानों की आमदनी बढ़कर 10218 रुपए मासिक हो गई है। उसका कहना है कि है छह साल में किसानों की आमदनी 59% बढ़ गई है। उसका तर्क है कि किसानों की आय नगदी फसलों, एमएसपी, कई किस्म की फसल और किसान क्रेडिट कार्ड की वजह से बढ़ी है। एक और उपक्रम है जो यह कहता है कि किसानों की आमदनी तो 6 नहीं 5 साल में ही दोगुनी हो चुकी है। यह है सरकारी क्षेत्र का सबसे बड़ा बैंक भारतीय स्टेट बैंक। स्टेट बैंक कहता है कि किसानों की आय 5 साल में दोगुनी हो चुकी है। उसके अनुसार यह वृद्धि वर्ष 2017-18 से 2021-22 के बीच हुई है। स्टेट बैंक के अनुसार किसानों की आमदनी 1.3 से 1.7 गुना तक बढ़ी है। हालांकि वह राज्य के रूप में महाराष्ट्र में सोयाबीन और कर्नाटक में कपास किसानों की आय दोगुनी होने का उल्लेख करता है। इस बैंक के अनुसार जीडीपी में कृषि का योगदान 14.2 % से बढ़कर 18.8 % हो गया है। स्टेट बैंक का यह पहलू काफी दिलचस्प है कि कोरोना में उद्योग ठप थे इसलिए भी कृषि क्षेत्र ने अच्छा योगदान दिया। सवाल ये है कि क्या यह योगदान स्थाई है? वास्तविक है?

किसानों की आय दोगुनी करने के विषय पर अब सरकार ज्यादा बात नहीं करती। अब वह छह हजार रुपए सालाना दी जाने वाली किसान सम्मान निधि के पीछे मुंह छुपाने की कोशिश करती है। विपक्ष के पास भी इस मुद्दे पर कोई तर्क नहीं हैं,वह कभी-कभी सरकार की आलोचना के तौर पर इस मुद्दे को उठाता है। राजनीतिक दलों के किसान संगठनों के पास किसानों की आमदनी के विषय में कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने इतने महत्वपूर्ण विषय पर कोई काम नहीं किया है।

किसानों के प्रमुख संगठनों को इस पर पहले ही ऐतबार नहीं था इसलिए वह इस मुद्दे को जुमले से ज्यादा कुछ नहीं मानते। हालांकि इस मुद्दे पर सार्थक विमर्श जारी रहना चाहिए क्योंकि किसान की आमदनी से ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर बहुत असर पड़ता है।

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*अजय तिवारी सामाजिक कार्यकर्ता और वरिष्ठ पत्रकार हैं और किसान, मजदूर, महिला और बच्चों के मुद्दों पर जागरूकता के लिए लिखते हैं।

डिस्क्लेमर : इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं और इस वैबसाइट का उनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है। यह वैबसाइट लेख में व्यक्त विचारों/सूचनाओं की सच्चाई, तथ्यपरकता और व्यवहारिकता के लिए उत्तरदायी नहीं है।

3 COMMENTS

  1. पीछे खाने की वास्तविकता को उजागर करने वाला अत्यंत महत्वपूर्ण
    विश्लेषण

  2. सरकार कोई भी रही हो किसी भी किसानों की सुध नहीं ली। छोटे और मझोले किसान ही सबसे ज्यादा तकलीफ़ में है। बड़े किसानों को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।जिस अनुपात में सरकारी कर्मचारियों की आय बढ़ी है,उसके अनुपात में 20%भी नहीं बढ़ी। जबकि सरकारी कर्मचारियों की आय में दो सौ फीसदी से अधिक का इजाफा हुआ है।जब किसानी माल की कीमत बढ़ती है तो सरकार मंहगाई बढ़ने के नाम पर कई प्रतिबंध लगा देती है और किसान फिर ठगा जाता है। इसीलिए किसान कर्ज में पैदा होकर कर्ज में ही मरने को विवश है।

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