क्या मकर संक्रांति ही उत्तरायण है?

हमारी वर्षगणना कहीं ग़लत जा रही है?

प्रियदर्शी दत्ता

       आज समूचे देश में मकर संक्रांति की धूम होगी। कहीं माघी कहीं संक्रांत कहीं पोंगल तो कहीं पौष संक्रांति। नाम कुछ भी हो उपलक्ष एक खगोलीय घटना विशेष है। सूर्यदेव नक्षत्रों की पथ की परिक्रमा करते हुए मकर राशि में प्रवेश करेंगे। यहाँ वह एक महीना रुकेंगे जैसा कि हर किसी राशि में वे रुकते हैं, फिर अगली राशि अर्थात कुम्भ में उनका संचरण होगा और फिर क्रमानुसार मीन तथा मेष में।

       वस्तुतः सूर्यदेव पृथ्वी लोक की परिक्रमा नहीं करते हैं बल्कि पृथ्वी ही उनकी परिक्रमा करती है परन्तु इस सापेक्षता से कोई विशेष अन्तर नहीं पड़ता। स्थानिक ज्योतिर्विज्ञान या पोसिशनल एस्ट्रोनॉमी के हिसाब यह मान कर ही किया जाता है कि पृथ्वी स्थिर है तथा सूर्य चरणशील।

       जब सूर्यदेव एक राशि को छोड़ कर अगले राशि में प्रविष्ट हो रहे होते हैं तो संक्रांति होती है और इस तरह एक वर्ष में बारह संक्रांतियां आती हैं। देश में जहाँ जहाँ भी सायन वर्ष या सौर पंजिका का प्रयोग होता है विशेषकर पूर्वी तथा दक्षिणी भारत में वहाँ प्रत्येक संक्रांति से महीना बदलता है। लेकिन बाकी संक्रांतियों को हम प्रायः अनदेखा ही कर देते हैं। परन्तु मकर संक्रांति की धूम उन क्षेत्रों में भी क्यों होती है जहाँ विक्रमी सम्वत चान्द्र-मास का प्रयोग होता है जैसे उत्तर प्रदेश, गुजरात तथा महाराष्ट्र?

       मकर संक्रांति का तात्पर्य यह बताया जाता है कि इस दिन सूर्य का उत्तरायण होता है। उत्तरायण का अर्थ है उत्तर की दिशा में गमन अर्थात उस दिन सूर्य दोबारा अपनी उत्तरमुखी चाल शुरू करते हैं।  इससे धीरे धीरे सर्दी का प्रकोप कम हो जाता है। अर्थात यह ऋतु परिवर्तन का संकेत है हालाँकि प्रभाव अनुभूत होने में समय लगता है।

       लेकिन यह बात कहाँ तक सच है? क्या सूर्यदेव सचमुच मकर संक्रांति के दिन ही अपनी दिशा परिवर्तन करते हैं? स्कूल के पाठ्य पुस्तक में हमने ऐसी कोई बात नहीं पढ़ी।  हमने जाना है कि 22 दिसंबर के दिन उत्तर गोलार्ध में सबसे छोटा दिन और सबसे लम्बी रात होती है। अगले ही दिन से दिवस की लम्बाई अर्थात सूर्योदय से सूर्यास्त कि अवधि धीरे धीरे बढ़ती जाती है।

       अगर इसको भूगोल के माध्यम से समझें तो 22 दिसंबर दोपहर को सूर्यदेव ट्रोपिक ऑफ़ कैप्रिकोर्ण अर्थात मकर रेखा के बिलकुल ऊपर होते हैं। मकर रेखा दक्षिण गोलार्ध में है तथा वह सूर्यदेव की दक्षिण की लक्ष्मण रेखा है। सूर्यदेव मकर रेखा के दक्षिण में किसी भी स्थान पर, कभी भी मध्य गगन में अर्थात प्रेक्षक के सिर के ऊपर नहीं आ सकते।

       क्यों नहीं आ सकते? क्योंकि पृथ्वी अपनी जिस अक्ष या धुरी पर घूर्णन करते हुए सूर्य का परिभ्रमण करती है, उसका तिरछापन या ‘टिल्ट’ बिलकुल उतना ही है जितना कि मकर रेखा का अक्षांक अर्थात पृथ्वी स्वयं ही अपना उतना ही हिस्सा सूर्य को दर्शा रही है, उससे अधिक नहीं।

       मकर रेखा के दक्षिण में कहीं भी सूर्य का प्रकाश सीधे तौर पर नहीं पहुँचता है। यही बात उत्तर गोलार्ध में ट्रॉपिक ऑफ़ कैंसर यानि कर्कट रेखा के लिए लागू होती है। वह सूर्यदेव के लिए उत्तर की लक्ष्मण रेखा है। जो उत्तर गोलार्ध के लिए सबसे बड़ा दिन है वह दक्षिण गोलार्ध के लिए सबसे छोटा दिन। जो दक्षिण गोलार्ध के लिए सबसे बड़ा दिन वह उत्तर गोलार्ध के लिए सबसे छोटा दिन। एक गोलार्ध का ऋतु चक्र भी दूसरे गोलार्ध में उलटा चलता है जैसे अभी भारत में सर्दियां है तो ऑस्ट्रेलिया ब्राज़ील तथा दक्षिण अफ्रीका में गर्मियां। हमारे यहाँ गर्मियां आते आते वहां सर्दियाँ आ जाएँगी।

       तो भूगोल ओर खगोल शास्त्र को खंगाले तो उत्तरायण 22 या 23 दिसंबर का बैठता है अर्थात 14 जनवरी जिस दिन हम उत्तरायण मनाते है उससे तीन हफ्ते पहले उत्तरायण बैठता है। लेकिन फिर एक संयोग पर नज़र जाती है कि दक्षिण की लक्ष्मण रेखा का नाम मकर रेखा क्यों? किसने रखा ये नाम? क्या मकर संक्रांति के साथ इसका कोई संबंध नहीं है? यही वह गुत्थी है जिसके खुलने से कई रहस्यों का समाधान होता है।

       जिसे हम मकर राशि कहते है उसका लातिनी नाम कैप्रिकर्ण है अंग्रेजी में Capricorn. यह नाम आज से दो हज़ार वर्ष पूर्व रखा गया था। जिस दिन सूर्य का उत्तरायण होता था उस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता था। देखा जाए तो यह एक संयोग मात्र से अधिक कुछ नहीं। सूर्य किस दिन किस अक्षांक में रहेगा यह पृथ्वी के अक्ष का तिरछापन तथा परिभ्रमण से सम्बन्धित है। राशि सूर्य की पृष्ठभूमि में कौन से नक्षत्र का झुरमुट है उससे सम्बन्धित है। अक्षांक के स्थान पर राशि या नक्षत्रों से सूर्य का उत्तरायण या दक्षिणायन परिभाषित करना कुछ ऐसा ही है जैसा कि आपका मकान अपने पते से ना जाना जाकर आपके घर के सामने वाले गुप्ता जी के मकान के सामने वाले मकान के रूप में जाना जाए।

       आइए समझते हैं इससे क्या अन्तर पड़ता है। मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने तथा लट्टू घुमाने की परम्परा रही है। इस लट्टू से ही हम समझ सकते हैं कि राशि और नक्षत्रों से उत्तरायण को परिभाषित करने में क्या कठिनाई है। लट्टू जैसे अपनी धुरी पर घूमते हुए एक जगह स्थिर नहीं रहता और इधर-उधर झूमता रहता है, कुछ ऐसा ही घूमते हुए पृथ्वी के साथ भी होता है। इसे संस्कृत में अयनांश भी कहते हैं। इसकी वजह से नक्षत्रों के सापेक्षिता से ऋतु चक्र बदल रहा है।

       दिशाहीन महाशून्य में पृथ्वी के तिरछेपन का अपने आप में कोई अर्थ नहीं है जब तक कि हम इसे पृथ्वी की घूर्णन (rotation) की सतह (plane) तथा परिभ्रमण (revolution) की सतह के बीच के कोण (angle) के रूप में न समझें। यह दोनों सतह परिभ्रमण पथ पर दो जगह रास्ता काटती हैं। इन दोनों दिवसों पर दिन-रात समान होतें है- 21 मार्च तथा 21 सितम्बर। दोनों को हम समरात्रि (equinox) कहते हैं – पहला वसंत की समरात्रि, दूसरी हेमन्त की समरात्रि। हम एक वर्ष को सूर्य की किसी एक राशि में प्रवेश से दूसरी बार उसी राशि में प्रवेश के बीच का अंतराल मान सकते हैं। दूसरी तरफ सूर्य की बसन्त की समरात्रि से दोबारा बसन्त की समरात्रि की यात्रा को भी एक वर्ष मान सकते हैं।

       परन्तु एक पद्धति से वर्ष की अवधि 365.2596 दिन होती है तथा दूसरी पद्धति से 365.2422 दिन। दूसरे शब्दों में पहली पद्धति अर्थात नाक्षत्रिक वर्ष (Sidereal Year) दूसरी पद्धति अर्थात ट्रॉपिकल वर्ष (Tropical Year) से 20 मिनट लम्बा होता है| भारतीय वर्षगणना में पहली पद्धति, पश्चिम के वर्षगणना में दूसरी पद्धति का प्रयोग होता है। ट्रॉपिकल वर्ष के प्रयोग से ही हम वर्षगणना के कैलेन्डर को ऋतुचक्र के अनुसार रख सकते हैं| नाक्षत्रिक वर्ष (Sidereal Year) का संपर्क धीरे धीरे ऋतुचक्र के टूट जाता है क्योंकि समरात्रि का बिन्दु हर वर्ष नाक्षत्रिक पृष्ठभूमि से देखें 20 मिनट पहले आ जाता है, कई शताब्दियों में वह बिन्दु दूसरे नक्षत्र में चला जाएगा। यहाँ तक कि 26,000वर्षों में वह पूरे परिभ्रमण पथ का चक्कर लगा लेगा।

       यही उत्तरायण और मकर संक्रांति के बीच में हुआ। अतीत में दो या तीन हज़ार वर्ष पूर्व उत्तरायण तथा मकर संक्रांति एक ही साथ आते थे लेकिन अब नहीं आते। कुछ हज़ार वर्षों में सूर्यदेव जब मकर राशि में प्रवेश करेंगे तब मार्च में समरात्रि का दिन होगा। उससे भी विकट स्थिति तब होगी जब सूर्यदेव तब मकर राशि में आयेंगे जब जून में सबसे लम्बे दिन के उपरान्त सूर्य का दक्षिणायन शुरू हो जाएगा। यह सही है कि इसमें हजारों वर्ष लग जाएंगे, किन्तु संकेत स्पष्ट है कि हमारी वर्षगणना कहीं ग़लत जा रही है। इसमें सुधार की आवश्यकता है।

लेखक एक स्वतंत्र शोधकर्ता तथा स्तंभकार हैं|

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