दिल्ली की हवा

दिल्ली की हवा मे फंसा प्रदूषण

आज हम दिल्ली-निवासी जब सुबह सो कर उठे तो फोन हाथ में उठाते ही ये चेतावनी पढ़ने को मिली को मिली कि बिना ज़रूरत बाहर न निकलें क्योंकि हवा में pollution बहुत है। आप कहेंगे कि इसमें भला क्या नई बात है, वायु प्रदूषण की तो अब दिल्ली वालों को आदत हो जानी चाहिए थी।

बिलकुल सही है आपका सोचना भी लेकिन कभी-कभी तो हम दिल्ली वालों को इस पर उदास होने की इजाज़त दीजिये। आज मैं दिल्ली के प्रदूषण को लेकर सचमुच उदास हूँ क्योंकि मैं असहाय भी महसूस कर रहा हूँ। इस मामले में तो मैं नसीरुद्दीन शाह से भी गया गुज़रा हूँ – वजह ये है कि नसीर को तो तथाकथित देशभक्तों ने पाकिस्तान जाने की सलाह दे दी, लेकिन प्रदूषण से त्रस्त लोगों को वो लोग कहाँ जाने को कहेंगे? कहाँ जाएँ हम? क्या साफ हवा-पानी वाला कोई देश प्रदूषण-शरणार्थियों को लेने को तैयार है? संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन या climate-change के कारण बड़ी संख्या में दुनिया के बहुत सारे इलाकों में शरणार्थी बनने की संभावना है और अगले करीब 30 बरस में ऐसे शरणार्थियों की संख्या दुनिया भर में 25 करोड़ हो जाएगी! पता नहीं इन शरणार्थियों के अनुमान की इस संख्या में दिल्ली के लोगों की गिनती है या नहीं!

सच कहें तो अब ये मज़ाक नहीं रह गया। हमें ये हालत कुछ मूलभूत सवालों पर सोचने को मजबूर कर रही है, जैसे ये कि इस हालात की शिकायत किससे करें? सिर्फ ये नहीं कि हमारे साथ ये क्यूँ हुआ बल्कि ये भी कि आगे ऐसा होना बंद हो, इसके लिए क्या कोई कुछ कर रहा है – कोई सरकार या फिर हम और आप समाज के तौर पर क्या कुछ कर सकते हैं?

अगर स्थूल रूप में देखें तो लोकतन्त्र का अर्थ है कि इसमें हर व्यक्ति को अपने बारे में निर्णय लेने का स्वयं अधिकार होता है और हमने अपने देश में इंग्लैंड वाली व्यवस्था को अपनाया है जिसके अनुसार हम अपने इन लोकतान्त्रिक अधिकारों को अपने द्वारा चुने हुए साढ़े पाँच सौ व्यक्तियों को सौंप देते हैं। लेकिन क्या हो रहा है कि ये चुने हुए हमारे प्रतिनिधि हमारे दिये हुए अधिकारों का इस्तेमाल हमारे ही हितों के विरुद्ध करते हैं – कई बार तो इनमें से अधिकांश को अंदाज़ ही नहीं हो पाता कि वो कब और कैसे इस्तेमाल हो गए। और उनका ये इस्तेमाल कोई देशी लोग ही नहीं कर रहे – हमारी आर्थिक नीतियाँ हमने खुद अपने जन-प्रतिनिधियों के माध्यम से वैश्विक अर्थव्यवस्था से जोड़ दी हैं। ऐसे में दुनिया के बड़े कॉर्पोरेशन (जिन्हें आप आंशिक गलती का रिस्क उठाकर कंपनियाँ भी कह सकते हैं) हमारी नीतियों को बहुत-कुछ नियंत्रित करने लगते हैं। ऐसे में प्रदूषण और अन्य पर्यावरणीय समस्याओं का ज़िक्र बस नाम भर को होता है और या फिर इसलिए कि इनका निवारण अपने आप में एक और व्यापार होता है। अब हमारी दुनिया सचमुच में कुछ अदृश्य ताकतों द्वारा ही संचालित हो रही लगती है।

अगर सिर्फ अपने देश की बात करें तो सच्चाई ये है कि अब हमारी लोकतान्त्रिक प्रणाली लोकशाही तो बस नाम-मात्र को रह गई है। अब ये कुछ चुने हुए प्रतिनिधियों और कॉर्पोरेट जगत के शीर्ष लोगों के ‘कौकस’ के रूप मे चलती है। बाकी चुने हुए प्रतिनिधि अपनी पार्टी के नेता (जिसे पिछले कुछ दशकों से हाई कमान कहा जाता है) के निर्णयों पर मुहर लगाने भर का काम करते हैं। तो जहां तक पर्यावरणीय मुद्दों का सवाल है, जो आमतौर पर सीधे-सीधे आर्थिक नीतियों से भी जुड़े होते हैं, इन दोनों ही विषयों पर भारतीय जनता पार्टी या कॉंग्रेस कुछ अलग तरह काम करेंगे, इसकी उम्मीद इस स्तंभकार को कतई नहीं है। आर्थिक नीतियों पर तो भारतीय कुलीन वर्ग लगभग एकमत है और इसलिए सरकारों के आने जाने से उन पर फर्क नहीं पड़ने वाला।

सच कहें तो इन दोनों के अलावा भी अगर कोई तीसरा मोर्चा किस्म की चीज़ भी सत्ता में आ जाये, तो भी ये उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि राजनीतिज्ञों और कॉर्पोरेट सैक्टर का ये गठबंधन टूट सकता है क्योंकि बात उससे कहीं आगे जा चुकी है। देश के मध्यम-वर्ग ने बहुत स्वार्थ-पूर्ण ढंग से आर्थिक उदारीकरण को अंगीकार किया और उससे होने वाले नकारात्मक परिवर्तनों को किसी ने भी गंभीरता से नहीं लिया। उदारीकरण के लाभ गरीब व्यक्ति तक भी पहुँचते नहीं दिख रहे और इन नीतियों की वजह से जो पर्यावरणीय नुकसान हो रहे हैं, उन्हें सिर्फ बहुत ही रस्मी हैंडल किया जा रहा है।

इसलिए फिलहाल तो किसी बड़े परिवर्तन की उम्मीद ना करें और ना ही ये सोचें कि दिल्ली की हवा बहुत बेहतर हो सकती है। वो ऐसी ही रहने वाली है। हवा बदलने के लिए बहुत कुछ करना होगा और उसके लिए हम और आप अभी तैयार नहीं हैं। अभी हम टेक्नॉलजी की माया में रमे हैं और उसके लाभों को एंजॉय कर रहे हैं। ऐसे में हवा प्रदूषित भी है तो चलेगा, ये मानस है हमारा। और भारत का मध्यमवर्ग फिलहाल इस लालच से बाहर आने के मूड में नहीं है। इसलिए हवा की शिकायत अब मैं नहीं करूंगा।

-विद्या भूषण अरोरा

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