जलवायु परिवर्तन के खतरे

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उत्तरांचल पत्रिका आखिरी पन्ना – अप्रैल 2017

अँगरेज़ लोगों की कहावत है कि जब कोई बात ना मिले तो मौसम की बात की जाए! इस बार हम भी वही करते हैं! हालाँकि हमारा विषय थोडा गंभीर है ! ये बात शुरू हम करते हैं गर्मी से – आज ये लिखते समय भी महसूस हो रहा है कि मौसम विशेषज्ञों की चेतावनियां सही हैं कि २०१७ की गर्मियां २०१६ से भी ज़्यादा गर्म होंगी ! यहां हम ये याद दिला दें कि २०१६ की गर्मियां भी वर्ष १९०१ के बाद की सबसे ज़्यादा गर्म थीं ! तो अब बताया जा रहा है कि इस बार पिछले वर्ष से भी ज़्यादा गर्मी होने वाली है ! हम और हमारे जैसे लोग काफी बेफिक्र हैं क्योंकि उन्हें मौसम की मार का कोई असर नहीं पड़ता ! ख़राब मौसम या ज़्यादा गर्मी की वजह से हम ज़्यादा से ज़्यादा इतना ही सोचते हैं कि एसी चलाने का खर्च थोड़ा बढ़ जाएगा लेकिन ये विचार भी ज़्यादा देर मन में नहीं रहता! हालाँकि मौसम में गर्मी चूँकि ‘मैन-मेड” है यानी हमारी ही बनाई हुई है, इसलिए हमें थोड़ा ज़्यादा सोचना चाहिए ! क्लाइमेट चेंज या जलवायु परिवर्तन के बारे में अपन सभी ने सुन रखा है लेकिन असल में उसके प्रति हम एक समाज के तौर पर या एक राष्ट्र के तौर पर या पूरी दुनिया के तौर पर भी गंभीर नहीं हैं! 

यदि हम गंभीर होते तो क्या हमारे यहां आम से आम आदमी को भी ये पता ना होता कि क्लाइमेट चेंज की प्रक्रिया हमारे देश पर दुनिया के अन्य ज़्यादातर देशों की बनिस्पत ज़्यादा बुरा प्रभाव डालने वाली है क्योंकि हमारा देश वर्षा के मामले में मानसून पर बहुत निर्भर करता है? क्लाइमेट चेंज के फिनोमेनन की वजह से हमारे देश की अनाज-उत्पादन की क्षमता पर बहुत बुरा असर पड़ने के आसार बताये जा रहे हैं और अगर ये अनुमान सही हुए तो आने वाले बीस वर्षों के बाद, लगभग २०४० से, देश की अनाज उत्पादन क्षमता पर बुरा असर पड़ने की सम्भावना है ! विडम्बना देखिये कि क्लाइमेट चेंज का दुष्प्रभाव भी देश के गरीब इलाकों में ही ज़्यादा पड़ने की सम्भावना बताई गई है – छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उड़ीसा और उत्तर-पश्चिम भारत के कुछ अन्य भौगौलिक क्षत्रों में अनाज उत्पादन पर बुरा असर पड़ेगा ! इतना ही नहीं, कहीं सूखा तो कहीं अतिवृष्टि की वैज्ञानिकों ने भारत के लिए सम्भवना जताई है ! नदियों में पानी के बहाव का मौसम भी बिलकुल बदल जाएगा यानी जिन दिनों आजकल नदियां सूखी होती हैं, उन दिनों खूब पानी और बाकी समय सूखी – ऐसे में सिंचाई के पैटर्न पर बहुत बुरा प्रभाव पद सकता है !

क्या आपने कभी सुना कि आज से २०-२५ वर्ष बाद होने वाले इन परिवर्तनों के लिए हम समाज या देश के तौर पर क्या तैयारी कर रहे हैं? चाय और पान की दुकानों से लेकर अमीरों के ड्राइंग रूम्स और मयखानों तक में हम राजनैतिक चर्चा तो करते रहते हैं (जिसमे कोई बुराई नहीं है) लेकिन इस बात की चिंता नहीं करते कि २५ साल बाद इतना कुछ बदलने वाला है, उसके लिए हम क्या कर रहे हैं? यूरोप के कुछ देशों में इन सवालों को चुनावी मुद्दा बनते भी देखा गया है और इक्का दुक्का देशों में इन मुद्दों पर सरकारें बनी और बिगड़ी हैं लेकिन हमारे यहां जो इतना कुछ होने वाला है, अभी हम निश्चिन्त हैं! निश्चिन्त रहना भी एक तरह से अच्छी बात है कि अरे जब जो होगा, देखा जाएगा लेकिन इतनी अच्छी बात भी नहीं क्योंकि हममें से ज़्यादातर लोग २५ बरस और रहने वाले हैं और जो हमारे बच्चे हैं, सभी इस गुज़रे ज़माने को याद करके पछताया करेंगे कि हमने एडवांस प्लानिंग क्यों नहीं की! मैं उत्तांचल पत्रिका के सम्पादक मण्डल से अपील करूँगा कि वह इस विषय पर बीच बीच में ऐसे लेख ज़रूर लिखवाएं जो आने वाले खतरों के बारे में आगाह भी करें और ये भी बताएं कि इन सब मसलों का संभावित उपाय क्या हो सकता है!

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