अजंता देव*
नया स्त्री प्रबोध -१
अगर पुरुष तुम्हारी देह माँगे
तुम उसकी आत्मा माँगो
और अगर वह तुम्हारी आत्मा माँगे
तुम्हें उसकी देह माँगनी चाहिए ।
नया स्त्री प्रबोध -२
केश सुखाए बिना
शरीर सुखाना व्यर्थ है
तुम फिर से गीली हो जाओगी ।
नया स्त्री प्रबोध -३
इन दिनों वे प्रकट हो रहे हैं कई बार
कबूतर से निरीह और बुद्ध से ज़्यादा करुणामय की तरह
तुम्हारे पास रूप है
तो उनके पास है बहुरूप।
नया स्त्री प्रबोध -४
स्तन कटि और जंघा कहा जाएगा
और सोचा जाएगा छाती कमर और जाँघ
तुम कोई बहुत पिछली शताब्दी की यक्षिणी नहीं
अभी इसी समय की औरत हो
भाषा ही देखना है तो उनकी आँखों में देखो ।
नया स्त्री प्रबोध -५
किसी की फटी क़मीज़ सीने के लिए
अपने आँचल के तार मत निकालो
“तुमने अपने ज़ख़्म सिए हैं
लेकर मेरी रूह के धागे “
ख़ास तौर पर उधड़ते कवियों को अपना रेशा मत दो ।
नया स्त्री प्रबोध -६
तुमने अपने ह्रदय को ठीक से परख लिया है ना ?
क्या वह पर्याप्त कठोर है ?
पत्थर की तरह ?
जान लो ,प्रेमी का दिल भी कम कठोर नहीं
लोहे की तरह
समझो कि प्रेम आक्रमण करेगा अग्नि जैसा
लोहे को गला कर सुर्ख़ भेदता
पत्थर पर सीधे शलाका की तरह
काला निशान बनाता ।
नया स्त्री प्रबोध -७
प्रेम की भाषा को अधूरा मत पकड़ो
चूमना हमेशा सिर्फ़ चूमना ही नहीं होता
वह तुम पर ठप्पा भी हो सकता है
दागने की तरह
मैंने देखा है इठलाते लोगों को
कि अब जो भी चूमेगा तुम्हें नहीं मेरे निशान को चूमेगा ।
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अजन्ता देव लगभग चालीस वर्षों से लगातार लिख रहीं हैं। पिछले दिनों राजस्थान साहित्य अकादमी की ओर सेविशिष्ट साहित्यकार पुरस्कार के लिए चुना गया है। उनके चार कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं – राख का किला, एक नगरवधू की आत्मकथा, घोड़े की आँख में आँसू और बेतरतीब। इस वेब पत्रिका में उनकी कविताएं आप यहाँ,यहाँ, यहाँ और यहाँ पढ़ सकते हैं। मरुभूमि पर एक कविता शृंखला यहाँ पढ़ सकते हैं। उनका एक उपन्यास अंश भी हमारी वेब में पत्रिका में यहाँ उपलब्ध है।
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बहुत मर्म भेदी कविताएं। यह कविताएं जैसे एक सूक्ष्म दृष्टि से देख परख कर दी गई नसीहतें हैं।
बहुत बधाई।
बहुत सुंदर कविताएँ,