कैंसरकारी एस्बेस्टस मिनरल फाइबर पर प्रतिबंध को लेकर सरकार का दोहरा रवैया

डॉ गोपाल कृष्‍ण*

भारत सरकार सभी प्रकार के एस्बेस्टस के खनन और एस्बेस्टस कचरे के व्यापार  पर प्रतिबंध को लेकर ज़रूरी सहमति बनाने में नाकाम रही है। उसने जिनेवा बैठक में हानिकर रसायनों की संयुक्त राष्ट्र सूची में कार्सिनोजेनिक व्हाइट क्रिसोटाइल एस्बेस्टस खनिज तंतु को शामिल किए जाने का विरोध किया है।

भारत को अभी व्हाइट क्रिसोटाइल एस्बेस्टस के आयात, निर्माण और उपयोग पर प्रतिबंध लगाना है।

भारत सरकार स्वयं को, रूसी परिसंघ, कज़ाख्स्तान, सीरिया, जिम्बाब्वे, किर्गिज़स्तान, पाकिस्तान, श्रमिक संघ संगठनों के अंतर्राष्ट्रीय समूह-”क्रिसोटाइल”, भारतीय फाइबर सीमेंट उत्पाद निर्माता संघ और एस्बेस्टस सीमेंट उत्पाद निर्माता संघ जैसे एस्बेस्टस को बढ़ावा देने वाले देशों और संगठनों के हानिकारक प्रभाव से अलग करने में नाकाम रही है।

सरकार को संयुक्त राष्ट्र रोटरडम सम्मेलन की बैठकों में घातक, कैंसरकारी व्हाइट क्रिसोटाइल एस्बेस्टस मिनरल फाइबर को लेकर अपने अवैज्ञानिक और अनीतिपूर्ण दोहरे रवैये को बंद करना होगा।

दोहरा रवैया आश्चर्यजनक

व्हाइट क्रिसोटाइल एस्बेस्टक मिनरल फाइबर पर दोहरा रवैया अपनाना आश्चर्यजनक है। क्या यह सरकार के लिए खुद को बचाने का कोई रास्ता है?  देश के कानूनों के तहत यह घातक और कैंसरकारी है लेकिन संयुक्त राष्ट्र की बैठकों में सरकार कहती है कि यह गैर-कैंसरकारी और गैर-हानिकर है।

सर्वसम्मति के अभाव के बीच रोटरडम सम्मेलन के सीओपी-9 और सम्मेलन के नए अनुलग्नक  VII  की मंज़ूरी के लिए वोटिंग हुई। इसका उद्देश्य टीएनसी पर प्रस्तावित कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि और मानवाधिकारों से संबंधित अन्य व्यापारिक उद्यमों सहित सभी मौजूदा और प्रस्तावित संयुक्त राष्ट्र संधियों के अनुपालन के लिए प्रक्रिया और तंत्र स्थापित करना है।

10 मई 2019  :  कैंसरकारी व्हाइट क्रिसोटाइल एस्बेस्टस मिनरल फाइबर को लेकर राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल-एनएचपी, सेंटर फार हेल्थ इन्फोर्मेटिव-सीएचआई, राष्ट्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संस्थान, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के परीक्षण परिणामों और पर्यवेक्षण को दरकिनार करते हुए भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने घातक रसायनों की संयुक्त राष्ट्र सूची में इस हानिकर मिनरल फाइबर को शामिल करने का विरोध किया।

भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने एक अवैज्ञानिक रवैया अपनाया जो देश में मान्य कानूनों और संसद में सरकार की रिपोर्ट के बिल्कुल विपरीत है। प्रतिनिधिमंडल ने जिनेवा में 29 अप्रैल से 10 मई तक आयोजित नौंवे संयुक्त राष्ट्र रोटरडम सम्मेलन में कुछ घातक रसायनों और कीटनाशकों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को लेकर पूर्व सहमति प्रक्रिया के दौरान अपना विरोध व्यक्त किया।

8 मई को रोटरडम सम्मेलन सचिवालय ने क्रिसोटाइल एस्बेस्टस से संबंधित दस्तावेज (आरसी/सीओपी.9/10 : जोड़-1) पेश किया। दस्तावेजों से स्पष्ट था कि यह मुद्दा रोटरडम सम्मेलन के विभिन्न पक्षों की तीसरी बैठक से ही एजेंडे में रहा है। आस्ट्रेलिया, कोलम्बिया, नार्वे, कनाडा, पेरू, जार्जिया, उरुग्वे, गैबन, नाइजीरिया, बहरीन, यूरोपीय समुदाय, जापान, इराक, टोगो, चिली, मलेशिया, न्यूज़ीलैंड, मालदोवा, स्विटज़रलैंड, वनातू, कांगो गणराज्य, सेनेगल, मालदीव, कुवैत, बेनिन, सऊदी अरब और कैमरून ने रोटरडम सम्मेलन के अनुलग्नक  III में क्रिसोटाइल एस्बेस्टस को घातक रसायनों और कीटनाशकों की संयुक्त राष्ट्र सूची में रखे जाने का समर्थन किया।

दुर्भाग्य से भारत ने रूसी परिसंघ, कज़ाख्स्तान, सीरिया जिम्बाब्वे, किर्गिज़स्तान, पाकिस्तान, श्रमिक सघ संगठनों के अंतर्राष्ट्रीय समूह – क्रिसोटाइल के साथ मिल कर रोटरडम सम्मेलन के अनुलग्नक III में क्रिसोटाइल एस्बेस्टस को सूची में रखे जाने का विरोध किया। विरोध का आधार था मानव स्वास्थ्य और वातावरण पर इसके घातक असर के बारे में नए सबूतों का अभाव।

वेनेजुएला, क्यूबा और ईरान जैसे देश क्रिसोटाइल एस्बेस्टस को सूची में रखे जाने का विरोध करने वाले देशों के तर्कों के समर्थन में थे, उन्होंने इसे सूची में रखे जाने का विरोध किया और इस पर आगे विचार-विमर्श की मांग की।

पुख्ता वैज्ञानिक प्रमाण नज़रअंदाज़

क्रिसोटाइल एस्बेस्टस को घातक रसायनों की संयुक्त राष्ट्र सूची में रखे जाने का विरोध करने वाले भारत सहित अन्य देशों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के पुख्ता वैज्ञानिक प्रमाणों को नज़रअंदाज़ कर दिया। इस रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया था कि सभी प्रकार के एस्बेस्टस कैंसरकारी हैं।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने इस बात पर गौर किया कि एस्बेस्टस को लेकर संगठन की  बैठक का इस्तेमाल एस्बेस्टस का उपयोग जारी रखने को उचित ठहराने के लिए नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि संगठन की मंशा कभी भी एस्बेस्टस उपयोग को बढ़ावा देने की नहीं रही है।

ऐसा लगता है कि भारत सरकार के प्रतिनिधिमंडल ने भारतीय फाइबर सीमेंट उत्पाद विनिर्माता संघ (एफसीएमपीएआई- जो एस्बेस्टस कम्पनियों का एक कारटेल है) और एस्बेस्टस कम्पनियों के गहरे दबाव में काम किया है। ऐसा उन्होंने उन सरकारी अध्ययनों को आधार बना कर किया, जिनमें एस्बेस्टस का स्वास्थ्य पर कोई भी नकारात्मक प्रभाव नहीं बताया गया था और एफसीएमपीएआई इस अध्‍ययन का सह-प्रायोजक रहा है।  वर्कर्स ऑफ कज़ाख्स्तान नाम की एक एस्बेस्टस कम्पनी चाहती थी कि क्रिसोटाइल एस्बेस्टस की कि़स्‍म को अलग श्रेणी में रखा जाए।

सात देशों और एस्बेस्टस कम्पनियों के विरोध का नतीजा यह हुआ कि क्रिसोटाइल एस्बेस्टस को घातक रसायनों की संयुक्त राष्ट्र सूची में रखे जाने पर विचार रोटरडम सम्मेलन की 10वीं बैठक तक के लिए स्थगित कर दिया गया।

अंतर-मंत्रालय भारतीय प्रतिनिधिमंडल विभिन्न पक्षों की नौंवी बैठक में क्रिसोटाइल एस्बेस्टस सहित सभी प्रकार के एस्बेस्टस को लेकर राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल, भारत सरकार के सार्वजनिक और आधिकारिक रूप से दिए गए प्रमाणों को अलग अलग करने में नाकाम रहा। प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि सभी प्रकार के एस्बेस्टस (यानी क्राइसोटाइल, क्रोकिडोलाइट, एमोसाइट, ट्रोपोलाइट, एक्टिनोलाइट और एंथोफिल) अपनी असाधारण मजबूती, न्यूनतम ताप संचरण और रासायनिक सम्पर्क से अपेक्षाकृत अधिक प्रतिरोधी क्षमता के कारण उपयोग में है।

रासायनिक रूप से, एस्‍बेस्‍टोज खनिज सिलिकेट यौगिक होते हैं, जिसका अर्थ है कि एस्बेस्टस की आण्विक संरचना में सिलिकोन और आक्सीजन के अणु होते हैं। सच्चाई यह है कि सभी प्रकार के एस्बेस्टस मनुष्य के लिए हानिकर हैं। क्रिसोटाइल सहित सभी एस्बेस्टस से फेफड़े, गले और गर्भाशय का कैंसर होता है। एस्बेस्टस से सम्पर्क फेफड़ों में फाइब्र्योसिस और प्लाक जमने जैसे अन्य रोगों का भी कारक होता है।

यह पाया गया  है कि “एस्बेस्टस से संसर्ग काम के माहौल में हवा में व्‍याप्‍त उनके तंतुओं के साँस के माध्यम से प्रवेश के कारण होता है।  एस्बेस्टस को परिचालित करने वाले कारखानों की परिवेशी वायु, या एस्बेस्टस सामग्री युक्त भवनों की भीतरी हवा एस्बेस्टस का प्रमुख स्रोत होती है ।” प्रतिनिधिमंडल में भारत के आधिकारिक संपर्क बिंदु, मनोज कुमार गांगेय, निदेशक, खतरनाक पदार्थ प्रबंधन विभाग, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, शामिल थे।

रोटरडम सम्मेलन की बैठक में भारतीय प्रतिनिधमंडल के आधिकारिक वक्तव्य में कोई बदलाव नहीं हुआ। कहा गया कि घातक रसायनों की सूची में रखे जाने से व्यापार लागत में बढ़ोतरी होगी और इनके आयात निर्यात में अनावश्यक विलम्ब होगा। यह कथ्य सच्चाई  से परे है। बयान में घातक रसायनों के अप्रतिबंधित व्यापार से स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान के कारण आने वाले खर्च का कोई उल्लेख नहीं किया गया।

29 पृष्ठ के निर्णय दिशा निर्देश दस्तावेज मसौदे में सम्मेलन के अनुलग्नक  III  में क्रिसोटाइल एस्बेस्टस को शामिल किया जाना एजेंडे में है। अस्थाई एजेंडे की आइटम 5(बी) में सम्मेलन के निर्णयों को लागू किए जाने से संबंधित मुद्दों का उल्लेख है। मसौदे के अनुसार क्रिसोटाइल एस्बेस्टस पूर्व सहमति प्रक्रिया में एक औद्योगिक रसायन के रूप में शामिल किया गया है।

आस्ट्रेलिया, चिली और यूरोपीय समुदाय के आग्रह पर प्रतिबंधित किए जाने या इसके उपयोग को कड़ाई से रोके जाने के लिए अंतिम नियामक कार्रवाई के आधार पर इसी एजेंडे में रखा गया है। आज विश्व के कुल एस्बेस्टस उत्पादन में 94 प्रतिशत उपभोग क्रिसोटाइल एस्बेस्टस का है। कई उत्पादों में इसका इस्तेमाल होता है। एस्बेस्टस सीमेंट उद्योग क्रिसोटाइल एस्बेस्टस का सबसे अधिक उपयोग करने वाला उद्योग है। इस उद्योग में समस्त उपयोग का लगभग 85 प्रतिशत क्रिसोटाइल एस्बेस्टस का है। यह दुर्भाग्य की बात है कि निर्णय दिशा निर्देश दस्तावेज मसौदे को स्वीकृति नहीं मिल पाई है।

यहां यह उल्लेख किया जा सकता है कि रोटरडम सम्मेलन में रासायनिक समीक्षा समिति-सीआरएस ने कुछ रसायनों और कीटनाशकों के लिए पूर्व सूचना सहमति प्रक्रिया पर 2005 में अपनी पहली बैठक में विभिन्न पक्षों से यह सिफारिश करने पर सहमति व्यक्त की थी कि क्रिसोटाइल एस्बेस्टस को अनुलग्नक III  में रखा जाना चाहिए। सीआरएस सरकारों द्वारा नियुक्त विशेषज्ञों का एक समूह है, जिसकी स्थापना सम्मेलन की धारा 18 के तहत की गई है।

यह स्पष्ट है कि सर्वसम्मति की अनिवार्यता को संयुक्त राष्ट्र सूची में घातक रसायनों को रखे जाने का रास्ता अवरुद्ध करने के लिए इस्तेमाल किया गया है। सर्वसम्मति के लिए पहले किए गए सभी प्रयासों के बेअसर होने को देखते हुए स्विटजरलैंड ने अनुपालन के लिए प्रक्रिया और तंत्र स्थापित करने के उद्देश्य से रोटरडम सम्मेलन में नया अनुलग्नक VII  शामिल करने के लिए वोटिंग की अपील की। 120 भागीदारों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया और 6 ने इसका विरोध किया।

ब्राज़ील और रूसी परिसंघ जैसे देशों ने इसका विरोध किया। चिली, त्रिनिदाद और टोबेगो, वेनेजुएला, पाकिस्तान, क्यूबा, कतर, अर्जेंटीना और ईरान ने निर्णय लेने की प्रक्रिया में वोटिंग को मान्य बनाने को लेकर चिंता व्यक्त की।

रोटरडम सम्मेलन का प्रस्तावित अनुलग्नक  VII  अनुपालन तंत्र पर सहमत नहीं होने वाले पक्षों को स्वीकृति प्रक्रिया से अलग होने की अनुमति देता है। यह एक सार्वभौम तथ्य है कि मनुष्य का एस्बेस्टस फाइबर के सम्पर्क में आना एस्बेस्टस कम्पनियों द्वारा मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन है।

यदि टीएनसी और अन्य व्यापारिक उद्यमों को लेकर एक संयुक्त राष्ट्र संधि स्वीकार की जाती है और लागू कर दी जाती है, तो एस्बेस्टस कम्पनियों को नागरिक कानून और आपराधिक कानून के तहत जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, लेकिन ऐसा होने से पहले भारत सरकार का कर्तव्य है कि वह मौजूदा तथा भावी पीढ़ियों के स्वास्थ्य और मानवाधिकारों की रक्षा करे। इसके लिए उसे व्हाइट क्रिसोटाइल एस्बेस्टस को बिना सोचे-विचारे बढ़ावा देने वाले सात देशों से अलग हटना होगा।

सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की उपेक्षा

अब तक भारत सरकार ने उच्चतम न्यायालय के 27 जनवरी 1995 के आदेश को नजरअंदाज़ किया है। अदालत ने गौर किया था कि एस्बेस्टस या ऐसे किसी अन्य पदार्थ के कारण कैंसर के खतरों में बढ़ोतरी को देखते हुए इनका उपोयग जारी नहीं रखा जाना चाहिए। न्यायालय ने कहा था कि कैंसरकारी पदार्थों के सम्पर्क में आना बंद करने से ही कैंसर का खतरा समाप्त नहीं होता, बल्कि प्रभावित व्यक्ति के अपने जीवन के शेष वर्षों में कैंसर ग्रस्त होने का खतरा अधिक होता है।

एस्बेस्टस के सम्पर्क में आने के दूरगामी घातक परिणामों को देखते हुए यह नियोक्ता की कानूनी और सामाजिक जिम्मेदारी बनती है कि वह कामगारों के जीवन को खतरे में न डाले। वह बड़े पैमाने पर समाज के स्वास्थ्य को संकट में डालने की जिम्मेदारी लेने से बच नहीं सकता। उनका कानूनी नैतिक और सामाजिक दायित्व है कि वे कामगारों के लिए और  एस्बेस्टस के सम्पर्क में आने वाले सभी आम लोगों के लिए सुरक्षात्मक उपाय मुहैया कराएं।

न्यायालय ने कहा कि केवल नियम कानून बनाने और लागू करने से ही वांछित परिणाम हासिल नहीं होगा। इसके लिए पेशेवर लोगों, उद्योगों और सरकारी संसाधनों का संकल्प तथा कानूनी और नैतिक प्रतिबद्धता जरूरी है। उच्चतम न्यायालय का यह वक्तव्य सीआरसी की सिफारिशों के अनुरूप है।

एस्बेस्टस का खनन अपने घातक परिणामों के कारण भारत में प्रतिबंधित होने के संदर्भ में एस्बेस्टस सीमेंट उत्पाद निर्माता संघ के एक सदस्य ने यह खुलासा किया कि क्रिसोटाइल एस्बेस्टस फाइबर ब्राजील, कनाडा और रूस से आयात किया जाएगा। एस्बेस्टस के इस प्रकार को भारत में पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाना है। आज वास्तविकता यह है कि ब्राजील और कनाडा एस्बेस्टस को प्रतिबंधित कर चुके हैं लेकिन भारत रूसी सफेद एस्बेस्टस के सबसे बड़े उपभोक्ता के रूप में उभरा है। हालांकि तकनीकी रूप से भारत सभी प्रकार के एस्बेस्टस के खनन और एस्बेस्टस कचरे के व्यापार को प्रतिबंधित कर चुका है।

सभी केंद्रीय मंत्रालयों और राज्य सरकारों से अपेक्षा थी कि वे उच्चतम न्यायालय के 27 जनवरी, 1995 और फिर 21 जनवरी, 2011 के पुनः निर्देश के विशेष दिशा-निर्देशों को लागू करें। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के जून 2006 के प्रावधानों को भी लागू किया जाना है, जिनके तहत सभी प्रकार के एस्बेस्टस के खनन, निर्माण, पुनः चक्रण और उपयोग पर पाबंदी लगाई गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2005 के प्रावधान में भी एस्बेस्टस का भावी उपयोग रोकने की बात कही गई थी। लेकिन इन सभी दिशा-निर्देशों की अब तक अवहेलना की गई।

न्यायालय ने अपने आदेश के संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन कार्यालय जिनेवा से प्रकाशित एन्साइक्लोपीडिया ऑफ आक्यूपेशनल हेल्थ एंड सेफ्टी के निर्देशों का भी हवाला दिया। इनके अनुसार मनुष्य और पशुओं को एस्बेस्टस के सम्पर्क में आने से रोकने की सलाह दी गई थी। पुस्तक में कहा गया है कि सभी प्रकार के एस्बेस्टस फाइब्रोसिस का कारण बनते हैं।  न्यायालय ने कहा कि इन्सुलेशन और अन्य प्रयोजनों में एस्बेस्टस फाइबर का उपयोग होने से सांस द्वारा फाइबर अंदर जाने के कारण रोगों की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता।

भारत सरकार के राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल के अनुसार एस्बेस्टस से होने वाले रोगों में बढ़ोतरी हो रही है। यहां तक कि 1990 के दशक की शुरुआत में ही एस्बेस्टस पर पाबंदी लगाने वाले देशों में भी यह संख्या बढ़ रही है। इसका कारण एस्बेस्टस के सम्पर्क में आने के बाद लम्बे समय में सामने आने वाले लक्षणों को बताया गया। रिपोर्ट में कहा गया कि एस्बेस्टस का उपयोग रोकने का परिणाम कई दशकों बाद इसके कारण होने वाली मौतों की संख्या में कमी के रूप में सामने आएगा। एस्बेस्टस का कोई सुरक्षित उपयोग निश्चित नहीं किया जा सकता और न ही विश्व स्वास्थ्य संगठन और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने इसके लिए कोई सुरक्षित सीमा तय की है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अहमदाबाद, हैदराबाद, कोयम्बतूर और मुम्बई की चार सीमेंट फैक्टरियों में  तीन प्रतिशत से पांच प्रतिशत तक कामगार एस्बेस्टस के कारण होने वाले रोगों से प्रभावित हैं। एस्बेस्टस टेक्सटाइल उद्योग में 10 वर्ष तक सम्पर्क में रहने के बाद 9 प्रतिशत कामगारों में एस्बेस्टोसिस पाया गया। जबकि भारत सरकार के नेशनल हेल्थ पोर्टल के अनुसार रोगों के लक्षण प्रकट होने में सम्पर्क की औसत अवधि 20 वर्ष की है। 

संसद में एक प्रश्न के उत्तर में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री ने कहा था कि ‘‘खनन मंत्रालय ने सूचित किया है कि एस्बेस्टस के नए खनन लीज़ की मंजूरी और मौजूदा खनन लीज़ों का नवीकरण देश में स्वास्थ्य कारणों से प्रतिबंधित कर दिया गया है।’’ उन्होंने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के अध्ययन परिणामों का भी हवाला दिया। इसके अनुसार एस्बेस्टस के घातक परिणामों में फेफड़े का कैंसर, प्ल्युरा में मेज़ोथेलियोमा और पेरिटोनियम तथा फेफड़े का रोग एस्बेस्टोसिस शामिल है।

अध्ययन के अनुसार सभी प्रकार के एस्बेस्टस फाइबर मनुष्यों में घातक रोगों के कारण मौत के लिए जिम्मेदार हैं। श्रम और रोजगार मंत्रालय के अंतर्गत फैक्ट्री परामर्श सेवा और श्रम संस्थान महानिदेशालय ने फैक्ट्री अधिनियम 1948 के तहत पंजीकृत फैक्ट्रियों में एस्बेस्टोसिस से ग्रस्त कामगारों का आंकड़ा दिया है। आंकड़ों के अनुसार गुजरात में 2010 में एस्बेस्टोसिस के 21 मामले और 2012 में महाराष्ट्र में 2 मामले पाए गए। यह जानकारी केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने एक लिखित उत्तर में संसद में दी और सरकार के पत्र सूचना कार्यालय ने इसे जारी किया।

घातक कचरों की सरकारी सूची की तरफ से भी बेपरवाही

भारत पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत घातक कचरा प्रबंधन और निस्तारण नियम 2008 की अनुसूची-1 को लगातार नजरअंदाज़ करता रहा है। घातक और हानिकर कचरों की सूची में 36 प्रकार के कचरों को शामिल किया गया है। इस सूची की क्रम संख्या 15 में एस्बेस्टस कचरा शामिल हैं। क्रम संख्या 16 में एस्बेस्टस कण और तंतु को रखा गया है। यहां यह गौरतलब है कि सभी एस्बेस्टस उत्पाद लम्बे समय तक बने रहते हैं। इसलिए, इनसे गर्द निकलने की आशंका बनी रहती है।

यहां यह उल्लेख किया जा सकता है कि भारत सरकार की अपर सचिव मीरा महर्षि के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने 22 जून 2011 को रोटरडम सम्मेलन के पक्षकारों की पांचवीं बैठक में क्रिसोटाइल एस्बेस्टस को घातक रासायनिक पदार्थों की सूची में रखे जाने का समर्थन किया था। विदेशी और घरेलू एस्बेस्टस कम्पनियों के दबाव में भारत अपने रुख से पलट गया और अवैज्ञानिक और अनैतिक रवैया अपनाता रहा।

अब तक सरकार ने इस तथ्य को नज़रअंदाज़ किया है कि घातक पदार्थों के परिवहन को लेकर संयुक्त राष्ट्र की विशेषज्ञ समिति ने क्रिसोटाइल एस्बेस्टस को घातक पदार्थों और पैकिंग ग्रुप की श्रेणी में रखा है। संयुक्त राष्ट्र वर्गीकरण और अंतर्राष्ट्रीय समुद्री परिवहन घातक वस्तु नियमों के अनुसार  इसकी संख्या 2590, श्रेणी 9 है।

सरकारी आदेशों के अंतर्विरोध

सरकार इस तरह से व्यवहार कर रही है जैसे इसके बाएं हाथ को यह नहीं मालूम कि दायां हाथ क्या कर रहा है। देश में लगभग आठ हजार रेलवे स्टेशनों से एस्बेस्टस छतें हटाए जाने की कार्रवाई के साथ वह संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में अपनी स्थिति किस तरह स्पष्ट कर सकेगी ?  महाराष्ट्र में राज्य को एस्बेस्टस मुक्त बनाने के लिए नए नियम तय किए गए हैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि बिहार के भोजपुर, मुजफ्फरपुर, वैशाली, पश्चिमी चम्पारण और मधुबनी में गांव वालों के सख्त विरोध के कारण एस्बेस्टस फैक्ट्री लगाने का फैसला रद्द करना पड़ा।

औद्योगिक रसायनों के लिए रसायन और पेट्रो रसायन विभाग निर्धारित राष्ट्रीय प्राधिकरण है। 24 फरवरी 2004 से रोटरडम सम्मेलन की पूर्व सूचित सहमति प्रक्रिया-पीआईसी के कानूनी रूप से बाध्यकारी दिशा-निर्देश प्रभावी होने के साथ इस प्राधिकरण पर विदेशी और घरेलू एस्बेस्टस कम्पनियों के चंगुल से निकलने का दायित्व है।

विभिन्न प्रतिभागी देशों को इन रसायनों के आयात को लेकर अपनी नीति से पीआईसी सचिवालय को अवगत कराना होगा। निर्यात करने वाले देश को प्रतिबंधित रसायनों के लिए निर्यात अधिसूचना आयात करने वाले देश को उपलब्ध करानी होगी। ये निर्यात अधिसूचना रसायन  और पेट्रो रसायन विभाग द्वारा जांची जाएगी और निर्यातक देश के निर्धारित राष्ट्रीय प्राधिकरण-डीएनए को जवाब भेजा जाएगा। भारत घातक और कैंसरकारी व्हाइट क्रिसोटाइल एस्बेस्टस के आयात के संदर्भ में इस प्रक्रिया से कैसे अलग रह सकता है?

घातक रसायनों की संयुक्त राष्ट्र सूची में व्हाइट क्रिसोटाइल एस्बेस्टस के शामिल नहीं हो पाने के बावजूद ये प्रामाणिक तथ्य है कि भारत सरकार को उच्चतम न्यायालय के 27 जनवरी 1995 के फैसले को लागू करने से कोई नहीं रोक सकता। 2006 के अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के प्रावधानों को भी लागू किया जा सकता है, जिनके तहत मानव स्वास्थ्य की रक्षा के लिए सभी प्रकार के एस्बेस्टस को समाप्त करने की बात कही गई है।

For Details: Gopal Krishna, LL.B., Ph.D, Ban Asbestos Network of India

(BANI)*/ToxicsWatch Alliance (TWA), E-mail: [email protected], Mb: 9818089660,

Web: www.asbestosfreeindia.org

*Ban Asbestos Network of India (BANI) has been working for freedom from asbestos related diseases since 2000.

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