अजीत सिंह*
कैमला, जो चंद रोज़ पहले तक एक अज्ञात सा गांव था, हाल ही में मीडिया की सुर्खियों में आया है। गत रविवार दस जनवरी को हरियाणा के मुख्यमंत्री को वहां...
विशाख राठी*
पिछले सप्ताह बृहस्पतिवार (17 दिसंबर) को पुस्तक आंदोलन से जुड़ी प्रमुख कार्यकर्ता और कई महत्वपूर्ण पुस्तकों की अनुवादक चंद्रकिरण राठी कोरोना के बाद उत्पन्न जटिलताओं के कारण चल बसीं। श्रीमती राठी...
इस वेब-पत्रिका में अजंता देव की कविताओं की यह तीसरी कड़ी है। पहले आप उनकी कविताएं यहाँ और यहाँ पढ़ चुके हैं। इस बार की कविताएं कुछ अलग मिजाज़ की हैं लेकिन फिर भी जिन लोगों...
ओंकार केडिया*
मास्क - 1
तुम्हारे मुँह और नाक पर
मास्क लगा है,
पर तुम बोल सकते हो,
विपुल मयंक*
असलम का दोस्त था इरफ़ान। पकिया। दोनों क्लास दस में थे - एक ही स्कूल में! असलम की कोठी के बग़ल में थी इरफ़ान की कोठी। दोनों कोठियों के बड़े अहाते...
पारुल हर्ष बंसल*
दस्तक
बदला-बदला और अजनबी सा है
रुख हवाओं का...आंधियों की हो चुकी है दस्तक....बंद करना दरवाज़े और
खिड़कियों का
लाज़मी...
पूनम जैन*
कल बिहार विधानसभा चुनाव की तिथियों की घोषणा होते ही एकबारगी फिर याद ताज़ा हो आई उन प्रवासी मज़दूरों की जिन्हें कुछ माह पहले अचानक ही अपने घरों को लौटने को...
अमरदीप*
सिर्फ धूप पहनना
सुनो
आज तुम धूप पहनना
सिर्फ धूप
सजा लेना
अपनी माँग में!
पारुल हर्ष बंसल*
एक चुटकी सिंदूर
एक चुटकी सिंदूर,
जिसकी क्रय वापसी है अति दुर्लभ।
आ गिरी दामन में...
डा. शैलेन्द्र त्रिपाठी*
1.
समझो तो समझ लो इशारा ना करेंगेरोकर अपनी बात दोबारा न करेंगे।