अव्यक्त* क्या आप किसी ऐसे सफल व्यवसायी की कल्पना कर सकते हैं जिसने सफल होते हुए भी अपनी कोई व्यक्तिगत संपत्ति ना बनाई हो, उसका कोई व्यक्तिगत बैंक अकाउंट ही ना हो? हमसे...
ओंकार केडिया* इन उजड़ी झोंपड़ियों के आसपास कुछ टूटी चूड़ियां हैं,कुछ बदरंग बिंदियाँ हैं,कुछ टूटे फ्रेम हैं चश्मों के,कुछ तुड़ी-मुड़ी कटोरियाँ हैं.यहाँ कुछ अधजली बीड़ियाँ हैं,कुछ...
राजेन्द्र भट्ट* शाहरुख की फिल्म 'जवान' देखने के बाद राजेन्द्र भट्ट के मन में जो विचार उमड़े-घुमड़े, उनको उन्होंने यहाँ दर्ज कर दिया! अपने शाहरुख की ‘जवान’ मैंने पूरी...
राकेशरेणु* स्त्री - एक एक दाना दोवह अनेक दाने देगीअन्न के। एक बीज दोवह विशाल वृक्ष सिरजेगीघनी छाया और फल के। एक कुआँ खोदोवह जल...
डॉ. शालिनी नारायणन* “अबे गुवाहाटी लगे आए वाली ट्रेन पहुँच रही है, चल चला"। ननकउ उसकी कनपटी पर हाथ मार कर लपक लिया प्लेटफॉर्म नंबर एक की ओर। पता नहीं कैसे रिंकूआ की...
ओंकार केडिया परिंदों! मत इतराओ इतना और भ्रम में मत रहना कि यह दुनिया अब हमेशा के लिए तुम्हारी हुई!
पुष्पिता अवस्थी* 1. वसंत धरती से उपजता है वसंत अंगड़ाई लेता हुआ हवाओं में  बदल देता है पृथ्वी को अपनी ही प्रकृति...
ओंकार केडिया* इस वेब पत्रिका के लिए बीच-बीच में कविताएं लिखते रहे हैं। यह उनकी कुछ नई कविताएं हैं। घटना या दुर्घटना ? सालों...
सत्येन्द्र प्रकाश* इस लेख में मैं आज आपको अपने गाँव की तीन महिलाओं की कहानी सुनाऊँगा। पर पहले ही बता दूँ कि ये कहानी असाधारण महिलाओं की नहीं है। बल्कि अति साधारण ऐसी तीन...
1 - ज़िन्दगी के इस सफ़र में आये कैसे मरहलेबघनखे हाथों में लेकर लोग मिलते हैं गले ! मैं जिरहबख़्तर पहनकर घूमता हूं शहर मेंऔर आख़िर दूर करता हूं दिलों...

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