मोपांसा*
(अनुवाद एवं कहानी के अंत में समीक्षा राजेन्द्र भट्ट** द्वारा)
मृत्यु के समय वह गौरव के शिखर पर पहुँच गया था। बड़ी अदालत का मुख्य न्यायाधीश था वह...
नरेश जोशी*
किस्से कहानी सुनते आए थे, महाराज अचानक सोते उठते, कभी तो नाक पर मक्खी को उड़ाते प्रजा की चिंता कर बैठते थे। फिर क्या था, आनन-फानन महाराज खुद मुनादी कर...
Ajeet Singh*
(Radio-Vaani 7) - Special on Kargil Vijay Divas 26th July
Kargil was largely a deserted town when our cavalcade reached here in the midst...
Introducing a recently published book on healthcare
Vidya Bhushan Arora*
Besides Roti, Kapda aur Makan, healthcare is one of the most vital determinants of people’s wellbeing. India, like other countries...
अमरदीप*
सिर्फ धूप पहनना
सुनो
आज तुम धूप पहनना
सिर्फ धूप
सजा लेना
अपनी माँग में!
डॉ. शालिनी नारायणन*
वैसे तो अपने आप में यह कहानी स्वतंत्र रूप से भी पढ़ी जा सकती है लेकिन यदि आप इसका पिछला भाग पढ़ना चाहें तो यहाँ पढ़ सकते हैं।
ओंकार केडिया*
उन्होंने कहा,
मरने के लिए तैयार रहो,
सारा इंतज़ाम है हमारे पास-
गोली, चाकू, डंडा, फंदा,
तुम ख़ुशकिस्मत हो,
पारुल हर्ष बंसल*
-1- चाहत
तुमने मुझे चाहा
और मैंने तुम्हें चाहा
रहमत बरसाए उनपे खुदा
जिन्होंने तुम्हें और मुझे...
प्रेम चंद जयंती (31 जुलाई) पर विशेष
राजेंद्र भट्ट*
कथाकार प्रेमचंद की कथाओं - तावान और गुल्ली-डंडा पर प्राध्यापकों और समालोचकों की भाषा-शैली की बजाय साधारण पर संवेदनशील और ‘फोकस्ड’ पाठक...
कर्नल अमरदीप* इस वेबपत्रिका के लिए नए नहीं हैं। आप पहले भी उनकी कवितायें यहाँ देख सकते हैं। आज प्रकाशित की जा रही ये दोनों कवितायें सुकोमल अनुभूतियों की ...