कागद कारे

कागद कारे

ज्योति शर्मा* काली मैना (ससुराल से वापस आने के बाद एक बेटी कीअपनी माँ से बातचीत ) संस्कारों की पोटली इतनी भारीकि उसको ढोते-ढोते मैंने...
सुभद्रा कुमारी चौहान की कविताओं के बहाने राजेन्द्र भट्ट ने इस लेख में यह सिफ़ारिश की है कि कविताओं को पढ़ते-गुनते समय अगर आप अपना बुद्धिजीवी और अति-गंभीर होने का आग्रह छोड़ कर समालोचना करेंगे तो इस...
कर्नल अमरदीप* इस वेबपत्रिका के लिए नए नहीं हैं। आप पहले भी उनकी कवितायें यहाँ देख सकते हैं। आज प्रकाशित की जा रही ये दोनों कवितायें सुकोमल अनुभूतियों की ...
Ajeet Singh* (Radio-Vaani 2) World media had assembled in Simla (now Shimla) for the coverage of the historic Simla Summit between India and Pakistan in July 1972...
ओंकार केडिया* बेटे, बहुत राह देखी तुम्हारी, बहुत याद किया तुम्हें, अब आओ, तो यहीं रहना, खेत जोत लेना अपना,
क्या खूँटी पर लटके दिन देखे तुमने या फिर बिस्तर पर लेटी रातें करवटें बदलते पहर और घंटे या फिर तुमने देखे  दर्द से कराहाते पल?
विद्या भूषण शब्दो! सुनो तुम यहाँ-वहाँ यूँ ही बिखर क्यों जाते हो? कभी तो बिखरी स्याही की तरह बेतरतीब से...
इस वेब-पत्रिका में अजंता देव की कविताओं की यह तीसरी कड़ी है। पहले आप उनकी कविताएं यहाँ और यहाँ पढ़ चुके हैं। इस बार की कविताएं कुछ अलग मिजाज़ की हैं लेकिन फिर भी जिन लोगों...
आईसक्रीम - कुछ क्षणिकाएं ओंकार केडिया* हम दोनों ऐसे मिले,जैसे अलग-अलग फ़्लेवर की आइसक्रीम,अब तुम तुम नहीं रही,मैं मैं नहीं रहा,काश कि मिलने से पहलेहमें पता होताकि यह नया फ़्लेवरन तुम्हें...
Onkar Kedia* He was a poet or so he claimed and always on a look out for people who could listen to his verses. I was one...

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