सोते जागते यहीं कहीं जो रह जाता फिर वहीं भूल कर याद रह जाता मैंने रोपा था उखड़े पेड़ की छाया को आकाश के संताप को अपने सीने पर सांस भर एक दम
क्या खूँटी पर लटके दिन देखे तुमने या फिर बिस्तर पर लेटी रातें करवटें बदलते पहर और घंटे या फिर तुमने देखे  दर्द से कराहाते पल?
........अनुवाद - राजेंद्र भट्ट 2018 का वर्ष अपने हिसाब से इतिहास में तोड़-मरोड़, देशद्रोह और देशभक्ति के सर्टिफिकेट देने और बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं बनाने के गौरव-यशोगान में पिछले वर्षों के रिकॉर्ड तोड़ता...
Smita Vats Sharma Do you recollect the FB picture of that radiant school friend of mine as she stood next to her newly minted MBA son at his graduation ceremony? And that one...

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