सत्येन्द्र प्रकाश* बुधवार की शाम थी। प्रिंसिपल साहब के घर बच्चे तैयार हो रहे थे। बुधवार की शाम को टीचर्स ट्रैनिंग स्कूल में संगोष्ठी का आयोजन होता था। प्रशिक्षु शिक्षक संगोष्ठी में अपने अपने...
डॉ. शालिनी नारायणन* वैसे तो अपने आप में यह कहानी स्वतंत्र रूप से भी पढ़ी जा सकती है लेकिन यदि आप इसका पिछला भाग पढ़ना चाहें तो यहाँ पढ़ सकते हैं।
अजीत सिंह* कहावत है कि भाई आपके दाएं हाथ की तरह होता है। दुख सुख का साथी, मुसीबत में आपके साथ जूझने को तैयार, आपका विश्वसनीय हथियार! आज मैंने अपना वो...
राजेन्द्र भट्ट* शाहरुख की फिल्म 'जवान' देखने के बाद राजेन्द्र भट्ट के मन में जो विचार उमड़े-घुमड़े, उनको उन्होंने यहाँ दर्ज कर दिया! अपने शाहरुख की ‘जवान’ मैंने पूरी...
डॉ. शालिनी नारायणन* “अबे गुवाहाटी लगे आए वाली ट्रेन पहुँच रही है, चल चला"। ननकउ उसकी कनपटी पर हाथ मार कर लपक लिया प्लेटफॉर्म नंबर एक की ओर। पता नहीं कैसे रिंकूआ की...
सत्येन्द्र प्रकाश* बीते सावन (अगस्त 2023) सैंतालीस वर्ष हो गए मनभरन काका को मृत्युलोक छोड़े हुए। उन्नीस सौ छिहत्तर, जिस वर्ष देश में आपात काल लगे एक साल हो गया था, की बात...
A Short Story by Satish Pandya* After widespread death, deprivation and destruction, Second World War ultimately ended, but not before two atomic bombs, euphemistically called ‘Little Boy’ and ‘Fat Boy’, decimated Hiroshima on...
ओंकार केडिया* इस वेब पत्रिका के लिए बीच-बीच में कविताएं लिखते रहे हैं। यह उनकी कुछ नई कविताएं हैं। घटना या दुर्घटना ? सालों...
रोज़ बात किया करो दोस्त रोज़ बात किया करो दोस्त दूर से ही सही रोज़ मुझे यक़ीन दिलाया करो
A Short Story by Satish Pandya* It is a two hundred year old story from the heart of Avadh. Under the suzerainty of Azim Akhtar, a wealthy agriculturist, Malihabad, a small village, not...

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