संकल्प
घूम-घूम कर आता है
वह ज़िद्दी मच्छर,
भिनभिनाता है
मेरे कानों के पास,
जैसे बजा रहा हो
1. खड़ीक* का पेड़
मैं किसी को नहीं जानता था
मैं सबको भूल जाऊँगा
पर
मैं पत्थर था बहते पानी में
कर्नल अमरदीप* इस वेबपत्रिका के लिए नए नहीं हैं। आप पहले भी उनकी कवितायें यहाँ देख सकते हैं। आज प्रकाशित की जा रही ये दोनों कवितायें सुकोमल अनुभूतियों की ...
Ajeet Singh*
(Radio-Vaani 7) - Special on Kargil Vijay Divas 26th July
Kargil was largely a deserted town when our cavalcade reached here in the midst...
प्रेम चंद जयंती (31 जुलाई) पर विशेष
राजेंद्र भट्ट*
पिछले वर्ष प्रेमचंद जयंती (31 जुलाई 2020) के अवसर पर रागदिल्ली में अपने लेख में मैंने उनकी...
प्रेम चंद जयंती (31 जुलाई) पर विशेष
राजेंद्र भट्ट*
कथाकार प्रेमचंद की कथाओं - तावान और गुल्ली-डंडा पर प्राध्यापकों और समालोचकों की भाषा-शैली की बजाय साधारण पर संवेदनशील और ‘फोकस्ड’ पाठक...
मोपांसा*
(अनुवाद एवं कहानी के अंत में समीक्षा राजेन्द्र भट्ट** द्वारा)
मृत्यु के समय वह गौरव के शिखर पर पहुँच गया था। बड़ी अदालत का मुख्य न्यायाधीश था वह...
Ajeet Singh*
(Radio-Vaani 8) – Special on the 20th Anniversary of 9/11
On the first anniversary of the 9/11 attacks on its World Trade Centre towers in New York and the...
Nupur Joshi*
When Kavi was a young girl
she would sit by her window sill
looking out at her garden,
dreaming...
पारुल हर्ष बंसल*
-1- चाहत
तुमने मुझे चाहा
और मैंने तुम्हें चाहा
रहमत बरसाए उनपे खुदा
जिन्होंने तुम्हें और मुझे...