राजेन्द्र भट्ट*
बच्चों के दिलों-दिमागों में बहुत बड़प्पन और समझदारी होती है। दरअसल ‘सेनाइल’ यानी खड़ूस होना कोई पेजमार्क नहीं है कि साठ साल के बाद ही शुरू हो। यह तो उम्र के शुरू के पड़ावों से ही...
प्रेम चंद जयंती (31 जुलाई) पर विशेष
राजेंद्र भट्ट*
पिछले वर्ष प्रेमचंद जयंती (31 जुलाई 2020) के अवसर पर रागदिल्ली में अपने लेख में मैंने उनकी...
विनोद रिंगानिया*
असम में खूब चर्चित और असम के बाहर भी अपनी अच्छी पहचान बना चुके साहित्यकार विनोद रिंगानिया ने अपने हाल ही में प्रकाशित ऐतिहासिक उपन्यास "डॉ वेड की डायरी - असम में...
ओंकार केडिया*
मैं सरहद के इस ओर से देखता हूँ
उस ओर की हरियाली,
कंटीली तारें नहीं रोक पातीं
मेरी लालची नज़रों को.
क्या खूँटी पर लटके दिन देखे
तुमने
या फिर बिस्तर पर लेटी रातें
करवटें बदलते पहर और घंटे
या फिर तुमने देखे
दर्द से कराहाते पल?
अजंता देव*
वह थोड़ा हंसा और सोचने लगा कि री की नज़र कहाँ-कहाँ जाती थी। उसे कई बार अपना जीवन बेस्वाद लगता था - वही एक कमरा, वही एक काम। सुबह से...
अजीत सिंह*
कहावत है कि भाई आपके दाएं हाथ की तरह होता है। दुख सुख का साथी, मुसीबत में आपके साथ जूझने को तैयार, आपका विश्वसनीय हथियार!
आज मैंने अपना वो...
खंडहर
नष्ट करो मुझे पूराआधा नष्ट अपमान है निर्माण कामेरा पुनर्निर्माण मत करनामत करना मेरे कंगूरों पर चूना आधे उड़े रंग वाले भित्तिचित्र ध्वस्त करनाले जाने देना चरवाहे को मेरी...
ओंकार केडिया*
एक उदास सी चिड़िया
वक़्त-बेवक्त
कभी भी आ जाती है
मुझसे मिलने,
मेरा हाल जानने!
विपुल मयंक*
प्रिंसि का ऑफ़िस भरा था – खचाखच। टीचर्स, डीन, स्टूडेंट्स यूनियन के मेंबर्स, प्रिन्सपल खुद और था एक्यूसड् – आलोक जोशी।
आलोक कॉलेज का फेमस डिबेटर था। कल हॉस्टल...