प्रेम चंद जयंती (31 जुलाई) पर विशेष
राजेंद्र भट्ट*
पिछले वर्ष प्रेमचंद जयंती (31 जुलाई 2020) के अवसर पर रागदिल्ली में अपने लेख में मैंने उनकी...
आईने
आईने देखना मैंने बहुत बाद में जाना
बचपन में तो मौसियां बना देती थीं मेरे बालों की दो चोटियां
विपुल मयंक*
प्रिंसि का ऑफ़िस भरा था – खचाखच। टीचर्स, डीन, स्टूडेंट्स यूनियन के मेंबर्स, प्रिन्सपल खुद और था एक्यूसड् – आलोक जोशी।
आलोक कॉलेज का फेमस डिबेटर था। कल हॉस्टल...
कर्नल अमरदीप* इस वेबपत्रिका के लिए नए नहीं हैं। आप पहले भी उनकी कवितायें यहाँ देख सकते हैं। आज प्रकाशित की जा रही ये दोनों कवितायें सुकोमल अनुभूतियों की ...
क्षणिकाएं
१- एक पंक्ति जब मचाती हैअंतर्द्वंद मध्यरात्रिभोर तक उसकादम घुट चुका होता है२-बड़ी बेचैन थी वो पंक्तिखुद को पन्ने परन्योछावर करने कोऔर अपनी काया परचित्रकारी पाने को३-पंक्तियों का पंक्तिबद्ध ना होनाअर्थ के अनर्थ...