धीरज सिंह*
कुछ है जोमुँह बाये खड़े ह्रास के बीच भीअपने शिल्प की ज़िद सींचता रहता है
कुछ है जोअंत के नंगे सच परहसरतों का कोहरा बुनता रहता है
पारुल हर्ष बंसल*
एक चुटकी सिंदूर
एक चुटकी सिंदूर,
जिसकी क्रय वापसी है अति दुर्लभ।
आ गिरी दामन में...
सत्येन्द्र प्रकाश*
बुधवार की शाम थी। प्रिंसिपल साहब के घर बच्चे तैयार हो रहे थे। बुधवार की शाम को टीचर्स ट्रैनिंग स्कूल में संगोष्ठी का आयोजन होता था। प्रशिक्षु शिक्षक संगोष्ठी में अपने अपने...
ओंकार केडिया*
मुझे नहीं देखने
शहरों से गाँवों की ओर जाते
अंतहीन जत्थे,
सैकड़ों मील की यात्रा पर निकले
थकान से...
इस वेब-पत्रिका में अजंता देव की कविताओं की यह तीसरी कड़ी है। पहले आप उनकी कविताएं यहाँ और यहाँ पढ़ चुके हैं। इस बार की कविताएं कुछ अलग मिजाज़ की हैं लेकिन फिर भी जिन लोगों...
Introducing a recently published book on healthcare
Vidya Bhushan Arora*
Besides Roti, Kapda aur Makan, healthcare is one of the most vital determinants of people’s wellbeing. India, like other countries...
सत्येन्द्र प्रकाश*
इस कहानी का पहला भाग आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
हरसिंगार होली के दिन मौलवी साहब के साइकिल को जाते हुए दूर तक देखता रहा। कचनारों की...
सत्येंद्र प्रकाश*
सत्येंद्र प्रकाश इस वेब पत्रिका पर पिछले कुछ समय से निरंतर लिख रहे हैं और मानव मन की अतल गहराइयों को छू सकने की अपनी क्षमता से हमें अच्छे से वाक़िफ...
डा. शैलेन्द्र त्रिपाठी*
1.
समझो तो समझ लो इशारा ना करेंगेरोकर अपनी बात दोबारा न करेंगे।
गौरी डे *
पेड़ का धर्म
पेड़ एक, जड़ अनेकबढ़ता है पेड़और बढ़ती हैं टहनियाँ भी
बढ़ा हुआ पेड़ छाया देता हैऔर वो...