“भाजपा को 210 सीटें भी मिल गई तो सरकार वही बनाएगी”

अखबारों से – 10

अंग्रेज़ी अखबारों में गठबंधन सरकारें बुरी नहीं होती बल्कि कई मायनों में बेहतर होती हैं, यह विमर्श लगातार चल रहा है। आज भी कम से कम दो अखबारों में इस विषय पर लंबे लेख हैं। यह तो हम अपनी वैबसाइट पर कई बार बता चुके हैं कि एक्स्पर्ट्स के अनुसार देश का आर्थिक विकास बहुत बार गठबंधन सरकारों में ही बेहतर होता है। आज इन लेखों में उठाए गए दूसरे पहलुओं को संक्षेप में  देखते हैं।

हिन्दू ने राजनीतिशास्त्र के दो प्रख्यात विद्वानों सुहास पालशीकर और इरफान नुरूद्दीन से बातचीत प्रकाशित की है जिसमें दोनों ने गठबंधन सरकार के विभिन्न पक्षों और आजकल चल रहे लोकसभा चुनावों के संदर्भ में चर्चा की है। सबसे पहले तो एक निराशाजनक नोट पर बात शुरू करते हैं। सुहास ने बातचीत के अंत में कहा कि यदि इस बार भाजपा को केवल 210 सीटें भी मिलीं तो सरकार वही बना लेगी क्योंकि वह क्षेत्रीय दलों का समर्थन पाने के लिए उन्हें कई प्रकार के प्रलोभन दे देगी जैसे केंद्र सरकार में अच्छे मंत्रालय, उनके राज्यों को विशेष पैकेज इत्यादि।

जो लोग सोचते हैं कि सीट कम होने से भाजपा को मजबूर होकर मोदी की जगह प्रधानमंत्री के तौर पर किसी और का नाम सामने लाना पड़ेगा तो वो गलती पर हैं। सुहास के अनुसार पहले की तरह प्रधानमंत्री कार्यालय में सारी शक्ति केन्द्रित होगी और मोदी वैसे ही काम करेंगे जैसे वह अब तक करते रहे हैं। लेकिन ये स्पष्ट करना आवश्यक है कि सुहास ने इस पर कोई अनुमान नहीं लगाया है कि सीटें आएंगी कितनी।

इसी बातचीत में इरफान नूरुद्दीन ने कहा कि नोटबंदी जैसा कदम एक गठबंधन सरकार में उठाना मुश्किल था क्योंकि यह बहुत मुश्किल होता कि यदि आप किसी दल पर सचमुच सरकार बचाने के लिए निर्भर कर रहे हैं तो उसको नोटबंदी जैसे अनिश्चित परिणाम वाले कदम के लिए राज़ी करना। इरफान अपनी किताब Coalition Politics and Economic Development का ज़िक्र करते हुए कहते हैं कि उसमें प्रमाण सहित ये बताया गया है कि गठबंधन की सरकारों के समय आर्थिक वृद्धि दर बेहतर रहती है और आमतौर पर विदेशी पूंजी निवेश भी बेहतर होता है।

इस बातचीत के क्रम में यह भी आया कि भारत में अब तक जो गठबंधन हुए हैं, वो सैद्धांतिक आधार पर नहीं बल्कि सुविधा के आधार पर ज़्यादा हुए हैं और इस तरह के गठबंधन में भ्रष्ट आचरण की गुंजाइश भी ज़्यादा रहती है।  लेकिन फिर एक निष्कर्ष ये भी था कि भारत में जिस तरह की क्षेत्रीय विविधता है, उसमें क्षेत्रीय संतुलन के लिए गठबंधन एक कारगर औज़ार है। उदाहरण के लिए, वे कहते हैं, भाजपा ने 2014 के चुनावों में केवल 31% वोट शेयर से ही 282 सीटें पा लीं और उसकी गठबंधन की मजबूरी समाप्त हो गई जबकि उसके ये 31% वोट भी देश के गिने-चुने हिस्सों से ही आए थे। ऐसे में अंदाज़ लगाया जा सकता है कि क्षेत्रीय संतुलन के लिए गठबंधन सरकार का बनना कितना महत्वपूर्ण होता है।

जामिया मिलिया विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र पढ़ाने वाले शेख मुजीबुर रहमान ने मिंट अखबार में इस विषय पर लिखा है कि एक स्थिर सरकार और एक गठबंधन की सरकार के अलग अलग फायदे-नुकसान होते हैं लेकिन इतना तो निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि कम स्थिर सरकार भी ऐसे काम कर सकती है जो लोकतन्त्र के लिए अच्छे हों। उदाहरण के लिए, वो लिखते हैं, 1977-79 के वर्षों में देसाई सरकार ने आपातकाल में इदुरुपयोग न्दिरा गांधी द्वारा लाये गए सारे ऐसे क़ानूनों को रद्द करवाया जो लोकतन्त्र के खिलाफ थे। इसी तरह, अगर इस बार यूपीए की (या कोई भी) गठबंधन सरकार आ जाती है तो वह भी ‘लिंचिंग’ के खिलाफ कोई प्रभावी कानून बना सकती है या देशद्रोह के कानून के दुरुपयोग पर रोक लगाने के लिए कदम उठा सकती है।

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