गठबंधन सरकार कोई बुरी बात नहीं

अखबारों से – 9

आज के इकॉनॉमिक टाइम्स में संजय हजारिका का मुख्य-लेख है जिसका निहितार्थ यही है कि भारत जैसे जटिल देश के लिए एक मिली-जुली सरकार ही सर्वश्रेष्ठ साबित हो सकती है बशर्ते इसमें शामिल दल अपना सांझा एजेंडा और लक्ष्य पहले से ही बना लें। किसी कारण से इस लेख का लिंक देर दोपहर बाद तक भी इकॉनॉमिक टाइम्स की वैबसाइट या उनकी ब्लॉग वाली वैबसाइट पर उपलब्ध नहीं है। आम तौर पर इस अखबार के मामले में ऐसा नहीं होता और ये अपने ऐसे लिंक सुबह के पहले कुछ घंटों में ही पब्लिक कर देते हैं। कहीं गठबंधन सरकार को देश के लिए श्रेष्ठ ‘रेसिपी’ बताने के कारण ही तो इसको दबाया नहीं जा रहा?

संजय इस लेख में कहते हैं कि भारत जैसे देश में जहां इतनी ज़्यादा राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, क्षेत्रीय, जातीय, भाषाई और धार्मिक विविधताएँ हैं, वहाँ एक गठबंधन सरकार से बेहतर कुछ नहीं हो सकता।

लेखक आपातकाल के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनावों की याद दिलाते हैं और कहते हैं कि उस समय इन्दिरा जी अजेय लगती थीं लेकिन जनता ने उन्हें पटखनी दे दी और उस समय भी कई राजनैतिक दलों को मिलाकर जनता पार्टी नमक गठबंधन तैयार किया गया था। हालांकि वो सरकार आंतरिक द्वंदों और अंतर्विरोधों के चलते अपना कार्यकाल पूरा ना कर सकी लेकिन लेखक का कहना है कि जब इन्दिरा जी के एक-पार्टी वाले शासन के विकल्प की देश को ज़रूरत महसूस हुई तो वह तैयार हो गया।

लेखक मिली-जुली सरकारों के अपने तर्क को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि उस समय इन्दिरा जी ने भी इस गठबंधन को ‘खिचड़ी’ का नाम दिया था लेकिन वह याद दिलाते हैं कि उस समय कांग्रेस छोड़ कर जनता पार्टी में आए बाबू जगजीवन राम जनसभाओं में कहते थे कि जब हाजमा खराब हो जाये तो खिचड़ी ही सर्वश्रेष्ठ खाना होता है। स्वाभाविक है कि उनकी इस बात को पूरा जन-समर्थन मिलता था।

लेखक कहते हैं कि यदि 23 मई को आने वाले चुनाव-परिणाम देश को एक गठबंधन सरकार देते हैं तो इतनी विविधताओं से भरे इस देश को शांतिपूर्वक और सबसे ज़्यादा प्रतिनिधितात्मक ढंग से चलाने में मदद मिलेगी।

हमारा मत: हम तो इस वैबसाइट पर एक लेख इसी विषय पर दे चुके हैं जिसका शीर्षक ही था “ये खिचड़ी उतनी बेस्वाद भी नहीं होती” और इसमें आधिकारिक आंकड़ों के दम पर ये बताया गया है कि गठबंधन सरकारों के समय अर्थव्यवस्था बेहतर काम करती है। उस लेख में यह बताया गया है कि ये बात सिर्फ भारत के लिए ही नहीं, अन्य यूरोपीय राष्ट्रों के लिए भी सच है जहां पिछले कई दशकों से गठबंधन सरकारें ही बनतीं हैं। इसके अलावा भारत के लिए तो ये और भी ज़्यादा ज़रूरी है क्योंकि अगर बाकी विविधताओं को एक बार नज़र-अंदाज़ भी कर दें तो देश में भाषाई विविधता ही इतनी है कि गठबंधन सरकारें ही सब क्षेत्रों का आदर्श प्रतिनिधित्व कर सकती हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here