स्वराज्य धर्म का शक्ति पुरुष – डॉ. सुब्बाराव

प्रो0 पुष्पिता अवस्थी*

डॉ एस एन सुब्बा राव यानि भाई जी का विदेह होना ही हार्दिक व्यथा का कारण बन गया है। स्वाधीनता और स्वराज के वे सिद्ध साधक थे। वे अनासक्ति के साधक इसलिए भी हो सके कि उनकी आसक्ति का आधार विश्व मानवता और स्वदेश रहा सदैव। गाँधीत्व की सचेतन चेतना की जागृति सदैव उनकी वाणी में धुन की तरह बजती रहती थी। सुब्बाराव जी की स्व से परे स्वदेशधर्मी विलक्षण दृष्टि थी। इसीलिए भी अपनी उपस्थिति भर से वे सम्पूर्ण समुदाय और जलसे अपनी आत्मीयता की आँखों में समेट लेते थे। जिधर देखते थे, वहाँ का जन-सैलाब उनकी दृष्टि के आगोश में भेद-रहित होकर समा जाता था। भाई जी, राष्ट्र को भजने के क्रम में राष्ट्र के नागरिकों को भजते थे। गहरे अर्थों में राष्ट्र के नागरिक ही राष्ट्र होते हैं और उन्हीं से राष्ट्र की अस्मिता अपना आकार लेती है।

राष्ट्र का अविस्मरणीय अस्तित्व राष्ट्र के समर्पित नागरिकों के अस्तित्व से निर्मित होता है। वे सदेह रहें या न रहें लेकिन राष्ट्र की आत्मा में सदैव रहते हैं। राष्ट्र की स्वाधीनता का इतिहास पुराना हो सकता है लेकिन स्वाधीनता के इतिहास की शक्ति कभी पुरानी और प्राचीन नहीं हो सकती है। उसी तरह इतिहास पुरुष कभी अतीत नहीं होते हैं। अपनी विचारों की वाणी से सदैव सहचर रहते हैं। इसलिए वे एक साथ मन-मानस और आत्मा की जीवंत शक्ति सिद्ध होते हैं।

विश्व जिस समय प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध की हिंसा से रक्तरंजित था और विश्व में चारों ओर हिंसा की आग धधक रही थी, उस समय गाँधी जी ने धरती की यज्ञ वेदिका में अहिंसा की समिधा का प्रयोग प्रारम्भ किया। भारत की स्वाधीनता की इस पावन ज्वाला को प्रज्वलित करने हेतु 9 अगस्त 1942 का एस0 एन0 सुब्बाराव जी (पूरा नाम सलेम नजुन्दैया सुब्बाराव) अपने सहपाठी मित्रों के साथ कक्षाओं का बहिष्कार करते हुए स्वतंत्रता आंदोलन में प्राणपण से शामिल हुए थे। ब्रिटिश सरकार जब इन्हें गिरफ्तार कर रही थी तब वे सड़क की दीवारों और अपने सामने की सड़क पर ‘अंग्रजों भारत छोड़ो’ लिखते हुए आगे बढ़ रहे थे। यह लिखना अंग्रेजों के पाँवों के नीचे लिखना था।

स्वाधीनता के लिए समर्पित युवाशक्ति ने महात्मा गाँधी को अपनी शक्ति बना लिया था। एक स्थानीय संगठन ‘गाँधी साहित्य संघ’ के बैनर तले डा0 सुब्बाराव जी ने मजदूरों के मुहल्लों में प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम आयोजित करने के लिए युवाओं की सभाओं और कार्यक्रमों के आयोजन का नेतृत्व किया जिसके परिणामस्वरूप 1946 में गुरलहोसुर (जिला बेलगाम) में 31 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर के लिए उनका चयन किया गया। इसके बाद सम्पूर्ण भारत में सुब्बाराव जी ने युवा शिविरों के आयोजनों का अबाधित सिलसिला शुरु कर दिया। जहाँ उन्हें जबरदस्त सफलता मिली और उस समय के शिखर के स्वाधीनता सेनानियों के बीच इन्हें अविस्मरणीय सम्मान का वैभव मिला।

सन् 1969 के गाँधी शताब्दी वर्ष में डा0 सुब्बाराव जी को ‘गाँधी दर्जन ट्रेन’ के निदेशक के रूप में नामित किया गया। इसमें सुब्बाराव जी एक साल की लम्बी यात्रा पर निकले और गाँधी साहित्य एवं सेवाओं को लेकर हजारों स्वयंसेवकों को साथ लेकर रचनात्मक कार्यों को करते हुए मूल्यवान बढ़ावा दिया। ऐसे राष्ट्रसेवक एवं देशभक्त पद्मश्री डा0 सुब्बाराव का जन्म 1929 में बंगलौर में हुआ और 27 अक्टूबर 2021 को राजस्थान जयपुर में देहावसान हुआ। विश्व नागरिक होने के बावजूद भाई जी की राष्ट्रीयता सदैव भारतीय ही रही क्योंकि यह उनकी आत्मा की निर्बाध राष्ट्रीयता थी।

जब 1954 में श्री सुब्बाराव चंबल के इलाकों से गुजरे तो उन्हें चंबल के युवाओं के लिए रचनात्मक शैक्षिक माड्यूल के महत्व की अनुभूति हुई। यह अवधारणा थी, जिसने इस क्षेत्र में आश्रम शिविरों के संगठन में योगदान दिया। जब चंबल की घाटी डाकुओं के डर से सिहर रही थी उस समय डा0 सुब्बाराव जी ने वहाँ अपना डेरा डाला था। डाकुओं के सामने आने और बंदूक तानने पर वे ध्यान-प्रार्थना में लीन हो जाते थे। हिंसा के प्रतिरोध में वे अहिंसक साधक की तरह उन सबके बीच रहे। उन्हें समझाया-मनाया। जब नहीं माने तो अपने परिवार के लोगों को उनके पास ले गए कहा कि हम तुम्हें नया जीवन देंगे। इन्होंने मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाशचंद्र सेठी से मुलाकात की और डकैतों के लिए एक खुली जेल की स्थापना करवाई। उनके खिलाफ सभी मामले माफ करवा दिए। उनके परिवार के सदस्यों को पुलिस में नौकरी की व्यवस्था और खेती के लिए ज़मीन की व्यवस्था की गई। तब 1970 के दशक में जौरां के पास पगारा गाँव में 70 डाकुओं ने एक साथ आत्मसमर्पण किया था। उस समय आचार्य विनोबा भावे, लोकनायक जयप्रकाश नारायण और मुख्यमंत्री प्रकाशचंद्र सेठी जी मौजूद थे। इसके अतिरिक्त अपनी गाँधीवादी विचारधारा के बलबूते डा0 सुब्बाराव जी ने जौरा आश्रम से 450 दस्युओं  और राजस्थान से 100 दस्युओं को गाँधी जी की तस्वीर के सामने हथियारों का आत्मसमर्पण करवाया था। जातक कथाओं से जानकारी मिलती है कि गौतम बुद्ध ने एक खूंखार डाकू अंगुलिमाल का हृदय परिवर्तन करवाया था। उन्हीं की तर्ज़ पर भाई जी ने अपने प्रेम और विश्वास के बल पर और अहिंसा की शक्ति को आधार बनाकर 600 से अधिक दस्युओं को आत्मसमर्पण करवाया था। इनमें उस समय के कुख्यात डाकू माधोसिंह, मुहर सिंह और मलखान सिंह जैसे दस्यु सम्राट भी शामिल थे। इसलिए सुब्बा राव जी को चंबल का गाँधी कहा जाता है। मेरे पिता डा0 राजेन्द्र कुमार अवस्थी उस हथियार समर्पण के अवसर पर बाबा विनोबा के साथ भूदान आंदोलन और पदयात्रा में सदैव साथ रहने के कारण वहाँ उपस्थित थे और फोटोग्राफर होने की वजह से उनके द्वारा ली गई तस्वीरें भी देखीं तो अब हिंसा के इस क्रूरतम दौर को देखते हुए लगता है – सुब्बाराव जी गहरे अर्थों में ‘अहिंसा के ईश्वर’ हैं।

डा0 सुब्बाराव जी ने जौरा में पहला गाँधी आश्रम स्थापित किया था। इसके अतिरिक्त देश-विदेश में 21 जगहों पर गाँधी आश्रमों की स्थापना की। इसके अलावा सामाजिक कार्य में सुब्बाराव जी ने शिवपुर से लेकर मध्यप्रदेश के कई जिलों में निर्धन एवं गरीब कुपोषित बच्चों के लिए काम किया था। संगम घाट पर गाँधी जी की तेरहवीं का आयोजन शुरु करवाने का श्रेय श्री सुब्बाराव जी को ही जाता है। इसके अतिरिक्त सेवाधाम आश्रम में 18 भाषाओं में ‘भारत की संतान’ कार्यक्रम की विशेष प्रस्तुति हुई थी जिसमें भाई जी का विशेष योगदान था और ‘एक भारत का जाग्रत स्वप्न’ था।

भारत के राष्ट्रपति से पद्मश्री मिलने के साथ-साथ देश-विदेश के सम्मान मिले हैं जिसमें प्रमुख है – 1995 का राष्ट्रीय युवा पुरस्कार, भारतीय एकता पुरस्कार, शान्तिदूत अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार, राजीव गाँधी सद्भावना पुरस्कार 2003, जमनालाल बजाज पुरस्कार 2006, महात्मा गाँधी पुरस्कार 2008, महात्मा गाँधी प्रेरणा सेवा पुरस्कार 2014, कर्नाटक सरकार, राष्ट्रीय सद्भावना एकता पुरस्कार 2014 आदि।

सुब्बाराव ही के जीवन में जगत समाया हुआ था और जगत के हृदयों के भीतर उनका जीवन समाया हुआ था। इसी समर्पित चेतना की ताकत से उन्होंने भारत और विदेशों में अनेकों शिक्षण-प्रशिक्षण शालाएँ स्थापित की। वे भूदान आंदोलनकारी आचार्य विनोबा भावे जी की तरह कई भाषाओं के ज्ञाता थे। ‘बहुजन हिताय’ दर्शन के रचनात्मक कार्यकर्ता थे। ‘स्वाधीन भारत के बाद स्वदेशी भारत’ के सृजनात्मक अभियान में वे युवाओं और महिलाओं को शामिल करते हुए सक्रिय हो उठे थे। प्रवास का जीवन ही उनके जीवन भर उनका जीवन रहा। विश्व उनका घर रहा। वसुधैव कुटुम्बकम् के वे वरिष्ठतम सदस्य थे। मनुष्यता उनके परिवार का आनुषासिक धर्म था। ‘शान्ति’ उनका मोक्षधाम था, इसलिए संगठन और संस्थाएँ उनके लिए घर थे। इसलिए वे हमेशा इन्हीं घरों में रहे। यही उनके लिए मन्दिर और धाम सरीखे थे और वे आजीवन इन संगठन रूपी घरों के सदस्य रहे।

डा0 सुब्बाराव जी ने पराधीन भारत से लेकर स्वाधीन भारत की ओर स्वाधीन भारत से स्वराज्यी भारत के लिए 75 वर्षों तक अहर्निश-अनवरत हजारों यात्राएँ की और मित्रों से यात्राएँ करवाईं। डा0 सुब्बाराव जी ने इसके लिए स्वयं कितनी मानसिक यात्राएँ करते होंगे – कल्पनातीत है। राष्ट्र और समाज सेवा के अतिरिक्त सुब्बाराव जी की कभी कोई आसक्ति नहीं रही और सत्ता, समृद्धि, सुख का लेशमात्र भी लक्ष्य कभी नहीं रहा। । सेवाग्राम में सेवाधाम और स्वाधीनता से स्वराज्य सिद्धि ही उनकी आत्मा का अभीष्ट रहा।

डा0 सुब्बाराव जी के देहावसान की ख़बर से देश-विदेश में चहुंओर फैले उनके प्रशंसक और मित्र विह्वल और व्याकुल हो उठे। अनगिनत गाँधीवादियों की अधीरता और दुःख का अन्त नहीं था। गाँधीवादी चिंतक श्री राममोहन राय जी से फोन पर बात हुई तो उन्होंने कहा कि वे भी जानते थे और हम सभी जानते थे कि उनका हृदय सिर्फ 30 प्रतिशत सक्रिय है। वे 92 वर्ष के हो गए हैं। उनका जाना और जल्दी जाना तय है फिर भी उनके जीने पर हम सब आहत हैं। यह सच है किसी का मन आसानी से कबूल नहीं कर पा रहा है। वह इसलिए भी कि वे मन से न तो कभी गए हैं और न कभी जाएँगे क्योंकि मन का मानवता से प्रगाढ़ रिश्ता है। इसलिए वे मानवीय शक्ति के रूप में हम सबके भीतर रहेंगे शक्ति बनकर।

डा0 सुब्बाराव जी के अनेक ऐसे मित्र और भक्त हैं जिन्हें गाँधीवादियों की दुनिया नहीं पहचानती है। बावजूद इसके सुब्बाराव जी के अनेक ऐसे भक्त हैं जिन्हें दुनिया नहीं पहचानती है पर वे सुब्बाराव जी को, उनके भक्तों और मित्रों को पहचानते हैं इसलिए कि वे गहरे अर्थों में सच्चे गाँधीवादी, विनोबाई और लोहियावादी हैं पर इसके लिए वे पद, प्रतिष्ठा की कोई राजनीति नहीं करते हैं। इसमें बहुत आदर से मैं सुज्ञान मोदी जी, रमेश जी, एकनाथ जी, पद्मश्री श्री धर्मपाल सैनी जी, सुश्री सुजाता जी, डा0 आर0 के0 पालीवाल जी, प्रो0 आनन्द कुमार जी और डा0 सुरेश गर्ग जी का नाम लेना चाहूँगी जो सम्पूर्ण भारत में गाँधी विचार दर्शन के तरीके से जड़ों से जुड़कर सक्रिय हैं। इसी क्रम में काशी के पिल्ग्रिम्स प्रकाशन के कर्ता-धर्ता श्री रामानन्द तिवारी जी जिन्होंने ‘स्वराज्य आश्रम’ का सृजन किया और भाई जी को आमंत्रित किया था, जिन्होंने वहाँ रहकर आश्रम के लिए अक्षय-दीप सरीखा पत्र लिखा जो गंगा तट पर स्वराज्य आश्रम को आलोकित किए रहता है। मेरे अनगिनत मित्र और आचार्यकुल की पीढि़येां से सदस्य और कार्यकर्ता रहे बन्धुगण डा0 सुब्बाराव जी के विदेह होने से आहत और दुःखी हुए हैं।

डा0 सुब्बाराव जी का जीवन यात्राओं के सूत्र में पिरोया हुआ था और उसी सूत्र में उनके मित्रों और अनुयायियों का जीवन था। भाई जी के व्यक्तित्व का जो मित्र बन जाता था भाई ती उसे गाँधी विचार दर्शन का भक्त बना देते थे। भोपाल के गाँधी भवन में भाई जी का भाषण होना था। सौभाग्य से मध्यप्रदेश में आचार्यकुल के प्रादेशिक अधिवेशन के तहत मेरा जाना हुआ था। आचार्यकुल  के प्रदेश अध्यक्ष डा0 गोपाल वाजपेयी जी के साथ मैं सुब्बाराव जी के कार्यक्रम में शामिल हुई। उनकी प्रार्थना वस्तुतः उनकी आवाज में वह दीपक सरीखी प्रज्वलित अनुभव हुई। जिस तरह से एक दिये से सभी दियों की बाती को रोशनी से पूर्ण किया जाता है उसी तरह से भाई जी के शब्द दीप ने वहाँ पर उपस्थित सभी श्रोताओं के मन-मानस को अपनी विचारों की दीप्ति से प्रज्वलित कर दिया था। सम्पूर्ण सभा कक्ष तेजोदीप्त हो उठा था। कार्यक्रम के ख़त्म होते ही भीड़ के बीच से मैं उनके सामने पहुँचती कि उन्होंने पहले से ही अपने हाथ उठाने के साथ-साथ अपनी धवल आँखों की उज्ज्वलता से पुकारते हुए कहा – ‘‘ हाँ हाँ आचार्यकुल की राष्ट्रीय अध्यक्षा पुष्पिता जी, आपका हमारे परिवार और सभा में स्वागत है।’

उसी समय लगे हाथ डा0 सुब्बाराव जी ने मुझे अपनी यात्रा सूची बता दी। उन्हें सब याद रहता था। कब, कहाँ उन्हें पहुँचना है, उन तक पहुँचने के लिए किससे मिलना है। अपनी उंगलियों की तरह वे अपने युवा मित्रों को पहचानते थे और अपनी हथेली की तरह उनकी हथेली को प्यार करते थे। अपनी यात्राओं के क्रम में वे दिल्ली के गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान पहुँचे हुए थे। उनके प्रिय शिष्य मुजीब आज़ाद साहब के साथ मैं 2019 में ही गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान पहुँची हुई थी। दोपहर एक बजे के आसपास का समय था। वे कम्प्यूटर पर संदेश देने में व्यस्त थे। उस कक्ष में उनके चार और प्रिय मित्र थे। वे शिष्य की तरह सेवाभाव से साथ रहते थे पर भाई जी उन्हें मित्र की तरह अपने युवा-मानस की तरह उन्हें साथ रखते थे। भाई जी के साथ दोपहर का भोजन किया। अपने पास मेरी उस समय जो किताब थी उन्हें भेंट की और चलते-चलते निवेदन किया कि भाई जी – सस्ता साहित्य मंडल से ‘मुट्ठी भर सुख’ शीर्षक से मेरा लिखा कहानी संग्रह प्रकाशित हो गया है जो आपको समर्पित है, उसे आप तक भिजवाना है, तो कहाँ का पता उचित रहेगा, आपके तो इतने पते हैं कि पूरी पृथ्वी की परिक्रमा हो जाए।

मेरे इतना निवेदन करते ही उन्होंने अपने पीले रंगा का स्टीकर वाला पता दिया और कहा – इसे कहीं भी स्थाई जगह चिपका लो, जो तुम्हारे साथ रहे। मोबाइल मेरे हाथ में था क्योंकि भाई जी के साथ उस समय मुजीब साहब ने कुछ तस्वीरें बनाईं थीं। बस उसी मोबाइल पर मैंने वह पता चिपका दिया। पता अभी चिपका ही था कि भाई जी ने बड़ी आत्मीयता से अपने हाथ में मेरा मोबाइल लेते हुए अपनी उज्ज्वल दृष्टि से मुझे कहा – अब यह मोबाइल तुम्हारा कहाँ रहा? इसपर तो मेरा पता है और अब यह मेरा मोबाइल है। इतनी दुर्लभ विश्वसनीयता और स्नेह हमेशा मेरी साँसों के साथ उनके शब्द बनकर धड़कती रहेगी। उसी फोन से…मतलब उनके ही फोन से उनके अन्तिम साँस लेने से दो दिन पूर्व नीदरलैंड से 35 मिनट तक बात हुई, इतनी स्पष्ट आवाज़ में संवाद हुआ कि सुनकर लगा ही नहीं कि वे ऐसे छोड़कर चले जाएँगे कि उनका फोन नम्बर भर मेरे पास रह जाएगा। जिसे मै विह्वल-व्याकुल होने पर देख लिया करूँगी और देखने में ही उनकी आवाज़ सुन लिया करूँगी – और आवाज़ में उनके वे सारे विचार जो अभी सपने हैं जिसे हम सबको साकार करने के लिए कह गए हैं – उनकी सर्वधर्म प्रार्थना – उनका सपना है उसे सिर्फ उनकी वाणी ही नहीं बल्कि आत्मा गाती है और विदेह हो कर सभी आत्माओं को एक स्वर में गवाती हो। भाई जी जानते थे – वाणी का गाना ही जिस दिन आत्मा का गीत बन जाएगा उसी दिन सपना साकार होने का संकल्प ‘जय जगत’ कहते हुए अपनी विजय-यात्रा पर निकल पड़ेगा।

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*प्रो0 डा0 पुष्पिता अवस्थी (https://www.linkedin.com/in/pushpitaawasthi/)

राष्ट्रीय अध्यक्षा – आचार्यकुल, वर्धा

अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्षा – हिन्दी यूनिवर्स फाउन्डेशन, नीदरलैंड

अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्षा – नाॅन वायलेंस एण्ड पीस एकेडमी, वर्धा, नीदरलैंड्स

अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्षा – गार्जियन ऑफ अर्थ एण्ड ग्लोबल कल्चर नीदरलैंड्स, वर्धा

ग्लोबल अम्बेसडर –    MIT World Peace University and World Peace Dome

3 COMMENTS

  1. अत्यंत महत्वपूर्ण आलेख.
    सत्य शोधक -सत्य धर्मणा गांधी-विनोबा समर्पित
    भाईजी सुब्बाराव जी की जीवंत यशोगाथा .
    पुष्पिता अवस्थी जी नीदरलैंड और ‘राग दिल्ली ‘ का अत्यंत आभार.
    सुज्ञान मोदी,
    लेखक:‘महात्मा के महात्मा ‘

  2. हमारे प्रिय सुब्बाराव जी के व्यक्तित्व और कृतित्व को उकेरती पठनीय पोस्ट। मैने सुब्बाराव जी को पहली बार 1967 में तरुण शांति सेना के पठानकोट शिविर में देखा और सुना था। वे मेरे पिताजी के करीबी साथी थे। दोनों गांधी शांति प्रतिष्ठान के आजीवन कार्यकर्ता थे। खुशनसीब हूं कि पांच दशक से ज्यादा समय तक सुब्बाराव जी का स्नेह और आशीर्वाद मिलता रहा।

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