नितिन प्रधान*
अर्थव्यवस्था में ‘वी शेप रिकवरी’ की आशा फिलहाल धूमिल पड़ गई है। कोविड महामारी के मामले में देश में ‘सावधानी हटी और दुर्घटना घटी’ की कहावत चरितार्थ हो गई और वित्त वर्ष 2020-21 की तीसरी और चौथी तिमाही में जो बढ़त प्राप्त की थी, कोरोना की दूसरी लहर में गवां दी है।
रिज़र्व बैंक की हाल में जारी सालाना रिपोर्ट के मुताबिक, ‘मार्च 2021 के बाद सब कुछ अचानक बदल गया है।‘ इसका अर्थ यह हुआ कि अब चालू वित्त वर्ष के लिए अर्थव्यवस्था की विकास दर पहले लगाये गये अनुमानों से कम रहेगी। वैसे भी कुछ अंतरराष्ट्रीय और घरेलू एजेंसियां पहले ही अनुमानित 10.5 प्रतिशत की वृद्धि दर को घटाकर नौ फीसद के आसपास कर चुकी हैं। यह अनुमान भी केवल मई महीने की स्थितियों के आधार पर लगाये गये हैं, क्योंकि लगभग पूरे देश में इस महीने आंशिक तौर पर आर्थिक प्रतिबंध रहे और गतिविधियां बेहद सिमटी रहीं। इसलिए रिज़र्व बैंक को आशा है कि इनका नकारात्मक असर वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही तक ही सीमित रहेगा। अलबत्ता कोविड महामारी का असर थोड़ा भी बाकी रहा तो जुलाई-सितंबर की तिमाही की आर्थिक विकास दर भी प्रभावित हो सकती है।
चिंता की बात यह है कि रिज़र्व बैंक मौजूदा परिस्थितियों में इस आकलन को सर्वाधिक आशावादी अनुमान मान रहा है यानि विकास दर इस अनुमान से नीचे ही रहने की आशंका ज़्यादा है। रिज़र्व बैंक के आकलन में दो बातें महत्वपूर्ण हैं। पहली तो यह कि केंद्रीय बैंक ने माना है कि किसी भी वित्तीय संकट से अधिक स्वास्थ्य संकट ज्यादा प्रभावित करने वाला साबित हो सकता है, यह इस बीमारी ने बता दिया है। वित्तीय संकट के मुकाबले स्वास्थ्य संकट अर्थव्यवस्था को वास्तविकता में अधिक प्रभावित करता है।
इसके अतिरिक्त महामारी के इस संकट से यह भी स्पष्ट हो गया है कि वित्त वर्ष 2020-21 में निजी निवेश अर्थव्यवस्था से पूरी तरह गायब रहा। आर्थिक विकास दर की रफ्तार को भविष्य में बनाये रखने के लिए निजी निवेश बेहद महत्वपूर्ण कारक है। लिहाज़ा चालू वित्त वर्ष की विकास दर के धीमा रहने में यह भी एक बड़ा कारण बनेगा।
संभवतः यही वजह है कि जानकार इस बार अर्थव्यवस्था के विकास के लिए शहरी क्षेत्र के कंधे पर सारी जिम्मेदारी डाल रहे हैं। हालांकि इसका अंदाज भी तभी लग पाएगा जब कोविड की ताज़ा लहर शांत हो जाएगी। इस लहर ने देश के बड़े औद्योगिक या कहें मैन्यूफैक्चरिंग राज्यों को चपेट में लिया है। गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना में हालात बेहद खऱाब रहे। ज़ाहिर है इन राज्यों के मैन्यूफैक्चरिंग के आंकड़े आने के बाद ही सही तस्वीर दिखेगी।
पिछले लॉकडाउन ने उपभोक्ता उत्पादों (एफएमसीजी) की मांग ग्रामीण बाजार ने बनाये रखी। पर इस बार पूरा दारोमदार शहरों पर है। बावजूद इसके रिज़र्व बैंक समेत तमाम एजेंसियों की राय यही है कि आर्थिक विकास दर पर उतना असर कोविड की इस लहर का नहीं दिखेगा जितना पिछले वर्ष था। हां रिज़र्व बैंक यह अवश्य मानता है कि कोविड की इस लहर ने मांग को बुरी तरह प्रभावित किया है। वैल्यू डायनैमिक्स के निदेशक के. श्रीनिवास रेड्डी का मानना है, “ये बहुत शुरुआती आकलन है। मई का महीना भी पूरी तरह लॉकडाउन में निकलने की उम्मीद है। इसलिए पहली तिमाही खत्म होते होते तस्वीर और खराब हो सकती है। इसलिए साल 2021-22 के लिए अर्थव्यवस्था का सही आकलन पहली तिमाही के बाद ही हो पाएगा।”
विकास की अपेक्षित रफ्तार पाने में महंगाई की बढ़ती दर ने सरकार की परेशानी बढ़ायी है। अप्रैल में थोक महंगाई की दर 10.49 फीसद पर पहुंच गई है। इसमें पेट्रोल-डीजल की कीमतों में होने वाली वृद्धि से ईंधन की महंगाई का बड़ा योगदान है। इस वर्ग की महंगाई दर 21 फीसद रही। माना जा रहा है कि मई में थोक महंगाई की दर 13 फीसदी तक जा सकती है। कुछ इसी तरह का हाल खुदरा महंगाई की दर का भी है। अप्रैल में यह रिकॉर्ड 5.52 फीसद तक जा पहुंची है।
अगर महंगाई की ये दरें इस तरह बढ़ती रहीं तो रिज़र्व बैंक के लिए कर्ज को सस्ता बनाये रखना मुश्किल हो जाएगा। खुद रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने महंगाई को लेकर चिंता जतायी है। अगर महंगाई दर को काबू में करने की नीति रिज़र्व बैंक अपनाता है तो उसे सिस्टम में नकदी के प्रवाह को नियंत्रित करना होगा। ऐसा करते ही विकास के पहिये की रफ्तार धीमी होने का खतरा पैदा हो जाएगा। इसलिए यदि सरकार आर्थिक विकास की दर को बनाये रखना चाहती है तो उसे ऊंची महंगाई दर के जोखिम को उठाना होगा। लेकिन अगले साल फरवरी में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होना है। इसलिए राजनीतिक दृष्टि से सरकार के लिए महंगाई की दर को ऊंचा रखना शायद बड़ा जोखिम हो सकता है।
आगे की राह के बारे में रिज़र्व बैंक ने ही बहुत स्पष्ट संकेत दे दिये हैं। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने और विकास दर की अपेक्षित रफ्तार को प्राप्त करने के लिए बैंक का मानना है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में जितनी कमियां सामने आयी हैं उन्हें त्वरित गति से दूर करना होगा। संपूर्ण आबादी के वैक्सीनेशन की रफ्तार बढ़ाकर तय समय में लक्ष्य प्राप्त करने होंगे। दवाओं, आक्सीजन और वैक्सीन का पर्याप्त स्टाक रखना होगा ताकि किसी भी संभावित लहर के जोखिम को कम से कमतर किया जा सके। ऐसा करके ही चालू वित्त वर्ष की तीसरी चौथी तिमाही तक आर्थिक विकास दर की रफ्तार को नियंत्रण में रखा जा सकता है।
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*दैनिक जागरण के राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख रहे नितिन प्रधान बीते 30 वर्ष से मीडिया और कम्यूनिकेशन इंडस्ट्री में हैं। आर्थिक पत्रकारिता का लंबा अनुभव।
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