योगेन्द्र दत्त शर्मा* की ग़ज़लें

  • 1 –

ज़िन्दगी के इस सफ़र में आये कैसे मरहले
बघनखे हाथों में लेकर लोग मिलते हैं गले !

मैं जिरहबख़्तर पहनकर घूमता हूं शहर में
और आख़िर दूर करता हूं दिलों के फ़ासले !

ख़ुशबुओं से बच निकलने में ही अब तो ख़ैर है
आजकल है पुरख़तर बारूद फूलों के तले !

सिरफिरी दहशत ने तानी हैं गुलेलें पेड़ पर
फुनगियों पर थरथराते हैं बया के घोंसले !

मैं मसीहा बनके पछताया, पता जब यह चला
यह शहर है वह, जहां मुजरिम सुनाते फैसले!

वक़्त की टेढ़ी नज़र का है क़हर मुझ पर अभी
वरना मैं भी नापता वहशी हवा के हौसले !

तीरगी का सच मुझे मंज़ूर है, पर क्या करूं
रोशनी के कुछ सुनहरे ख़्वाब आंखों में पले !

  • 2 –

कौन जाने, एक दिन सूरज कहां खो जायेगा !
राख बन बुझ जायेगा या बर्फ़ में सो जायेगा !

मैं तुझी को ढूंढने घर से चलूंगा आदतन
और मेरी जेब से तेरा पता खो जायेगा !

दस्तकें देने लगी चुपचाप ये कैसी हवा
दौर मेरा हादसों का मक़बरा हो जायेगा !

सख़्तजां है, पर बड़ा नाज़ुकबदन है आदमी
छू दिया, तो एक बच्चे की तरह रो जायेगा !

खींच तो दें ज़िन्दगी की एक नई तस्वीर हम
डर यही है, आपका तेवर उसे धो जायेगा !

हैं वहां रंगीनियां भी, रोशनी भी है, मगर
ढूंढता ख़ुद को फिरेगा, उस तरफ़ जो जायेगा !

मान लेता हूं, नहीं मेरे फ़साने का वजूद
पर कहीं वो रोशनी के ख़्वाब तो बो जायेगा !

असलियत अपनी जगह, उम्मीद फिर उम्मीद है
देखना है, कौन किसको किस तरफ ढो जायेगा !

फासले बढ़ने लगे हैं भावना में, सोच में
ये इधर को आयेगा, तो वो उधर को जायेगा !

जानता हूं, गोल है दुनिया, मगर ऐ रहनुमा !
क्या कोई रस्ता मेरे गुमनाम घर को जायेगा?

और एक गीत भी

देखते सहमे हुए हम
खेल मौसम के निराले
हो गई है आदमीयत
उग्र भीड़ों के हवाले !

भीड़ करती फैसले खुद
भीड़ ही देती सजा भी
भीड़ इसके बाद लेती
अट्टहासों का मजा भी
हैं ठगे-से मूक दर्शक
कौन अब किसको संभाले !

धूलि-धूसर हो रही हैं
सहज मन की कामनाएं
किस तरह खुद को बचायें
हर कदम पर वंचनाएं
छटपटाते हैं अंधेरी
कंदराओं में उजाले !

कौन किसके साथ है कब
कुछ पता चलता नहीं है
सूर्य पर आक्षेप है गंभीर
वह ढलता नहीं है
प्रश्न यह उलझा हुआ है
कौन इनका हल निकाले !

दीर्घसूत्री हर कथा में
सम्मिलित अनगिन कथानक
अंतहीना-सी व्यथा आकर
जुड़ी जिसमें अचानक
कथा कहती – ध्यान से सुन
व्यथा कहती है – बचा ले !
भर रही किरकिल नदी में
कौन पानी को खंगाले !

******

*लेखक एवं पत्रकार योगेन्द्र दत्त शर्मा अनेक वर्षों तक भारत सरकार की साहित्य, संस्कृति को समर्पित पत्रिका ‘आजकल’ का संपादन करते रहे हैं। इसके अलावा ‘धर्मयुग’, ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’, ‘सारिका’, ‘कादंबिनी’, ‘नवनीत’, ‘शोधस्वर’, ‘गगनांचल’, ‘इंद्रप्रस्थ भारती’, ‘समयांतर’ आदि लब्धप्रतिष्ठ पत्र-पत्रिकाओं में गीत-नवगीत, ग़ज़ल, कहानी, निबंध, आलेख प्रकाशित। विभिन्न साहित्यिक विधाओं में योगेन्द्र जी की अनेक प्रकाशित पुस्तकें भी हैं। संप्रति : स्वतंत्र लेखन और विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशन सहयोग। संपर्क : yogendradattsharma 3110 @ gmail.com

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1 COMMENT

  1. एक समर्थ गीतकार की रचनाओं से परिचित कराने के लिए आपका प्रयास सराहनीय है। आदरणीय योगेन्द्र दत्त शर्मा जी के विपुल साहित्य से दो गज़लें और एक गीत को प्रस्तुत करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद!–जगदीश पंकज

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