ग़ज़ल

डा. शैलेन्द्र त्रिपाठी*

1.

समझो तो समझ लो इशारा ना करेंगे
रोकर अपनी बात दोबारा न करेंगे।

सदियों की हर बात को लम्हों ने सुना है
पर लम्हे अब यह हालात गंवारा न करेंगे।

खोना उन्हें चाँद का नागवार सा लगा
बादल भी आसमां को पुकारा न करेंगे।

जीना तो इस सियासत ने दुश्वार कर दिया
हम भी तूफाँ हैं, सागर से किनारा न करेंगे।

मिलते ही हाथ उससे रिश्ता सा बन गया,
एक बार हुई बात को दोबारा ना करेंगे।

बाज़ आते नहीं इंसान अपनी फ़ितरत से
कैसे मान लें कि हमारा-तुम्हारा न करेंगे

सच को सच की तरह सामने तो रख
वरना लोग झूठ को सुधारा ना करेंगे।

*सामाजिक सरोकार से जुडे जे. पी आंदोलन के सिपाही डा. शैलेन्द्र त्रिपाठी ने खुद को गाँव से जोड़ा, पेड पौधों की चिन्ता की। औषधीय पौधों की खेती परिचय एवं प्रयोग को जन- जन तक पहुंचाने के लिए शिक्षण – प्रशिक्षण की रूप रेखा तैयार की। इसके लिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के ग्रामीण विकास केन्द्र की स्थापना काल से सेवा की। अवकाश प्राप्त के बाद भी अनवरत सेवारत हैं। करोना काल मै स्वयं को समाज से जोड़ने के लिए कविता को माध्यम बनाया और देश में घट रहे घटना क्रम को समाज के बीच चेतना की निरंतरता को कायम करने हेतु दृंढ संकल्प है।

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