संकल्प
घूम-घूम कर आता है
वह ज़िद्दी मच्छर,
भिनभिनाता है
मेरे कानों के पास,
जैसे बजा रहा हो
खुले आम रणभेरी.
मैं भगाता हूँ उसे बार-बार,
वह फिर आ जाता है,
मैं चाहता हूँ
उसे हथेलियों में मसलना,
वह बच जाता है.
एक छोटा-सा मच्छर
अपने सिर पर
कफ़न बांधकर आया है,
ठानकर आया है
कि चाहे जो हो जाए,
वह मेरा ख़ून पीकर रहेगा.

*Onkar Kedia has been a career Civil Servant who retired from the Central Government Service recently. He has been writing poems in Hindi and English on his blogs http://betterurlife.blogspot.com/ and http://onkarkedia.blogspot.com/
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