पारुल बंसल*
क्षणिकाएं
- एक –
प्रेम ने सुनी सिसकी कानों से
और आ गया आंखों के रास्ते से!
- दो –
उनके रूमानी खत का
लिहाफ पहनकर आया था प्रेम
आते ही उसने
ठिठुरन भरे आंसुओं को
धर दबोचा!
- तीन –
मुझे सब पता है ऐ बसंत
क्यूं तुम आए हो सबसे अंत
फूल खिलाकर रंग-बिरंगे
आए हो होली पर ही रंग जमाने!
– संकल्प –
मरने से पहले करने हैं ज़रूरी इन्तज़ामात
बोने है कुछ बीज प्रेम के
डालकर खाद अपनत्व और अमरत्व की
सींचना है आकांक्षाओं के जल से
जहां प्रेम का भावी भ्रूण पोषित होगा
उसके प्रस्फुटन पर फीकी हो जाएंगी
वो तमाम प्रेम कविताएं
जिन्हें नहीं रोपा गया प्रेम से
टीपने हैं वे छेद
जो यदा-कदा टपकाते हैं
अविश्वास की धार
उर के मरुस्थल पर
भरने हैं भंडारगृह के सारे कनस्तर
अनुराग और प्रणय के गीतों से लबालब
जो कभी नहीं रीतेंगे
मेरे शांत हो जाने के बाद भी!
– इंतज़ार है –
बहुत कुछ अनकहा, अनसुना
दफ़न है जहां
उसका पता बोलो पाओगे
तुम कहां?
हर बात ठिठकती है
होठों पर जहां
ऐसा रास्ता ढूंढ पाओगे
तुम कहां?
हर शब्द ने ओढ़ी है
मौन की चादर
और टिकाया है सिर
समय के कांधे पर
कि कभी तो आएगा वो दिन
जब कब्र से बाहर आएंगी
स्त्री मन की बातें
एक दिन
किसी कविता, कहानी
और किस्सों को
गोद लिए…..
– शिकायती पत्रिका पेटी –
मुझे इल्म है
तुम्हें लगता है उबाऊ, नागवार
और अनचीता
मेरा यूं बेलगाम होकर
दुख -सुख की खाई पाटता
वृत्तांत सुनाना या फिर
सखियों से बतियाना
खगवृंदों से पैगाम भेजना
तितली संग उड़ना
और पौ फटने पर बिछौना ना छोड़ना
तुम्हारे इस “शिकायती प्रार्थना -पत्र “को
मन की दुछत्ती पर पड़ी
“शिकायती पत्रिका पेटी” में
बिना टिकट चस्पा किए
प्रेषित कर दिया है….
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*पारुल हर्ष बंसल मूलत: वृन्दावन से हैं और आजकल कासगंज में हैं। इनकी कवितायें स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं और वेब पोर्टल्स पर प्रकाशित होती रही हैं। स्त्री-अस्मिता पर कविताएं लिखना इनको विशेष प्रिय है। इनकी कवितायें पहले भी इस वेबपत्रिका में पढ़ चुके हैं। इस पोर्टल पर प्रकाशित कविताओं में से कुछ आप यहाँ, यहाँ और यहाँ पढ़ सकते हैं।
एक से बढ़ कर एक ।।