कुछ खास रंगों को उभारता ओंकार केडिया का एक संग्रहणीय इंद्रधनुष

विनोद रिंगानिया*

आप किसी जगमगाते आयोजन में जाते हैं जहाँ हर कोई अपनी खास वेशभूषा से लोगों को आकर्षित करना चाहता है। लेकिन यह जगमग कहीं न कहीं एक बोरियत और ऊब पैदा करती है। वैसी जगमग में कोई अपनी सादी साफ-सुथरी वेशभूषा में नजर आए तो सबकी आँखें सहसा उसकी ओर आकर्षित हो जाती हैं। ओंकार केड़िया की कविताएँ भी कुछ ऐसी ही हैं। वह पाठक की आँखों को सीधे कथ्य पर फोकस करने में मदद करती हैं। (ओंकार की कई कवितायें इस वेब पत्रिका मेँ भी प्रकाशित हुई हैं।)

अपने पहले कविता संग्रह इंद्रधनुष में कवि ओंकार केड़िया ने लिखा है कि इसमें विभिन्न रंग हैं आपको जो अच्छा लगे वह रंग ले लो। लेकिन इसमें कुछ रंगों का प्राधान्य आसानी से नजर आता है। जैसे प्रकृति के साथ मनुष्य की मनमानी, उसका प्रकृति पर हावी हो जाना, सामाजिकता के बहाने आधुनिक मनुष्य की कृत्रिमता, उसका बनावटीपन – ये सारे रंग इंद्रधनुष में ज्यादा उभर कर आते हैं।

तथाकथित सामाजिक मनुष्य पर कवि व्यंग्य करते हुए एक जगह कहता है कि ‘प्यार से उनके भगवान बचाए’। कई जगह कवि का नॉस्टेलजिया भी प्रकट होता है, जैसे जब वह कहता है कि खामोश घर अच्छे नहीं लगते। लेकिन नॉस्टेलजिया को वह अपने ऊपर हावी नहीं होने देता। केड़िया कहीं-कहीं अपने आपको प्रकृति के साथ इस तरह आत्मसात कर लेते हैं कि उन्हें साधारण से दिखने वाले पत्तों और तिनकों की व्यथा भी साफ नजर आने लगती है और वे हमें भी उन पत्तों और तिनकों की व्यथा को देखने के लिए आँखें दे देते हैं। मसलन, जकड़न कविता में कवि को लगता है कि बारिश के बाद पेड़ के पत्ते भी शायद कहीं घूमना-फिरना चाहते हों लेकिन वे जीव जगत की तरह घूम-फिर नहीं सकते। एक जगह बने रहना उनकी मजबूरी है।

ओंकार केडिया

आधुनिक फ्लैटों में रहने वाले लोग आजकल अपने बरामदों को कबूतरों की बींट से बचाने के लिए जालियाँ लगवाने लगे हैं। उन्हें एक मिनट के लिए भी यह खयाल नहीं आता कि हमने पंछियों के बैठने, घोंसला बनाने के सारे स्थानों पर कब्जा कर लिया, तो आखिर वे बैठेंगे कहाँ। गौरैया और कबूतर जैसे पंछियों का हमेशा मनुष्य के साथ साहचर्य रहा है। वे बचे-खुचे जंगलों में नहीं रह सकते। लेकिन हम यह पुराना रिश्ता भूल रहे हैं। इसी विषय पर कवि गौरैया की चोंच से हमें चेतावनी देता है कि तुम जो इतना इतरा रहे हो कहीं कल को तुम भी लुप्तप्राय जीव में तब्दील न हो जाओ।

कवि ने कई स्थानों पर कुछ ऐसी पंक्तियों का इस्तेमाल किया है जो सचमुच मनमोहक बन पड़ी हैं। जैसे, ‘छोटे-से दिन की लंबी-सी रात’ – इस पंक्ति को विशेष रूप से चिह्नित करने के लिए मैं मजबूर हो गया।

कवि ने खड़ी पाई की जगह फुल स्टॉप का इस्तेमाल किया है जो कविता के संदर्भ में मुझे व्यक्तिगत रूप से थोड़ा अटपटा लगता है। 

यह कविता संग्रह ई-बुक के रूप में अमेजॉन से प्रकाशित हुआ है। आगे कागज पर प्रकाशित पुस्तक का हमें इंतजार रहेगा। पुस्तक अमेज़न से प्राप्त करने के लिए आप इस लिंक पर जा सकते हैं।

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*विनोद रिंगानिया असम से हैं, इनकी कहानियाँ समकालीन भारतीय साहित्य सहित सभी प्रमुख पत्रिकाओं में छप चुकी हैं। भोपाल से प्रकाशित कथादेश (भारत के हिंदी कथाकारों पर केंद्रित कथाकोश) के युवा कहानी खंडमें विनोद को स्थान मिला है। कुछ समय पूर्व इनका यात्रा वृत्तांत ट्रेन टू बांग्लादेश रश्मि प्रकाशन से आया है। इस वेब पत्रिका के लिए भी विनोद ने एक कहानी लिखी थी जिसे आप यहाँ देख सकते हैं।

1 COMMENT

  1. इंद्रधनुष में कवि ओंकार केडिया के हृदय में उठी यथार्थ परक मानवीय संवेदनाएं और अनुभव यहां तहां बिखरे पड़े हैं। तितली कविता में तितली की कोमलता को बखूबी दर्शाया गया है। मुझे नहीं बनना आदमी तथा प्रकृति और आदमी में व्यक्ति की हैसियत बताई गई है। इंसान में गरीबों की सेवा को जोरदार तरीके से उभारा गया है। दीपक में सदियों से अंधेरे में डूबीं झुग्गी-झोपड़ियों में प्रकाश की कामना, मां में अपनी संतान और बहन में बहन का भाईयों के प्रति निस्वार्थ प्रेम अनूठा और अमूल्य ही कहा जाएगा। अजीब दुनिया में बुराई के प्रति लोगों का आकर्षण हैरतअंगेज है। गोरैया तथा नदी का अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष बड़ी खूबी से उकेरा गया है। कुछ कविताएं ऐसी भी हैं, जो जल्दी से छिटककर स्मृति पटल से गायब हो जाती हैं। इंद्रधनुष की भाषा-शैली सरल, सुगम, सहज, सुपाठ्य एवं प्रवाहमय है।

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