स्त्री के अमूल्य प्रहर और अन्य कवितायें

पारुल बंसल*

स्त्री के अमूल्य प्रहर

स्त्री चौके में सिर्फ रोटियां ही नहीं बेलती

वह बेलती है अपनी थकान

पचाती है दुःख

सेकती है सपने

और परोसती है मुट्ठी भर आसमान!

स्त्री चौके में सिर्फ रोटियां ही नहीं बेलती

 वह रात को बेलती है पति का बिस्तर

 घोलती है उसकी थकान

 भरती है श्र्वासों में उजास 

ऊर्जान्वित करती है अल सुबह

गढ़ चुंबन सूरज को! 

स्त्री चौके में सिर्फ रोटियां ही नहीं बेलती

वह बुहारती है आसमान

लीपती है धरती

सिलती है लंगोट आसमान का 

और चोली धरती की 

संवारती है केश नदी-सी अपनी देह के!

स्त्री चौके में सिर्फ रोटियां ही नहीं बेलती

वो छानती है अपनी इच्छाएं 

फेंटती है समस्त ब्रह्मांड 

तलती है पकवान भांति -भांति के 

जीवित रखती है अन्नपूर्णा को!

स्त्री चौके में सिर्फ रोटियां ही नहीं बेलती….

*क्षणिकाएं*

-1-

प्रेम कब आया

कब गया

इसका भान ही ना हुआ

इसके पांव में घुंघरू

बंधे होने चाहिए!

-2-

कम से कम अभी तो

प्रेम को प्रेम ही रहने देते हैं

व्यापार के लिए और

इतना कुछ तो है!

-3-

प्रेम-पगी बातें हैं इतनी सारी

और इतनी मीठी

आशंका है श्रवण मात्र से

मधुमेह की!

-4-

प्रेमपाश में बंदी को

उम्रकैद नसीब होना

ईश्वर की झोली में

छेद हो जाने -सा है!

-5-

छोटी बच्ची को

खिलखिलाते देख

प्रेम ने खुद पर नाज़ किया

बल्कि एहसास किया

वो अभी भी जिंदा है!

-6-

प्रेम ने मुझे इस तरह पोसा

अब कांधे पर ही बिठा लिया है!

*कुछ और क्षणिकाएं*

-1-

सुनो स्त्री!

दिल के तहखाने में दफ़न

गड़े मुर्दों को ना उखाड़ना

वरना संख्या हो जाएगी दुगनी!

-2-

देखना मेरे होठों की सीवन

जिस दिन उधड़ जाएगी

तुम्हारी ज़िन्दगी फटे-हाल हो जाएगी

-3-

अपनी पोशाक को इस्त्री करती स्त्री

बेखबर नहीं है इतर रखी

अंतर्मन की सिलवटों से!

-4-

रखती है स्त्री एक प्रगाढ़ चुंबन

अल सुबह अपने घर के

सूरज के माथे पर

-5-

स्त्री वह जिल्द तो नहीं

जो जर्र-जर्र होने पर बदल ली जाए

******

*पारुल हर्ष बंसल मूलत: वृन्दावन से हैं और आजकल कासगंज में हैं। इनकी कवितायें स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं और वेब पोर्टल्स पर प्रकाशित होती रही हैं। स्त्री-अस्मिता पर कविताएं लिखना इनको विशेष प्रिय है। इनकी कवितायें पहले भी इस वेबपत्रिका में पढ़ चुके हैं।

बैनर स्केच् – कुन्ती देवी (वेब पत्रिका को उपहार-स्वरूप प्राप्त)

2 COMMENTS

  1. कुछ वाकई अच्छी, कुछ टकसाली और कुछ बेहद कमजोर पंक्तियों वाली कविताएँ। पहली क्षणिका बहुत सुंदर है।

  2. कविताएँ अच्छी हैं लेकिन गहराई का अभाव खटकता है।

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