पारुल हर्ष बंसल*
-1- चाहत
तुमने मुझे चाहा
और मैंने तुम्हें चाहा
रहमत बरसाए उनपे खुदा
जिन्होंने तुम्हें और मुझे चाहा……..
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-2- उम्र-क़ैद
मैं तुम्हारी होकर भी
तुम्हारी नहीं हो पाऊंगी
क्योंकि तुमने मुझे
अपना बनाने में
मुझको
मुझ सा
ना रहने की
उम्रकैद सुना दी…..
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-3- ईश्वर तुम क्यों ना आए?
झोले में डाल आठ-दस बोसे
निकला मैं घर से
पहला हहराती नदी के माथे पर
दूसरा चहचहाती गौरैया के परों पर
तीसरा वो बुहारिन के हाथ पर
चौथा भिखारिन के कटोरे पर
पांचवा मजदूर के फावड़े पर
छठा किसान की कुदाल पर
सातवां प्रार्थनाओं के कांधे पर
इस तरह बांटता चला मुहब्बत
फिर भी बोसे खत्म होने का
नाम ही नहीं ले रहे थे
ईश्वर तुम तब भी नहीं आए
मैंने बचाया था एक तुम्हारे वास्ते
जो आखरी समझ डाला हाथ झोले में
तादाद में उम्मीद से परे
इज़ाफा हुआ
तब जाना “प्रेम बांटने से बढ़ता है.”…
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-4-ईश्वर थकना नहीं तुम
मैं तितली के परों पर कुछ ऋचाएं अंकित कर
नौनिहालों के लिए संकलित करना चाहती हूं
जुगनुओं को पहरेदार नियुक्त कर
चांदनी को संदूक में छिपा लेना चाहती हूं
ताकि राह गुजरती लड़की
अंधेरे को चीर कर
बेखौफ मंज़िल पर पहुंचे
ढलते सूरज की थकान
अपने कंधों पर दुशाले की तरह ओढ़
उसका हमसाया बनना चाहती हूं
ताकि बरकरार रहे आलिंगन की गर्माहट
अगली पौ फटने तक
चट्टानों के सीने से टपकते पसीने को
एक शीशी में सँजो कर रखूंगी
जब नहीं रहेगा धरती पर पानी का निशां
तब बुझ सके प्यास प्राण दरकते रोगी की
कुछ फूलों की रंगत में कलम को बोरकर
लिखूंगी रिमझिम के वो तराने
जो दे सकें कुछ सुकूं
जब फिज़ा में हो मिलावट
आसमान की छाती पर उगे उन तारों को
अपने पल्लू में टांकना चाहती हूं
और शब्दों के बौनेपन को रेतकर
संवादों की लंबी यात्रा पर जाना चाहती हूं
किताबों में समाई
तमाम इबारतों संग
मीठी नींद की थपकियां चाहती हूं
नहीं चाहती तो बस इतना
कि इनके पूरा होने से पहले
ईश्वर के पांव थक जाएं…..
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-5- आँखों की नमी
‘सुनो !
आज कुछ तुम अपनी पसंद का
बनाना और खाना’
यह सुनते ही भूख ने ज़ोर का उबाल मारा
समस्त सुषुप्त इच्छाओं और उम्मीदों को
दाल ,चावल में मिला खिचड़ी ही बनाई…
तुम्हारी इस ‘दरियादिली’ के लावण्य का
भरपूर छौंक लगाया
रौनक तो तुम्हारे इस प्यार से ही
चोखी आ गई थी….
पर मैं बावरी
हुई ऐसी भावविभोर
कि आंखों की नमी से
नमक तनिक ज्यादा हो गया।
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*पारुल हर्ष बंसल मूलत: वृन्दावन से हैं और आजकल कासगंज में हैं। इनकी कवितायें स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं और वेब पोर्टल्स पर प्रकाशित होती रही हैं। स्त्री-अस्मिता पर कविताएं लिखना इनको विशेष प्रिय है। इनकी कवितायें पहले भी इस वेबपत्रिका में पढ़ चुके हैं। इस पोर्टल पर प्रकाशित कविताओं में से कुछ आप यहाँ, यहाँ और यहाँ पढ़ सकते हैं।
बहुत बहुत शुक्रिया राग दिल्ली, मेरी रचनाओं को यहां पर स्थान देने के लिए
बहुत ही सहज शब्दों से लिखी पंक्तियाँ
बहुत सुंदर
बहुत-बहुत शुक्रिया आपका पूनम जी