शपथ की लाज

आज की बात

आज जब 30 मई को शाम को राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग या एनडीए) की सरकार शपथ ले रही है तो फिर एक बार समय है कि इस बात पर गौर कर लिया जाये कि इस शपथ में माननीय मंत्रियों ने क्या शपथ ली और आगे उसके बाद उनसे क्या उम्मीदें हैं। रिकॉर्ड के लिए केंद्र सरकार के मंत्रियों द्वारा ली जाने वाली शपथ का प्रारूप यहाँ देख लें।

‘मैं, अमुक, ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा, मैं संघ के मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से निर्वहन करूँगा तथा मैं भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना, सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूँगा।’ इसके अलावा गोपनीयता की भी शपथ ली जाती है जिसका प्रारूप हम यहाँ नहीं दे रहे।

यह बहुत महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री मोदी ने इस बार की प्रचंड विजय के बाद जो सबसे पहला भाषण दिया (भाजपा मुख्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए) उसमें उन्होंने संविधान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाते हुए कहा कि भाजपा भारत के संविधान को समर्पित है। प्रधानमंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि हमारा संविधान सुप्रीम है और हमें उसकी छाया में ही चलना है।

इस भाषण में उन्होंने ज़ोर देकर कहा था कि अगर कोई विजयी हुआ है तो लोकतन्त्र विजयी हुआ है और हिंदुस्तान की जनता और देश विजयी हुआ है। उन्होंने कहा कि इस प्रचंड विजय के बाद भी हम नम्रता और विवेक नहीं छोड़ेंगे।

उनका दूसरा महत्वपूर्ण भाषण था जब उन्होंने  संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में नव-निर्वाचित राजग और भाजपा सदस्यों को संबोधित किया और अपने इस बहुचर्चित भाषण में उन्होंने “सबका विश्वास” हासिल करने की बात अपने पिछले नारे (सबका साथ सबका विकास) में जोड़ी। इस भाषण की एक और ‘हाईलाइट’ जिसकी बहुत चर्चा हुई वो ये थी कि जब प्रधानमंत्री को भाषण करने के लिए आमंत्रित किया गया तो तयशुदा मंच पर पहुँचने के पहले वह संसद के केन्द्रीय हॉल में रखी संविधान की मूल प्रति के सामने पहुंचे और उन्होंने उसके सामने झुककर नमन किया।

आम तौर पर इस तरह के पर प्रतीकात्मक कदमों को किसी नेता की निजी आस्था के तौर पर देखा जा सकता है और उनपर सार्वजनिक चर्चा की जरूरत नहीं समझी जाती जो एक तरह से वह सही भी है। लेकिन एक विशेष संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा संविधान के प्रति आगे बढ़कर और सार्वजनिक रूप से इस तरह की आस्था दिखाना बहुत महत्वपूर्ण है। और वह विशेष संदर्भ ये है कि मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में विपक्ष द्वारा भी और बहुत सारे ‘लिबरल’ बुद्धिजीवियों द्वारा भी बीच-बीच में ये आरोप लगता रहा है कि सरकार ने अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने के मामले में संविधान में निहित मूल्यों की अनदेखी की है।

साधारणत: विपक्ष द्वारा लगाए गए ऐसे आरोपों को कोई गंभीरता से नहीं लेता लेकिन पिछले पाँच वर्षों में कुछ ऐसे अवसर आए जब विपक्ष के साथ-साथ देश के प्रबुद्ध नागरिकों को भी चिंता हुई कि कहीं शासक दल भाजपा से जुड़े ज़िम्मेवार लोग कहीं संविधान की मूल भावना के विरुद्ध तो नहीं जा रहे। एक-आध तो ऐसे मौके आए जब केंद्र सरकार के मंत्रियों ने ही ऐसी बात कह दी जिसे अल्पसंख्यकों के विरुद्ध माना गया और जिन्हें कुछ लोगों ने संविधान सम्मत नहीं माना। इतना ही नहीं लोगों को ये भी शिकायत थी कि प्रधानमंत्री ने स्वयं आगे बढ़ कर ऐसे अवसरों पर ऐसे लोगों को डांट नहीं लगाई या फिर देर में हस्तक्षेप किया।

देश में बहुसंख्यकवाद का दौर कुछ ऐसा आया है कि प्रधानमंत्री मोदी ने इस बार की जीत के बाद के अपने भाषण में इसे अपनी एक सफलता के तौर पर ही पेश किया है कि पिछले कुछ वर्षों में लोग धर्म-निरपेक्षता का ड्रामा या फैशन करना भूल गए हैं और अब कोई सेकुलरिज़्म या धर्म-निरपेक्षता का नाम नहीं लेता। हालांकि धर्मनिरपेक्षता संवैधानिक मूल्य ही है लेकिन हम ये मान सकते हैं कि प्रधानमंत्री का ऐसा कहने के पीछे आशय ये था कि धर्म-निरपेक्षता के नाम पर जो राजनीति हो रही थी, वह पिछले वर्षों में बंद हो गई है।  

महत्वपूर्ण बात ये है कि प्रधानमंत्री सहित सभी मंत्री आज जो शपथ लेंगे, उसमें वह संविधान के प्रति अपनी निष्ठा को तो जताएँगे ही साथ ही यह शपथ भी लेंगे कि वह बिना किसी द्वेष या पक्षपात के “सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूँगा”!

इस स्तंभकार के पास ये मानने का कोई कारण नहीं है कि नई सरकार के मंत्री ऐसा कोई काम करेंगे जिससे किसी को भी ये कहने का अवसर मिले कि वह अपने संवैधानिक शपथ के अनुरूप कार्य नहीं करेंगे। देखना ये है कि ये मंत्री जिन्होंने आज संविधान के मूल्यों को अक्षुण्ण रखने की शपथ ली है, ऐसे अवसरों पर क्या करेंगे जब इनके या इनकी पार्टी के अनुयायी या इनके सहयोगी संगठनों के कार्यकर्ता कोई ऐसी हरकत करेंगे (जैसे गोरक्षा के नाम पर लिंचिंग) जो कानून-सम्मत या संविधान-सम्मत नहीं होगी! तब क्या हमारे प्रधानमंत्री और मंत्रीगण अपनी आज की शपथ की लाज रखेंगे?

हमारी ये दुआ है कि पहले तो ऐसा अवसर ही ना आए जब कोई ऐसा अप्रिय अवसर आए और अगर आए भी तो हमारी ये शुभकामना है कि हमारे देश के ये कर्णधार बिना पक्षपात के अपने कर्तव्यों का निर्वहन करेंगे और अपनी शपथ की और देश के संविधान की लाज रख सकेंगे।  

विद्याभूषण अरोरा

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