विपक्षी एकता से भाजपा को होती है बेचैनी

अजय तिवारी

लगभग सारे विपक्षी दल एकता के पक्षधर हैं। दरअसल विपक्षी दल जान रहे हैं कि अगर 2024 में नरेंद्र मोदी के चेहरे वाली भाजपा को नहीं हराया गया तो उनके राजनीतिक भविष्य पर ग्रहण लग सकता है। अधिकांश दल केंद्र की जांच एजेंसियों से परेशान हैं। वह राजनीतिक गतिविधियों से ज्यादा एजेंसियों से बचने की तरकीब निकालने में ऊर्जा जाया कर रहे हैं।

राजद नेता लालू प्रसाद विदेश से किडनी ट्रांसप्लांट करवा कर फरवरी में भारत लौटे और उन्हें कुछ दिनों बाद ही सीबीआई ने तलब कर लिया। वह भी तब जब उनकी पत्नी, बेटा और बेटियां सीबीआई दफ्तर जाकर जवाब दे रहे थे। उनकी पार्टी के सांसद प्रो. मनोज झा ने बताया था कि लालू प्रसाद विदेश से लौटने के बाद विपक्षी एकता के लिए सक्रिय होंगे।  उम्र और सेहत के असर के बावजूद बिहार में अब भी वह  प्रभाव डाल सकने वाले सबसे बड़े नेता हैं।

विपक्षी दलों को भाजपा से एक खतरा और है। वह बहुत जल्दी दूसरे दलों के उपयोगी नेताओं को अपने साथ मिला लेती है। जिन्हें पार्टी में शामिल किए बिना काम चल जाता है उन्हें वह अपने एजेंडे पर सहमत कर लेती है। भाजपा ने राज्यों की विधानसभा में विपक्ष के नेता को भी नहीं छोड़ा है और राज्यसभा के सांसदों से भी परहेज नहीं किया है। दोनों को बड़ी आसानी से भाजपा में शामिल किया है। 2019 में भाजपा में शामिल होने वाले कांग्रेस के राज्यसभा में मुख्य सचेतक भुवनेश्वर कलिता का मामला काफी रोचक है। सुबह 9 बजे कलिता ने सांसदों को एसएमएस भेजकर कांग्रेस का व्हिप जारी किया और उसके तत्काल बाद वह राज्यसभा के तत्कालीन सभापति वेंकैया नायडू के पास गए और राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। उनका इस्तीफा तुरंत स्वीकार भी कर लिया गया। कांग्रेस ने इस पर आपत्ति नहीं की अन्यथा यह बड़ा मामला बनता।

हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों को विपक्ष जितना कमजोर दिखाई देता है, वैसा है नहीं। विपक्षी एकता की कोशिशों भर से भाजपा बेचैन हो जाती है। भाजपा के चुनाव प्रबंधक भी जानते हैं कि अगर विपक्ष एकजुट होकर लड़ा तो उसके लिए मुकाबला बेहद कठिन हो जाएगा।

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, दिल्ली में आप, तेलंगाना में बीआरएस(पुराना नाम टीआरएस), झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा (राजद और कांग्रेस के साथ), ओडिशा में बीजू जनता दल ने पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को हराया है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के गृह प्रदेश हिमाचल में अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं तब तब  भाजपा कांग्रेस से हारी है। बिहार के विधानसभा चुनाव में राजद की सीटें भाजपा से ज्यादा आईं थीं। कर्नाटक को छोड़ दें तो दक्षिण के किसी भी राज्य में वह विपक्षी दलों को हराने की स्थिति में नहीं है। इस बार कर्नाटक से भी उसके पैर उखड़ते दिख रहे हैं। शायद यही वजह है कि कर्नाटक के क्षेत्रीय दल जद(एस) के नेता एच डी देवगौड़ा को प्रधानमंत्री समेत भाजपा के बड़े नेता काफी महत्व दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश के एक राज्यसभा सांसद से प्रधानमंत्री की हाल में हुई मुलाकात को भी देवगौड़ा से जोड़ कर देखा जा रहा है। उक्त सांसद देवगौड़ा के बेहद करीबी हैं और पूर्व में देवगौड़ा की पार्टी में भी रह चुके हैं।

पंजाब में भाजपा का नम्बर आप, कांग्रेस और अकाली दल बाद आता है। अकाली दल भाजपा से दूर हो चुका है इसलिए पंजाब में 2024 का लोकसभा चुनाव भाजपा को अकेले लड़ना पड़ सकता है। हरियाणा में भाजपा जननायक जनता पार्टी (जजपा) के समर्थन वाली सरकार चला रही है। राज्य सरकार की लोकप्रियता में कमी आई है इसलिए कांग्रेस हरियाणा में भाजपा को अच्छी चुनौती देने की स्थिति में आ गई है। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने इन तीनो राज्यों में बेहद खराब प्रदर्शन किया था। लोकसभा से पहले इसी साल होने वाले इन राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनो की ताकत का पता चल जाएगा।

राजस्थान में कांग्रेस की अंतर्कलह की वजह से अभी अनुमान लगाना मुश्किल है लेकिन सर्वे बता रहे हैं कि छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में कांग्रेस जीत सकती है। उत्तर प्रदेश में भाजपा मजबूत है, अगर समूचा विपक्ष मिलकर चुनाव लड़े तब ही भाजपा को चुनौती दे सकता है। लोकसभा की 80 सीटें होने से भाजपा की प्रयोगशाला उत्तर प्रदेश बन गया है। ध्रुवीकरण के लिए आए दिन वहां नए प्रयोग हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व का सबसे बड़ा चेहरा बनकर उभरे हैं। गुजरात में भी भाजपा के सामने कोई चुनौती नहीं है। काग्रेस ने गुजरात में हथियार डाल दिए हैं। असम में भाजपा का किला बेहद मजबूत है। कांग्रेस का जर्जर संगठन भाजपा के इस किले को नुकसान नहीं पहुंचा सकता।

विपक्षी एकता के विषय में भी यह बातें ज्यादा फैलाई जाती है कि उस पर कोई काम नहीं हो रहा है। सबसे ज्यादा बात यह होती है कि विपक्ष में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों की भरमार है। राहुल गांधी, शरद पवार, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी चंद्रशेखर राव, अरविंद केजरीवाल और मायावती को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बताया जाता है। विपक्षी एकता के सार्थक प्रयास चल रहे हैं। उसी का परिणाम है कि जद(यू ) नेता नीतीश कुमार ने दिल्ली आकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से चर्चा की है।

अडाणी मामले में जेपीसी  (संयुक्त संसदीय समिति) मांग का समर्थन नहीं करने की वजह से एनसीपी नेता शरद पवार को लेकर ना जाने क्या-क्या कयास लगाए गए। यह तक कहा गया कि वह विपक्षी एकता से दूर हो गए हैं। पवार ने मुंबई से दिल्ली आकर ऐसी सभी धारणाओं को एक झटके में ध्वस्त कर दिया। वह सीधे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के घर विपक्षी एकता पर बात करने चले गए। उन्होंने खड़गे के घर मौजूद राहुल गांधी से भी खूब बात की। बेहद खुशगवार माहौल में खड़गे, राहुल और पवार बतियाए। खड़गे ने भी बैठक के बाद कहा कि वरिष्ठ नेता(पवार) ने अच्छा मार्गदर्शन किया। पवार ने कांग्रेस को विपक्षी एकता में बाधक मुद्दे छोड़ने की सलाह दी थी। पिछले दिनों सावरकर के मुद्दे पर शिवसेना और कांग्रेस की ठन गई थी। पवार ने सलाह दी थी कि कांग्रेस मोदी सरकार,भाजपा और आरएसएस पर खूब हमला करे लेकिन विपक्षी दलों की आलोचना न बचे। कांग्रेस के स्थानीय नेता पश्चिम बंगाल में तृणमूल, तेलंगाना में बीआरएस  और दिल्ली में आप की आलोचना करते रहते हैं। पवार की इस सलाह का कांग्रेस पर असर हुआ।

दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप के नेता अरविंद केजरीवाल को शराब घोटाले में सीबीआई ने समन भेजा तो उन्हें पहला फोन कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने किया। यह पहली बार था जब कांग्रेस अध्यक्ष ने केजरीवाल से बात की। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे विपक्षी एकता को लेकर बेहद लचीला रुख अपना रहे हैं। विपक्षी दलों  में भी एकता को लेकर  परिवर्तन दिखाई दे रहा है। विपक्षी दल भी चेहरे की बजाए 2024 का चुनाव ‘सामूहिक नेतृत्व’ में लड़ने पर जोर दे रहे हैं। इन दलों की दलील है कि इस फार्मूले से उन दलों को भी विपक्षी एकता में जोड़ा जा सकता है जिन्हें कांग्रेस से शिकायत है। यह मुश्किल नहीं है, राष्ट्रपति चुनाव के वक़्त 21 दलों के बीच ‘न्यूनतम साझा कार्यक्रम’ तैयार करने पर सहमति बनी थी।  यह कोई बहुत पुरानी बात नहीं है इसे सिर्फ 9 महीने ही हुए हैं।  मुद्दों के आधार पर संसद के भीतर चंद्रशेखर राव की बीआरएस और अरविंद केजरीवाल की आप विपक्षी एकता में शामिल हो चुके हैं।

विपक्षी एकता को लेकर 20 से अधिक दलों की बैठक एक महीने के भीतर ही दिल्ली में होगी। कर्नाटक चुनाव की वजह से कांग्रेस अध्यक्ष की व्यस्तता है अन्यथा विपक्षी एकता के लिए बड़ी बैठक जल्दी हो जाती।

*अजय तिवारी सामाजिक कार्यकर्ता और वरिष्ठ पत्रकार हैं और किसान, मजदूर, महिला और बच्चों के मुद्दों पर जागरूकता के लिए लिखते हैं।

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