मत लौटना

ओंकार केडिया* बेटे, बहुत राह देखी तुम्हारी, बहुत याद किया तुम्हें,

दो कवितायें

1. चल पड़े भ्रम मनोज पाण्डे* अपनी पुरानी घड़ीइतराती थीजब चलती थीटक टक कर। शांत हो...

राजनीति में रचनात्मकता ज़रूरी

विजय प्रताप* भाजपा-आरएसएस प्रतिष्ठान ने पिछले 6 वर्षों में आचरण के तमाम मूल्यों को तिलांजलि देते हुए सामाजिक...

भाषा बहता नीर

-राजेंद्र भट्ट* अक्सर ऐसा होता है कि हम किसी  तथ्य के  अटपटेपन को  बार-बार देखते हुए भी उस...

Right-wing Consolidation: A Tale of Countermobilization...

As BJP Government enters seventh year of its electoral dominance, signs of creeping influence of the rightist thinking can be seen to...

शक़

शक़ कहानी की पृष्ठभूमि असम का बोड़ो जनजातीय इलाका है। कब बोड़ो अस्मिता के लिए शुरू हुई जद्दोजहद शांतिपूर्ण आंदोलन से...

……या फिर हम इंसान नहीं

बिना किसी पूर्व-चेतावनी के हुए लॉक-डाउन ने देश के बड़े शहरों में रह रहे दिहाड़ी मज़दूरों को जिस तरह अचानक बेघर कर...

Can Democracy Survive Allure of the Core Voter?

For past some years in politics, there is less emphasis on ‘swing voters’ and an overt effort to keep the hardcore...

वह अपने घर में प्रवासिनी

क्या है भारत माता? क्या है अपना भारत? पंडित नेहरू की पुण्यतिथि पर राजेन्द्र भट्ट* की आज के...