अजंता देव की कविताएं – 4

सुख और दुख पर सात लघु कवितायें

इस वेब-पत्रिका में अजंता देव की कविताओं की यह चौथी कड़ी है। पहले आप उनकी कविताएं यहाँ , यहाँ और यहाँ पढ़ चुके हैं। अपनी इस बार की कविताओं के साथ उन्होंने हमें अपने पत्र में लिखा – “मैंने इन कविताओं को ऐसी मन:स्थिति में लिखा जब दुनिया लगातार दुख का सामना करते हुए या संभावित दुख की आशंकाओं से थक चुकी है। सच कहूँ तो मैं भी! ये कविताएं स्वयं से भी संवाद हैं। कविता के अलावा मेरा संवाद और भला कैसे होगा।” इस बार की कविताएं सामयिक भी हैं हालांकि चूंकि कविता सर्वकालिक होती है, इसलिए सामयिक कहना अटपटा लग रहा है लेकिन सच ये है कि सामयिक भी हैं! तो अजंता देव का सुख और दुख पर ये स्वयं से संवाद पाठकों की नज़र!

एक

दुख अंतिम रूप से विजयी होता है
सुख उसके आगे हार जाता है
 यह सूत्र कि
सच की ही जीत होती है हमेशा
रचा गया होगा उस युद्धभूमि में
जहां दुख और सुख आमने सामने थे
और सुख निहत्था था
दुख की निश्चितता के सामने।

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दो

सुख आगन्तुक की तरह घंटी बजाता है
दुख खोलता है दरवाज़ा।
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तीन

 दुख की निष्कम्प लौ पर त्राटक  से भी 

मनुष्य नहीं बन सकता साधक
वह फिर भी रहता है सिर्फ़ दुखी
 सुख के सान्निध्य के बिना

क्या सम्भव है साधना?
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चार

  दुख अपार  है कि  हम उसमें डूब जाते हैं

सुख अपार नहीं  कि उसमें नहीं डूबता कोई।
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पाँच

गठरी ही भार है
बिखेर देने से हल्के हो जाते  हैं
सुख दुख दोनों।
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छ:

सुख और दुख विवाहित जोड़ा नहीं कि हमेशा साथ रहें।
 ये दोस्त हैं और अलग रहते हैं
कभी-कभी ये हाथ पकड़ कर  दिख जाते हैं घूमते
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सात

सुख आता है प्रकाश वर्ष पार से
और जब वह हम तक पहुंचता है तो

उसका आभास भर ही बचता है
दुख  पड़ोसी है
टहलता है घर के सामने।

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अजन्ता देव हिन्दी कविता जगत की एक सुपरिचित नाम हैं। लगभग चालीस वर्षों से लगातार लिख रहीं हैं । उनके चार कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं – राख का किला, एक नगरवधू की आत्मकथा, घोड़े की आँख में आँसू और बेतरतीब। अभी कविता शृंखलाओं पर काम कर रहीं हैं।

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2 COMMENTS

  1. सुख और दुःख को प्रत्येक कोण, प्रत्येक पक्ष से सजग
    व तटस्थ रहकर भोगने के बाद ही ऐसी कविता का जन्म होता है।इस सजग अभिव्यक्ति के लिए अजंता को ढेर सारी बधाई!

  2. सुख आता है प्रकाश वर्ष पार से और दुख पड़ोसी है टहलता है घर के सामने, पाठक स्वयं को बीच में पाता है, बहुत सुंदर।

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