मोहन राणा – दो कविताएँ

1. खड़ीक* का पेड़

मैं किसी को नहीं जानता था

मैं सबको भूल जाऊँगा  

पर

मैं पत्थर था बहते पानी में

आकाश को निहारता

मैं स्मृति था भविष्य की

मैं जीव नहीं अजीव नहीं

कोई नाम जो अब नहीं बंधा

किसी जीवन की पहचान से

पर

पास उतना ही दूर है अभी से

जलते जंगलों में उस पार

अभी कभी नहीं मिलता

कल आज कल ही मिलते

नये रूपों में आसक्त ग्रीष्म की इकहरी छाया में

उनकी मर्मर निकटता को संभालता,

मैं जड़गत एकांत में!

[*खड़ीक का पेड़ उत्तराखंड में पाया जाता है और पशु चारे के लिए उपयोग में आता है।]

2. पहचान जाने उस अपने से

खुली आँखों को बंद किये बंद कानों को खोले आत्मा की खोल में

चलता मैं बूझता वह पहला शब्द तुम्हारे लिए

कि तुम सच हो जाओ हमेशा के लिए

एक अनायास झोंके में लड़खड़ाई अस्तगामी दोपहर

कि हिले नहर पर झुके इकहरे प्रतिबिम्ब हल्के से

छुपी चमक कौंधी हरी सतह पर,

मेरे कानों ने पढ़ा हवा की उस लहर को

लिखा उसमें जैसे तुमने फुसफुसाकर कि

पूरा हुआ एक जीवन कहीं चिर मौन में

कि आरंभ हुआ गोचर पहली सांस के सीत्कार में!

अपने अर्धविरामों से बाहर झाँक

पहचाना हमने अपरिचितों में

अपने लायक भूख और प्यास

कोई मैं और तुम उनमें

जो कुछ मेरा कुछ तुम्हारा,

रोपते जीवन के रिक्त स्थानों में जंगल जहाँ हवाएँ साँस ले पायें

अपनी छायाओं का बोझ उतार ले पाए दोपहर दिवास्वप्न

और कुछ देर बस यूँ ठहर जाय

फिर अदल बदल सौंपकर बढ़ लें अपने अकेलेपन को  

सुना कर खोई हुई स्मृतियों में एक दूसरे को

दूर की अनुगूँजों में आवाज़ें लंबा साथ पैदल समझ  कर

छोड़ गया एक बादल अपने हिस्से का आकाश

सजल हो गई आँखें नीलिमा पर अपलक

पानी का एक घूँट बहा गया कुछ अटका

बहुत दिन हुए, बहुत दिन हो जाएँगे, फिर फिर

समय सिक्त स्मृति शेष कोई बूँद गिरेगी

सूखी बावड़ी के  बीते सोपानों पर

मैं एक बार फिर लिखूँगा मिट्टी से

मिट्टी का पुतला

जो कुछ यहाँ वो

मैं हूँ जो देह नहीं

तुम्हें याद करता, तुम जो देह नहीं।

******

दिल्ली में जन्मे मोहन राणा लंबे अरसे से ब्रिटेन के बाथ शहर में रह रहे हैं। उनके आठ कविता संग्रह हिन्दी में प्रकाशित हो चुके हैं। यहाँ प्रस्तुत दो कविताएँ अगले प्रस्तावित संग्रह  ‘एकांत में रोशनदान’  से ली गई हैं। इंग्लैंड की आर्ट्स काउंसिल के सहयोग से उनकी चुनी हुई कविताओं का अँग्रेजी अनुवाद एक संग्रह ‘The Cartographer’ (नक़्शानवीस) के रूप में  पोयट्री ट्रांसलेशन सेंटर लंदन  ने प्रकाशित किया है। उनकी अनेक कवितायें यूरोप की कई भाषाओं में पढ़ी और अनुवाद की गईं हैं। हाल ही में उनकी प्रयोगधर्मी पुस्तक नैनों बीच नबी आई है जिसमें कविता और कहानी के बीच संगत बैठाकर अनूठा प्रयोग किया गया है। इस वेब पत्रिका के लिए मोहन राणा की पूर्व में प्रकाशित कविताएं इस लिंक पर देख सकते हैं।

बैनर चित्र : डॉ चंद्रशेखर तिवारी के सौजन्य से

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