एक और आदमीनामा और अन्य कवितायें

योगेन्द्र दत्त शर्मा*

कभी जनकवि नज़ीर अकबराबादी ने ‘आदमीनामा’ लिखा था। उस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए लगभग दो सदियों बाद मैंने नये दौर का ‘एक और आदमीनामा’ तैयार किया है। सो प्रस्तुत है :

मासूमियत के नाम से डरता है आदमी
मासूमियत का ढोंग भी करता है आदमी
अपने चमन को सांड-सा चरता है आदमी
अपने किये का दंड भी भरता है आदमी
कर्मों से अपने ख़ूब निखरता है आदमी
कर्मों से ख़ुद ही टूट-बिखरता है आदमी
पारे की तरह ख़ूब उछलता है आदमी
मायूस होके हाथ भी मलता है आदमी
जलवा है, करिश्मा भी है, रंगत है आदमी
ख़ुद में ही मगर कितना विसंगत है आदमी !

कुत्ते की मौत मर रहा, वो भी है आदमी
महफ़ूज़, फिर भी डर रहा, वो भी है आदमी
प्राणों की भीख मांगता, वो भी है आदमी
सूली पे उसको टांगता, वो भी है आदमी
क़िस्मत को अपनी रो रहा, वो भी है आदमी
मुंह ढक मज़े में सो रहा, वो भी है आदमी
जो भोग रहा आपदा, वो भी है आदमी
अवसर वहां तलाशता, वो भी है आदमी
जिसको मुहाल सांस है, वो भी है आदमी
चुभती न जिसको फांस है, वो भी है आदमी !

भीतर गया जो टूट, सो है वो भी आदमी
उसको रहा जो लूट, सो है वो भी आदमी
जो करता जूझने की पहल, वो भी आदमी
चिनवा रहा जो अपना महल, वो भी आदमी
रिसते हैं जिसके घाव, सो है वो भी आदमी
जिस पर न कुछ प्रभाव, सो है वो भी आदमी
दुख जिसके हैं अनंत, सो है वो भी आदमी
निर्लिप्त जो है संत, सो है वो भी आदमी
जो पूछता सवाल, सो है वो भी आदमी
जो करता फिर वबाल, सो है वो भी आदमी !

जो मन को भिगोता है, सो है वो भी आदमी
जो डंक चुभोता है, सो है वो भी आदमी
औरों के लिए कौर बचाता है आदमी
औरों का माल खाके पचाता है आदमी
देवत्व करता आत्मसात, वो भी आदमी
देता है जानवर को मात, वो भी आदमी
पप्पू की तरह ख़ैर मनाता है आदमी
गप्पू की तरह मूर्ख बनाता है आदमी
पलकों पे आदमी को बिठाता है आदमी
नज़रों से आदमी को गिराता है आदमी !

अपनी वफ़ा के दाम वसूले, वो आदमी
अपनी ख़ता कभी न क़ुबूले, वो आदमी
जुमले उछालता है, सो है वो भी आदमी
ख़ुद ही मुग़ालता है, सो है वो भी आदमी
आता है आदमी के काम, वो भी आदमी
जो खींच रहा उसका चाम, वो भी आदमी
दक्षिण है जो न वाम, सो है वो भी आदमी
जो रहता बेलगाम, सो है वो भी आदमी
है आदमी का पूत भी, अब्बा भी आदमी
पर आदमी के नाम पे धब्बा भी आदमी !

आशा भी आदमी है, निराशा भी आदमी
करता है ख़ुद ही अपना तमाशा भी आदमी
गो आदमी के प्यार में डूबा है आदमी
पर आदमी की ज़ात से ऊबा है आदमी
हां, आदमी को नाच नचाता है आदमी
हां, आदमी के प्राण बचाता है आदमी
मतलब निकल गया है, तो ठोसा है आदमी
पर आदमी का एक भरोसा है आदमी
माना कि हैसियत में ज़रा-सा है आदमी !
मुश्किल में आदमी की दिलासा है आदमी !

शोहरत की भूख – एक नज़्म

नीयत है अगर साफ़, फिसल जायेगी, बच्चे !
हसरत है, तो हसरत भी निकल जायेगी, बच्चे !!

कोशिश के बिना कुछ नहीं होता कभी हासिल
मझधार करके पार मिला करता है साहिल
कठिनाइयां न हों, तो कहां आती है मंज़िल
आसान कोई चीज़ कहां, चीज़ है मुश्किल
मुश्किल है घड़ी, प्यार से टल जायेगी, लाला !
आदत है, तो आदत भी बदल जायेगी, लाला !!

दुनिया में बड़ी चीज़ है, कहते जिसे क़ुदरत
करना है, तो कर प्यारे, उसी शै की इबादत
है ठीक नहीं, बावले, इतनी भी नज़ाकत
मिलने को तो मिल जायेगी यों मुफ़्त में शोहरत
शोहरत की तेरी भूख जो बढ़ जायेगी, प्यारे !
दुनिया में बड़ा रुसवा वो करवायेगी, प्यारे !!

सब दोस्त गये छोड़के, सूनी हुई है बज़्म
क्या गाये ग़ज़ल कोई, सुनाये क्या कोई नज़्म
ताज़ा है अभी ज़ख़्म, कहानी भी कहां ख़त्म
हर पद्म के तल में है किसी अज़्म का छल-छद्म
छल-छद्म की शैली जो तुझे भायेगी, भैया !
बेपर्द तुझे चौड़े में करवायेगी, भैया !!

है पेट में रोटी नहीं, तन पे कोई लत्ता
तिनके के सहारे के लिए सूखा-सा पत्ता
परचम-सा तना है ये तेरे हाथ में गत्ता
तू सोच रहा, हाथ में आ जायेगी सत्ता
सत्ता की तुझे चाट जो पड़ जायेगी, बाबा !
गंगा के किसी घाट पे पहुंचायेगी, बाबा !!

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*लेखक एवं पत्रकार योगेन्द्र दत्त शर्मा अनेक वर्षों तक भारत सरकार की साहित्य, संस्कृति को समर्पित पत्रिका ‘आजकल’ का संपादन करते रहे हैं। इसके अलावा ‘धर्मयुग’, ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’, ‘सारिका’, ‘कादंबिनी’, ‘नवनीत’, ‘शोधस्वर’, ‘गगनांचल’, ‘इंद्रप्रस्थ भारती’, ‘समयांतर’ आदि लब्धप्रतिष्ठ पत्र-पत्रिकाओं में गीत-नवगीत, ग़ज़ल, कहानी, निबंध, आलेख प्रकाशित। विभिन्न साहित्यिक विधाओं में योगेन्द्र जी की अनेक प्रकाशित पुस्तकें भी हैं। संप्रति : स्वतंत्र लेखन और विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशन सहयोग। संपर्क : yogendradattsharma 3110 @ gmail.com

1 COMMENT

  1. योगेंद्र जी को सही मायनों मैं सरस्वती का वरदान मिला है। शुद्ध तत्सम शब्दावली से लेकर नफीस उर्दू तक -शब्द उनके इशारे पर नाचते हैं।

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