ओंकार केडिया*
मैं सरहद के इस ओर से देखता हूँ
उस ओर की हरियाली,
कंटीली तारें नहीं रोक पातीं
मेरी लालची नज़रों को.
सतर्क खड़े हैं बाँके जवान
इस ओर भी, उस ओर भी,
पर रोक नहीं पाता मुझे कोई.
अपने देश से बहुत प्यार है मुझे,
पर यह ज़रूरी है क्या
कि उस ओर के खेत मुझे
इस ओर के खेतों से कम हरे दिखें?
यह ज़रूरी है क्या
कि उस ओर बहती नदी का पानी
मुझे कुछ कम साफ़ दिखे,
कि उस ओर गाए जा रहे गीत
मेरे कानों को कम मीठे लगें?
यह ज़रूरी है क्या
कि उस ओर उड़ती तितली के रंग
मुझे कम गहरे दिखें,
कि उस ओर उड़ती चिड़िया
मुझे कम सुन्दर लगे.
देखो, ढेर सारे फूल खिले हैं
सरहद के उस तरफ़,
उनकी ख़ुश्बू मुझे अच्छी लगे,
तो यह देशद्रोह है क्या?
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सुन्दर सृजन
बहुत सुंदर ! काश ऐसी ही नजरें उधर भी होतीं
जीतू प्रकृति के प्रति प्रेम है