ओंकार केडिया*
इन उजड़ी झोंपड़ियों के आसपास
कुछ टूटी चूड़ियां हैं,
कुछ बदरंग बिंदियाँ हैं,
कुछ टूटे फ्रेम हैं चश्मों के,
कुछ तुड़ी-मुड़ी कटोरियाँ हैं.
यहाँ कुछ अधजली बीड़ियाँ हैं,
कुछ कंचे हैं, कुछ गोटियाँ हैं,
तेल की ख़ाली बोतलों की तलहटी में
देसी शराब की कुछ बूँदें है.
जली फुलझड़ियों के तार हैं,
कुछ टूटे-फूटे दिए हैं,
पक्के रंगोंवाली रंगोली है,
जिसके कई रंग मिट गए हैं.
यहाँ चारपाई की रस्सियाँ हैं,
कुछ ईंटें हैं, जो जुड़ती थीं,
तो पाया बन जाती थीं,
कुछ बुझे हुए चूल्हे हैं,
ठंडी पड़ चुकी राख है.
सभी सबूत मौजूद हैं यहाँ
कि झोपड़ियों में लोग रहते थे,
नहीं हैं तो इस बात के संकेत
कि ये झोपड़ियां उजड़ीं कैसे
और इन्हें उजाड़ा किसने.
*ओंकार केडिया सिविल सेवा अधिकारी थे और भारत सरकार में उच्च पदों पर पदासीन रहे हैं। वह अपने ब्लॉग http://betterurlife.blogspot.com/और http://onkarkedia.blogspot.com/ वर्षों से कवितायें और ब्लॉग लिख रहे हैं।