ओंकार केडिया*
मास्क – 1
तुम्हारे मुँह और नाक पर
मास्क लगा है,
पर तुम बोल सकते हो,
बोलना मत छोड़ो,
जब तक कि तुम्हें
पूरी तरह चुप न करा दिया जाय.
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मास्क – 2
बहुत भोले हैं हम,
कहते हैं, मास्क के चलते
लोग पहचाने नहीं जा रहे,
जैसे कि बिना मास्क के
पहचाने जा रहे थे.
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मास्क – 3
मास्क लगाया ही है,
तो पूरी तरह लगाओ,
जब खुल के छिपा रहे हो,
तो आधा-अधूरा क्या छिपाना?
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मास्क – 4
सभी घूम रहे हैं मास्क लगाकर,
सभी एक से लगते हैं,
वैसे भी क्या फ़र्क है
आदमी और आदमी में?
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*ओंकार केडिया सिविल सेवा अधिकारी थे और भारत सरकार में उच्च पदों पर पदासीन रहे हैं। वह अपने ब्लॉग http://betterurlife.blogspot.com/और http://onkarkedia.blogspot.com/ वर्षों से कवितायें और ब्लॉग लिख रहे हैं।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग “पांच लिंकों का आनन्द” रविवार 29 नवंबर नवंबर 2020 को साझा की गयी है………….. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा….धन्यवाद!
वाह!क्या बात है । बहुत खूब !
बिना मास्क के भी कहाँ पहचाने जाते .
अरे ,ये मास्क को लगा है ,मुखौटों पर ।
बेहतरीन अभिव्यक्ति सर।
सादर।
Good poems!