हिन्दू द्वारा किए गए खुलासों से उठे सवालों के जवाब मिलने ही चाहियें

आज की बात

हाल ही में हिन्दू अखबार एन. राम द्वारा राफेल मामले पर कुछ नए रहस्योद्घाटनों के बाद इतना कुछ लिखा जा रहा है और अखबारों से लेकर सोशल मीडिया और इंटरनेट पर इस मसले पर इतना कुछ उपलब्ध है कि हमारे लिए इसमें कुछ नया कहने की गुंजाइश नहीं है। लेकिन फिर कभी-कभी कुछ बातें ऐसी आ जाती हैं जिन पर तुरंत कुछ कहने का मन हो आता है।

अब जैसे वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह का ये ट्वीट देखिये जिसमें उन्होंने हिन्दू अखबार द्वारा राफेल मामले में किए गए नए खुलासों के बारे में कुछ और ना कहते हुए सिर्फ ये चिंता जताई कि “असली सवाल ये है कि रक्षा मंत्रालय एक छलनी की तरह लीक क्यूँ कर रहा है” यानि वहाँ से ऐसी जानकारी प्रेस को क्यों उपलब्ध कराई जा रही है।

कहने की आवश्यकता नहीं कि इस बात का कोई समर्थन नहीं करेगा कि रक्षा मंत्रालय से ऐसी कोई जानकारी लीक हो जिससे राष्ट्रीय हितों को कोई नुकसान पहुंचता हो। अभी तक जो भी खुलासे हुए हैं, उनसे तो ऐसा बिलकुल नहीं लग रहा कि कोई भी पत्रकार या राजनेता राष्ट्रीय हित के खिलाफ काम कर रहा है।

तवलीन सिंह से यह पूछा जाना चाहिए कि क्या एक ऐसे मामले में जिसमें यह स्पष्ट लग रहा हो कि सरकार कुछ छिपा रही है, यदि कोई जानकारी बाहर आती है तो उसे जनहित में क्यों नहीं माना जाना चाहिए? खास तौर पर तब जब कि इस तरह से बाहर आ रही जानकारी से राष्ट्र हितों को कोई हानि ना पहुँच रही हो। ट्वीटर पर लोगों ने उनसे इस आशय के सवाल पूछे भी हैं।

जैसा कि शेखर गुप्ता ने अपने एक ट्वीट में कहा कि ‘मीडिया लीक्स’ ना होते तो बोफोर्स, 2-G घोटाला या कोयला घोटाले जैसे बड़े-बड़े मामले कैसे उजागर होते? संयोग से कुछ ही दिन पहले इस स्तंभकार का वेब-पोर्टल हिन्दी प्रिंट पर एक लेख प्रकाशित हुआ था जिसका शीर्षक ही यही था – ‘मीडिया लीक’ लोकतन्त्र के लिए उतनी बुरी बात भी नहीं”!

भारत में ही नहीं, दुनिया भर में जहां जहां भी प्रेस को लिखने की आज़ादी (या सीमित आज़ादी भी) है तो वहाँ कभी अंतरात्मा की आवाज़ सुनने वालों द्वारा तो कभी-कभी प्रतिस्पर्धा या पारस्परिक मत-विभेद या यहाँ तक कि कभी विद्वेष के कारण सूचनाएँ बाहर आती रहती हैं। उन्हीं सूचनाओं के बल पर बड़े-बड़े रहस्योद्घाटन हुए हैं जिन पर सभी पत्रकार नाज़ करते हैं। ऐसे में तवलीन जैसी एक वरिष्ठ पत्रकार का ये कहना कि राफेल से संबंधित ‘मीडिया लीक’ सही नहीं हैं, आश्चर्यजनक है।

कहना होगा कि हिन्दू द्वारा किए गए इन खुलासों के बाद मोदी सरकार अब और ज़्यादा घिरी हुई नज़र आ रही है। अरुण जेटली अस्वस्थ होते हुए भी जिस ‘बहादुरी’ से ट्वीट कर-कर के सरकार का बचाव कर रहे हैं, वह नरेंद्र मोदी के एक अच्छे मित्र के रूप में स्वयं को ज़रूर साबित कर रहे हैं लेकिन वह एकदम ‘कन्विंसिंग’ नहीं लग रहे हैं और उनसे सहमत होना एक आम आदमी के लिए भी बहुत मुश्किल है।  

अब जैसा कि उन्होंने अपने उपरोक्त ट्वीट में कहा (ऊपर लिंक दिया है) कि ये कैसे हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट भी गलत है और सीएजी भी गलत है, सिर्फ ये बड़े परिवार का वंशज (राहुल गांधी) सही है।

इसमें संदेह नहीं कि हमारे पास राहुल गांधी की बात को सही मानने के भी कोई प्रमाण नहीं हैं लेकिन सरकार अपनी तरफ से ऐसा भी तो कुछ नहीं कर रही कि जिससे राहुल या मीडिया की तरफ से उठाए जा रहे सवालों के जवाब मिल जाएँ।

राफेल विमान की कीमत के बारे में बिलकुल भी स्पष्टता ना होना, खरीदे जाने वाले विमानों की संख्या को 126 से 36 करने की प्रक्रिया के बारे में संदेह उठना, सौदे की शर्तों से भ्रष्टाचार की धारा को हटाना, ऑफसेट प्रावधान के तहत अनिल अंबानी की कंपनी को चुनना जिसका ना सिर्फ कोई अनुभव नहीं है बल्कि जो पूरी तरह असफल व्यापारिक संस्थान है और जिसकी दिवालिया घोषित होने की प्रक्रिया भी शुरू होने को है, रक्षा मंत्रालय द्वारा ‘सोवरन गारंटी’ ना होने की दशा में फ्रांस सरकार को किसी तरह सौदे में शामिल करने के अनुरोध को नहीं मानना इत्यादि बहुत सारे सवाल मुंह बाए खड़े हैं जिन पर स्पष्टता से सरकार को जनता के सामने आना चाहिए।

अगर सभी सवालों के जवाब देने की बजाय सरकार कभी सुप्रीम कोर्ट तो कभी सीएजी की टिप्पणियों के पीछे छिपेगी तो उसे इन आरोपों का भी सामना करना होगा कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को राफेल मामले की खरीद संबंधी सही जानकारी नहीं दी और सीएजी ने तो अपनी रिपोर्ट की भूमिका में ही कह दिया कि रक्षा मंत्रालय सीएजी की अनिच्छा के बावजूद कीमत का व्यावसायिक विवरण रिपोर्ट में ना देने पर दृढ़ रही और इसलिए सीएजी इस सौदे की कटी-छटी (redacted) जानकारी ही देगी। इस संदर्भ में टेलीग्राफ की पत्रकार अनीता जोशुआ का ये ट्वीट देखिये जिसमें उन्होंने  रिपोर्ट की भूमिका के इस हिस्से को रेखांकित करते हुए इसकी फोटो भी लगाई है।

हो सकता है कि कुछ विश्लेषकों का ये कहना सही हो कि भाजपा को इस सबसे कोई नुकसान नहीं होने वाला क्योंकि राफेल उतना चुनावी मुद्दा नहीं बनेगा जितना विकास या सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण। फिर भी इतना तो लगता है कि इस मामले में इतना कुछ सामने आ चुका है कि मोदी सरकार के लिए अपनी यह छवि बनाए रखना कि वह भ्रष्टाचार से मुक्त है, मुश्किल लगता है।

इसका चुनावी गणित पर क्या असर पड़ता है या फिर पड़ता भी है या नहीं, यह अभी कहना मुश्किल है लेकिन मोदी के सरकार के बारे में लोग क्या सोचते हैं, तो उस पर इसका नकारात्मक असर ना पड़े, ये नहीं हो सकता।

…….विद्या भूषण अरोरा

4 COMMENTS

  1. HERE IS THE MOST COGENT REPLY AND OF COURSE GYAN FOR PSEUDOS ===============https://rightlog.in/2019/02/hindu-rafale-01-2/?fbclid=IwAR0kQPpWagxVJWtu1aqSS1vzPno0qLYZU6rvvMprrVckLc9GIyVG9tXXh68

    • This does not answer any question! It only reiterates some lame excuses which have been adequately taken care of in cyber space. We have posted it for readers to see. Don’t expect us to react more on this. Thank you.

  2. What a sham and shame RAAGDELHI.COM. You have no gumption to post an innocuous factual rejoinder to your article. PSEUDOS do get themselves exposed by such a stand on FoE of readers.

    • It is a new website without any resources. No staff or assistants here. I didn’t even know that some replies are pending. My web adviser (who worked on it pro-bono) had advised me to not to have comments but I thought otherwise. I now realise he was right after all.
      Raag Delhi

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