लालू प्रसाद के रोके भी नहीं रुके रघुवंश बाबू

जयशंकर गुप्त*

नियति बहुत ही क्रूर और निष्ठुर होती है. उसे क्या पता कि देश और समाज को किसकी कितनी जरूरत है. उसने बीते दो दिनों के भीतर जन सरोकारों से जुड़े सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता के दो प्रमुख पहरेदारों को हम से छीन लिया. तेलुगु ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए, बंधुआ मजदूरों की मुक्ति से सार्वजनिक चर्चा के केंद्र में आए, सामाजिक कुरीतियों, विषमताओं के विरुद्ध मान-अपमान की चिंता किए बगैर चट्टान की तरह खड़ा रहनेवाले 81 वर्षीय आर्यसमाजी भगवा वस्त्रधारी स्वामी अग्निवेश 11 सितंबर को लिवरसिरोसिस की भेंट चढ़ गये जबकि 74 वर्षीय खांटी समाजवादी, जनता की बात जनभाषा में कहने के पक्षधर, प्रखर सांसद, राजद के वरिष्ठ नेता प्रो. रघुवंश प्रसाद सिंह आज 13 सितंबर को हम सबको अलविदा कहते हुए अपनी अंतिम और अनंत की यात्रा पर निकल गये. दोनों के साथ अपना दशकों पुराना व्यक्तिगत और वैचारिक नाता रहा.  

हरियाणा में राजनीति में सक्रिय आर्यसमाज के कई सन्यासियों से मैं परिचित रहा हूँ। एक जमाने में (सत्तर-अस्सी के दशक में) स्वामी अग्निवेश जनता पार्टी, स्वामी इंद्रवेश लोकदल और स्वामी शक्तिवेश और आदित्यवेश कांग्रेस में सक्रिय होते थे. स्वामी अग्निवेश हरियाणा विधानसभा के सदस्य और राज्य सरकार में मंत्री तथा इंद्रवेश लोकसभा के सदस्य भी रहे. लेकिन स्वामी अग्निवेश बंधुआ मुक्ति, सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता और मानवाधिकारों के प्रति अपनी पक्षधरता, धार्मिक कट्टरपंथ की विरुद्ध आवाज उठाते रहने के कारण मृत्युपर्यंत सक्रिय और हमेशा चर्चा में बने रहते थे. समाज के गरीब, दलित, वंचित, शोषित औप पीड़ित तबके उन्हें अपना प्रवक्ता मानते थे, शोषक, पीड़क और धर्म के नाम पर कट्टरपंथ को बढ़ावा देनेवाले उनसे नफरत सी करते थे. उन्हें कई बार कट्टरपंथियों की मार पिटाई भी झेलनी पड़ी थी. उनके प्रति नफरत का आलम यह कि अपने भ्रष्टाचार के किस्सों के लिए मशहूर सीबीआई के पूर्व प्रमुख (अंतरिम) रहे एम नागेश्वर राव ने मरणोपरांत उनके बारे में अत्यंत कुत्सित टिप्पणी ट्वीट करते हुए लिखा, ‘मुझे यमराज से शिकायत है कि उन्होंने इतना लंबा इंतजार क्यों किया.’ राव भारतीय पुलिस सेवा से रिटायर होने के पहले से ही और बाद में भी किसी राजनीतिक नियुक्ति की प्रत्याशा में सत्ता की चाटुकारिता में लगे हुए हैं.

 समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर और उनके बाद राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बेहद करीबी सहयोगी रहे, बरहम (ब्रह्म) बाबा के नाम से मशहूर रघुवंश प्रसाद सिंह कई बार विधानसभा और लोकसभा के सदस्य रह चुके हैं. वह बिहार विधानसभा के उपाध्यक्ष और केंद्र में यूपीए सरकार में मंत्री भी रहे. उन्होंने मनमोहन सरकार में नरेगा (राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम-जो बाद में मनरेगा यानी महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम बन गया) कार्यक्रम को देश भर में सुचारु रूप से चला कर पूरे देश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया. नरेगा अगर समाज शास्त्री ज्यां द्रेज़ ने की परिकल्पना थी, तो उसे जमीन पर उतारा था रघुवंश बाबू ने.

इससे न सिर्फ गांव स्तर तक जनतंत्र की जड़ें गहरी हुईं, आर्थिक लोकतंत्र भी विकसित हुआ. मनरेगा लागू होने के पहले और उसके बाद गांव में काफी फर्क आया. इस कार्यक्रम की सफलता के चलते ही यूपीए सरकार दोबारा सत्तारूढ़ हो सकी थी. यहां तक कि इस कार्यक्रम के बारे में तमाम जली कटी बातें कहनेवाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसे जारी रखने और इसका आकार बढ़ने के लिए बाध्य हुए. देश भर में ग्रामीण सड़कों का जाल बिछाना भी उनके विभागीय मंत्री रहते ही शुरू हुआ था.

6 जून 1946 को बिहार के वैशाली में जन्मे रघुवंश बाबू ने राजनीति में लम्बी पारी खेली. 1977 में पहली दफा विधायक चुने गए थे. भाषा-भूसा से भदेस दिखनेवाले रघुवंश बाबू  डाक्टरेट की डिग्री के साथ प्राध्यापक भी रह चुके थे. उनकी पहचान एक बेदाग और ईमानदार के साथ ही मुंहफट नेता के तौर पर होती रही है. ग्रामीण विकास मंत्री रहते हुए उन्होंने काफी काम किया. प्रेस कॉन्फ्रेंस में अंग्रेजी और न्यूज चैनल के पत्रकारों द्वारा ज्यादा प्रश्न पूछे जाने पर कई बार वे उनके मुंह पर ही बोल देते थे कि ख़बर तो दिखती-छपती है नहीं, प्रश्न खूब पूछ रहे हैं. लेकिन उनके मन में किसी के प्रति भी द्वेष नहीं होता था. जब भी मिलते, ‘कि हाल’ (क्या हाल है). राजधानी दिल्ली के पत्रकारों, खासतौर से पूरबिया पत्रकारों को रघुवंश बाबू का मकर संक्रांति के अवसर पर दिया जाने वाला दही चूड़ा का भोज (जिसमें पूड़ी सब्जी का समावेश भी होता था) बहुत पसंद था. खुद निजी रुचि लेकर वह पत्रकारों को खिलाते थे. दिल्ली में पत्रकारों के लिए इस भोज की शुरुआत संभवतः उन्होंने ही की थी. बाद में तो बिहार के और भी कई नेता दही-चूड़ा भोज आयोजित करने लगे.

जन नायक कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद एक बार जो रघुवंश बाबू जो लालू प्रसाद यादव के करीब आए तो फिर कभी भी इधर उधर नहीं देखा. उनके करीबी बने रहे. तमाम तरह के राजनीतिक प्रलोभन भी भी उन्हें इधर से उधर नहीं कर सके. लेकिन बीते कुछ समय से खासतौर से लालू प्रसाद के चारा घोटाले में सजायाफ्ता होकर जेल जाने के बाद से वह पार्टी में खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे थे. इसका कारण एक तो राज्यसभा के पिछले चुनाव में उनकी कथित उपेक्षा और फिर उनके जिले वैशाली में उनके राजनीतिक विरोधी रहे दबंग छवि के पूर्व सांसद रामा सिंह को राजद में शामिल कराने की कोशिशें कही जाती हैं. इसके विरुद्ध वह अपनी नाराजगी कई बार सार्वजनिक रूप से भी प्रकट कर चुके थे. उन्होंने पिछले दिनों पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद से त्यागपत्र देने के साथ ही पार्टी से अलग होने के संकेत भी देना शुरू कर दिया था. बीच बचाव और सुलह सफाई की कोशिशें भी कामयाब नहीं हो सकीं. इस बीच लालब प्रसाद के बड़े मगर मसखरा और बदमिजाज छवि के बेटे तेजप्रताप

यादव ने यह कह कर कि राजद रूपी समुद्र से एक लोटा पानी के निकल ने से समुद्र सूख नहीं जाता. इसका रघुवंश बाबू की सेहत पर और बुरा असर पड़ा. 74 वर्षीय रघुवंश प्रसाद सिंह पिछले दिनों इलाज के लिए दिल्ली के एम्स में भर्ती हुए थे. इससे पहले कोरोना वायरस से संक्रमित होने के कारण उनका इलाज पटना के एम्स में शुरू हुआ था. एम्स में इलाज के दौरान ही बिहार की घटिया चुनावी राजनीति शुरू हो गई. आईसीयू में वेंटिलेटर पर इलाजकरवा रहे रघुवंश बाबू का एक पत्र सार्वजनिक हुआ जिसमें उन्होंने लालू प्रसाद को बहुत भावुक अंदाज में पत्र लिखकर अलग होने की बात कही. इसके साथ ही उनके नाम से एक और पत्र बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नाम से जारी हुआ जिसमें उन्होंने कुछ मांगों को पूरा करने की अपील की थी.

एक दिन बाद ही लालू प्रसाद ने रघुवंश बाबू को उतना ही भावुक जवाब देते हुए अपने दशकों पुराने राजनीतिक संबंधों का वास्ता देकर कहा कि आपको कहीं नहीं जाना है. लगता है कि रघुवंश बाबू पशोपंज में पड़ गए और आज उन्होंने न सिर्फ राजद बल्कि इस देश दुनिया को छोड़कर ही अनंत की यात्रा पर निकल गए जहां उन्हें रोकने-बुलानेवाला कोई लालू प्रसाद-नीतीश कुमार नहीं. उनके निधन से व्यथित और भावुक लालू प्रसाद ने आज ट्वीट कर लिखा, ‘प्रिय रघुवंश बाबू ! ये आपने क्या किया? मैनें परसों ही आपसे कहा था कि आप कहीं नहीं जा रहे हैं. लेकिन आप इतनी दूर चले गए. नि:शब्द हूं. दुःखी हूं. बहुत याद आएंगे.’ लेकिन नियति के आगे किसका चलता है.

वाकई, सशरीर मौजूद नहीं रहने के बावजूद रघुवशं बाबू इस बार, दो महीने बाद होनेवाले बिहार विधानसभा के चुनाव में महत्वपूर्ण किरदार बने रहेंगे. राजद परिवार और जद (यू) के लोग अपने-अपने तर्कों के साथ अपने पक्ष में उनका इस्तेमाल करने से नहीं चूकेंगे. लेकिन न सिर्फ बिहार बल्कि इस देश का गांव और गरीब अपने इस प्रवक्ता और हितैषी को लंबे समय तक याद करेगा. हमारे जैसे हजारों लोगों के दिलों में भी वह हमेशा जीवंत बने रहेंगे. 

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*जयशंकर गुप्त वरिष्ठ पत्रकार हैं और पिछले लगभग चार दशकों से देश के विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कार्यरत रहे हैं। आजकल प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के सदस्य भी हैं। स्वतंत्र पत्रकारिता करते हैं।

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