विधानसभा में एक भी नहीं लेकिन राज्यसभा में चार

आज की बात

अभी हाल ही में आपने वो तस्वीरें देखी होंगी जिनमें तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के चार राज्य सभा सदस्य भारतीय जनता पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष जे पी नड्डा के साथ और राज्य सभा में भाजपा के नेता थावरचंद गहलोत के साथ खिसियाई हुई मुस्कराहट के साथ फोटो खिंचवा रहे हैं। टीडीपी के छ: राज्यसभा सदस्यों में से चार का भाजपा के साथ चले जाना चंद्रबाबू नायडू की लोकसभा और विधानसभा चुनावों में पहले से ही चोट खाई पार्टी को बहुत गहरा झटका लगा।

लेकिन बात अगर सिर्फ कुछ लोगों के दलबदल की होती तो शायद हम उस पर चर्चा भी ना करते और इस बार भी हमारी नज़र से ये मामला चूक रहा था जब एक मित्र ने ध्यान बंटाया कि ये साधारण दल-बदल का मामला नहीं है और ये राज्यसभा के सदस्यों के दल-बदल का मामला है। उनके ‘राज्यसभा’ शब्द पर ज़ोर देने पर हमारा ध्यान गया कि अरे, राज्यसभा सदस्य तो राज्यों की विधानसभाएँ करती हैं और आंध्रप्रदेश जहां से ये सदस्य हैं, वहाँ की विधानसभा में एक भी सदस्य भारतीय जनता पार्टी का नहीं है, वहाँ से चार राज्यसभा सदस्य इसी पार्टी के हैं।

कुछ अचकचाहट होती है ना ये सुनकर कि एक ऐसी विधानसभा जिसमें उस पार्टी का एक भी सदस्य नहीं है, वहाँ से उसी पार्टी के चार सदस्य हैं। तकनीकी तौर पर शायद इसमें कोई गलती ना हो क्योंकि दल-बदल करने वाले इन सदस्यों के समूह को राज्यसभा के सभापति ने मान्यता भी दे दी है। लेकिन नैतिकता के मापदण्डों पर तो ये स्थिति खरी उतरती नहीं लग रही।

मज़े की बात ये कि इस खबर से संबंधित जो भी खबरें आईं हैं, उन ये भी ज़िक्र है कि दल-बदल करने वाले ये चारों सदस्य उद्योगपति हैं और इनमें से दो के खिलाफ तो हाल ही में इन्कम-टेक्स, सीबीआई और एंफोर्समेंट डायरेक्टोरेट जैसी एजेंसियों ने छापे डाले हैं।

देखना है कि देश की राजनीति कैसे निपटती है इस अजीब सी स्थिति से!

विद्याभूषण अरोरा

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