चुनाव आयोग को धार्मिक स्थलों के दौरे की मीडिया कवरेज पर रोक लगानी चाहिए

आज की बात

बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो बहन मायावती ने कल अपने वक्तव्य में एक ऐसी बात कही जो हमारी नज़र में महत्वपूर्ण थी लेकिन किसी भी अखबार की सुर्खी नहीं बन पाई। अगर आप उनके ब्यान से संबंधित समाचारों को पूरा पढ़ेंगे तो पाएंगे कि उन्होंने कल चुनाव आयोग से ये मांग भी कि उसे चुनाव प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद उम्मीदवारों द्वारा धार्मिक स्थलों पर जाने प्रतिबंध लगाना चाहिए और कम से कम मीडिया द्वारा ऐसे दौरों को प्रचार दिये जाने पर तो तुरंत रोक लगनी ही चाहिए।

धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार संविधान प्रदत्त है और उससे किसी भी भारतीय नागरिक को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए लेकिन साथ ही ये भी सच है कि धर्म के आधार वोट मांगना या चुनावों को प्रभावित करना भारतीय जन प्रतिनिधित्व कानून के अनुसार ‘भ्रष्ट-आचरण’ है और उच्चतम न्यायालय ने भी इसे बहुमत के एक फैसले के आधार पर इसे कानून-सम्मत नहीं माना है।

जैसा कि हम आजकल चल रहे लोकसभा चुनावों के दौरान देख रहे हैं, चाहे सीधे-सीधे धर्म के नाम पर वोट नहीं मांगे गए हों लेकिन उस धुंधली लाइन को कई बार क्रॉस किया गया और कभी-कभी ऐसा लगा कि ये कानून तोड़ने जैसा भी हो सकता था। आपको प्रधानमंत्री का वर्धा वाला भाषण याद ही होगा जिसमें उन्होंने राहुल गांधी पर केरला के वायनाड भागने का आरोप लगाया था। यह अलग बात है कि चुनाव आयोग ने इसे चुनाव संहिता का उल्लंघन नहीं माना और उसके इस फैसले की ख़ासी आलोचना भी हुई।

मंदिरों में राजनेताओं की भीड़

एक बार फिर उम्मीदवारों द्वारा या उनके लिए वोट मांगने वालों द्वारा धार्मिक स्थलों के दौरों की बात पर वापिस आयें तो कहना होगा कि भाजपा को मात देने के लिए कांग्रेस में भी ये प्रवृत्ति ज़ोर पकड़ रही है। आप कह सकते हैं कि कांग्रेस में इसकी ‘आधिकारिक शुरुआत’ तो उस समय हो गई थी जब राहुल गांधी ने अपने को जनेऊ-धारी ब्राह्मण घोषित किया और ये साबित करने के लिए फोटो भी खिंचवाई। भारतीय राजनीति में यह सब देखकर वितृष्णा भी हो रही थी और राहुल गांधी से एक तरह की सहानुभूति भी हो रही थी कि ये भाजपा से निपटने के लिए किस चक्कर में पड़ रहा है।

वरुण ग्रोवर ने इस पर तंज करते हुए सही कहा था कि राहुल उन्हीं के अखाड़े में जाकर उन्हें क्यों हराना चाहते हैं? अपने एक स्टैंड-अप कॉमेडी शो में वरुण ने कहा कि सामने वाला इस चीज़ का एक्सपर्ट है! आप माथे पर तिलक लगा रहे हो और वो पूरे बदन पर भस्म मल कर खड़ा है तो आप कैसे उसका मुक़ाबला करोगे? चाहे ये व्यंग्य में कही गई बात थी लेकिन थी तो खरी!

कल मायावती जी का ये जो ब्यान आया उसके जस्ट पहले प्रियांका गांधी ने उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में पूजा-अर्चना की थी और स्वाभाविक था कि मीडिया ने इस घटना को अच्छे से कवर किया। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह रिवाज़ भाजपा का शुरू किया हुआ है और सबसे ज़्यादा उल्लेखनीय बात ये है कि मीडिया द्वारा आए दिन स्वयम प्रधानमंत्री को पूजा-अर्चना या आरती करते हुए दिखाया जाता है।

इसमें भी कोई संदेह नहीं कि चाहे वो प्रधान मंत्री हों या प्रियांका गांधी – सभी को अपने धार्मिक स्थलों पर जाने का अधिकार है किन्तु क्या ये भी सही नहीं है कि धर्म एक व्यक्तिगत मामला और इसके ऐसे भोंडे प्रदर्शन की बिलकुल ज़रूरत नहीं होती। स्पष्ट है कि अगर ऐसा किया जा रहा है तो किसी स्वार्थ-वश किया जा रहा है (चुनाव के दौरान वोट बटोरने के लिए) जैसा कि हम चुनाव के मौसम में देखते हैं या यूं कहें कि राजनीति में हमेशा ही देखते हैं। तरीका तो यही है कि जब कोई मंदिर या किसी भी धार्मिक स्थल पर जाता है तो वो चाहता है कि उसे शांतिपूर्वक अपनी प्रार्थना या पूजा अर्चना करने दी जाये। आपको याद होगा कि हर बड़े मंदिर में यह आदेश लिखा होता है कि कैमरे का इस्तेमाल वर्जित है। फिर यदि कोई राजनीतिज्ञ मंदिर जाते हैं तो उनके पीछे मीडिया कैमरे लेकर क्यों चल देता है?

इसलिए हम मायावती की इस मांग को बिलकुल उचित मानते हैं कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान उम्मीदवारों या उनके लिए वोट मांगने वालों द्वारा धार्मिक स्थलों के दौरों के मीडिया कवरेज पर चुनाव आयोग द्वारा रोक लगनी चाहिए।  

विद्या भूषण अरोरा

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