क्या आप भी क्रिप्टो करेंसी से कमाना चाहते हैं मोटा मुनाफा? ज़रा ठहरिये, पहले जोखिम तो परख लीजिए

नितिन प्रधान *

निवेश की दुनिया में आजकल बिटकॉइन बेहद चर्चा में है। निवेश की इस दुनिया में शायद ही कोई शख्स ऐसा होगा जो बिटकॉइन से परिचित न हो। आजकल बिटकॉइन कई वजहों से चर्चा में है। एक तरफ रेगुलेटर के दायरे से बाहर होने की वजह से इसमें किये जाने वाले निवेश के जोखिमों की चर्चा है तो दूसरी तरफ टेसला के एलन मस्क की वजह से विभिन्न बिटकॉइन की कीमतों में हो रहा तेज़ उतार-चढ़ाव चर्चा का विषय बना हुआ है। कुछ बड़े निवेशकों ने अब तक के निवेश में इसमें भारी मुनाफा कमाया है तो बहुत से निवेशक ऐसे भी हैं जिन्होंने बिटकॉइन  या क्रिप्टो करेंसी के चक्कर में अपना सब कुछ गंवा दिया है।

बीते दो दशक में बिटकॉइन की शुरुआत से लेकर अब तक डिजिटल करेंसी या ब्लॉक चेन आधारित करेंसी की संख्या तेजी से बढ़ी है। बिटकॉइन के बाद इस बाज़ार में अब कई तरह के कॉइन उपलब्ध हैं। लेकिन इसकी सबसे बड़ी समस्या ये है कि सभी तरह के क्वाइन निजी कंपनियों की तरफ से बाज़ार में उतारे गए हैं और इनमें होने वाले निवेश या कीमतों पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं है। मसलन जिस डोजकाइन में एलन मस्क ने निवेश किया और कहा कि वो इसे अपनी कार खरीदने वाले ग्राहकों से कीमत के तौर पर भी स्वीकार करेंगे। तीन महीने पहले के उनके इस बयान के बाद डोजकाइन की मांग बहुत तेजी से बड़ी और इसकी कीमत बीते 365 दिनों 26697 प्रतिशत तक बढ़ गई। डोजकाइन की मांग में यह वृद्धि बताती है कि इस तरह की करेंसी में निवेश करने के लिए कितने लोग तैयार बैठे हैं। हालांकि अब डोजकाइन के निवेशक खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं क्योंकि अभी तीन दिन पहले मस्क ने ऐलान कर दिया कि पर्यावरणीय चिंताओं की वजह से उनकी कार कंपनी अब कीमत के तौर पर बिटकॉइन स्वीकार नहीं करेगी और उसके इस ऐलान के बाद फिर एक बार बिटकॉइन के दामों में भारी गिरावट देखी गई। मस्क की सनक भरी हरकतों से बिटकॉइन का बाज़ार में उतार-चढ़ाव अलग बात है लेकिन अपनी जगह यह भी सच है कि बाज़ार में डिजिटल करेंसी की अभी भी बहुत भूख है।

आखिर क्या वजह है कि बिटकॉइन या ऐसी अन्य करेंसियों में इतना नुकसान उठाने के बावजूद इनमें लोगों की रुचि कम नहीं हो रही है?  एक वजह तो यह समझ आती है क्योंकि इसमें मूल्यवर्धन बहुत तेजी से होता है। किसी भी काइन की बाज़ार में प्रवेश के बाद बहुत तेज़ी से कीमत बढ़ती है जो लोगों को बेहतर रिटर्न के तौर पर आकर्षित करती है। हालांकि इसके पीछे के गणित पर बहुत अधिक लोग ध्यान नहीं देते हैं। और वह यह कि अब तक डिजिटल करेंसी के फार्मेट में जितने भी कॉइन बाज़ार में उतारे गए हैं उनकी संख्या बहुत सीमित है। दूसरे, वे कुछ सीमित लोगों के बीच ही ट्रेड होते हैं। मसलन किसी भी एक कॉइन में निवेशकों की संख्या बहुत कम है। इसका परिणाम यह होता है कि बाज़ार में ये बहुत कम संख्या में कारोबार के लिए उपलब्ध होते हैं या बहुत कम समय के लिए उपलब्ध होते हैं। ऐसे में इनकी कीमत में इज़ाफा बहुत तेज़ी से होता है। इसकी वजह से लोगों को लगता है कि उनका निवेश भी बहुत तेज़ी से मुनाफे में बदल रहा है।

अब आते हैं इसमें निवेश के अन्य जोखिमों पर। पहली बात तो यह कि इस तरह की करेंसी पर किसी भी सरकार का नियंत्रण नहीं है। ये पूरी तरह निजी करेंसी है और इनका कारोबार भी निजी एक्सचेंजों में ही हो रहा है। इन एक्सचेंजों को भी नियामकों की तरफ से कोई मंज़ूरी नहीं मिली है। इसका मतलब यह हुआ कि न तो इस करेंसी को किसी सेंट्रल बैंक की स्वीकृति है और न ही किसी एक्सचेंज नियामक ने इसके कारोबार को वैध ठहराया है। ऐसे में निवेशकों के समक्ष सबसे बड़ा जोखिम उनके निवेश के असुरक्षित होने का है। इसका हाल का उदाहरण है वनकॉइन का। बुल्गारिया की जिस कंपनी ने वनकॉइन को साल 2016 में बाज़ार में उतारा, उसका अब अता-पता नहीं है। कंपनी प्रमुख रुजा इग्नातोवा सब धन समेट कर गायब हो गई हैं। बताया जा रहा है कि वो निवेशकों को नब्बे हजार करोड़ रुपये का चूना लगाकर गायब हैं।

अब आते हैं भारत की बात पर। माना जा रहा है कि भारत में क्रिप्टो करेंसी में दस हजार करोड़ रुपये का निवेश है। यह अभी अनुमान ही है, असली राशि इससे कहीं अधिक भी हो सकती है। अभी तक भारत में इस बात की उहा-पोह चल रही थी कि इस करेंसी पर क्या रुख अख्तियार किया जाए। लेकिन अब पता चला है कि भारतीय रिज़र्व बैंक ने सभी बैंकों को आगाह किया है कि वो क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज से अपनी सभी तरह के करार समाप्त कर दें। हालांकि रिज़र्व बैंक ने ही पहले बैंकों को इन एक्सचेंजों के साथ काम करने की अनुमति प्रदान की थी। लेकिन अब संकेत मिल रहे हैं कि संभवतः सरकार सभी तरह की क्रिप्टो करेंसी पर प्रतिबंध लगा सकती है। रिज़र्व बैंक की तरफ से बैंकों को दिये गये निर्देश को इसी पहल के तौर पर देखा जा रहा है।

दरअसल दुनिया में क्रिप्टो करेंसी अभी अपनी शैशव अवस्था से गुजर रही है। लगभग इसी तरह की स्थितियों से अपने शुरुआती दिनों में इक्विटी कारोबार भी गुज़रा है। धीरे धीरे उसमें पारदर्शिता आई और वह स्वीकार्य हो गया और एक दिन भारत में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज को भी मान्यता मिल गई। इसी तरह की पारदर्शिता और नियमों में बंधे निवेश की व्यवस्था क्रिप्टो करेंसी के क्षेत्र में भी लानी ज़रूरी होगी। करेंसी जारी करने वाली कंपनियों को निजी लाभ से आगे बढ़ कर हितधारकों के लाभ के बारे में सोचना होगा। तभी पारदर्शिता आएगी और निवेशकों का भरोसा भी बढ़ेगा।

*दैनिक जागरण के राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख रहे नितिन प्रधान बीते 30 वर्ष से मीडिया और कम्यूनिकेशन इंडस्ट्री में हैं। आर्थिक पत्रकारिता का लंबा अनुभव।

Image by Peggy und Marco Lachmann-Anke from Pixabay

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