सर्विस सेक्टर के भरोसे अर्थव्यवस्था?

नितिन प्रधान*

साल 2014 में देश में ‘मेक इन इंडिया’ का नारा देते वक्त सरकार की मंशा अर्थव्यवस्था में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की भूमिका को विस्तार देना था। सरकार चाहती थी कि देश के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में एक चौथाई हिस्सेदारी कल कारखानों से होने वाले उत्पादन की हो। इसके लिए साल 2025 तक मैन्यूफैक्चरिंग के जीडीपी में योगदान को 25 फीसद तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया था। इरादा भारत को पूरी दुनिया के लिए मैन्यूफैक्चरिंग का हब बनाना था। लेकिन अर्थव्यवस्था की सुस्त रफ्तार में मांग की कमी, नोटबंदी-जीएसटी के निर्णय और बाद में कोविड-19 के कहर ने मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की कमर तोड़ दी है। मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की विकास दर जिसे सालाना 12-14 फीसदी तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया था वह 2014-15 से 2019-20 के दरम्यान 6.9 फीसद पर सिमट गई। मेक इन इंडिया की शुरुआत के वक्त जिस मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का योगदान साल 2014-15 में जीडीपी में 16.3 फीसदी था वह साल 2019-20 में घटकर 15.1 फीसदी ही रह गया।

लेकिन साल 2021 अर्थव्यवस्था के लिहाज से एक मायने में विशेष तौर पर याद रखा जाएगा। कोविड-19 के मुश्किल भरे डेढ़ वर्ष में सेवा क्षेत्र (सर्विस सेक्टर) ने अर्थव्यवस्था को संबल देने का काम किया है। सेवा क्षेत्र इसलिए भी चर्चा में आया है क्योंकि बीते कुछ समय में इसने चहुंमुखी विस्तार किया है। एक वक्त में जिस सेवा क्षेत्र को आइटी, टेलीकॉम, हॉस्पिटैलिटी और वित्तीय सेवाओं के लिए जाना जाता था आज न केवल इन क्षेत्रों में ग्राहकों के लिए नए प्रकार के अवसर उपलब्ध हुए हैं बल्कि सर्विस सेक्टर ने खान-पान, शॉपिंग जैसे क्षेत्रों में भी अपने पांव जमा लिये हैं। इसी का नतीजा है कि आज भारत में इन क्षेत्रों में शुरू हुए स्टार्ट अप अब यूनिकॉर्न बनने लगे हैं। कोविड महामारी ने इस क्षेत्र को नए मौके भी उपलब्ध कराये और कंपनियों ने भी इसका पूरा लाभ लिया।

सर्विस सेक्टर की इस ग्रोथ में देश में हुई डिजिटल ग्रोथ ने भी अहम भूमिका निभाई है। नोटबंदी के बाद डिजिटल पेमेंट ने अभूतपूर्व रफ्तार दिखाई है। 31 अक्टूबर 2021 तक देश में डिजिटल ट्रांजैक्शन की संख्या 18488 करोड़ को पार कर चुकी थी। डिजिटल पेमेंट के इस विस्तार ने न सिर्फ देश में बैंकिंग सेवाओं को आसान बनाया है बल्कि ई-कामर्स, जोमैटो-स्विगी समेत लिशियस जैसे एप आधारित खान-पान स्टार्ट अप्स को भी फलने फूलने का मौका दिया है। जोमैटो, नायका और पेटीएम की शेयर बाजार में लिस्टिंग के बाद शेयरधारकों को हुआ फायदा इसका स्पष्ट उदाहरण है। ऐप आधारित सेवाओं ने बाजार के स्वरूप को भी बदला है। एक वक्त था जब मांसाहारियों को अपनी पसंद का सामान लेने बाजार का ही रास्ता देखना होता था। लेकिन अब स्थिति बदल गई है। इस वर्ग में एप्स ने कम से कम महानगरों में मीट-मछली-मूर्गा अंडा बाजार का कंसेप्ट ही बदल दिया है। करीब एक दर्जन एप आज के वक्त में कच्चा और रेडी टू ईट मांसाहारी व्यंजन उपलब्ध करा रहे हैं। ऐसा ही एक एप आधारित स्टार्टअप लिशियस आज यूनिकॉर्न में तब्दील हो चुका है। महिलाओं के फैशन उत्पादों खासकर कॉस्मेटिक्स के एप आधारित बिजनेस को दस साल से कम समय में जमाकर आइपीओ बाजार में तहलका मचा देने वाली फाल्गुनी नायर खुद में एक मिसाल बन गई हैं।

सेवा क्षेत्र की रफ्तार का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि अक्टूबर 2021 में इसकी विकास दर अब तक की सर्वाधिक रही है। जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी 54 फीसदी तक पहुंच चुकी है। हालांकि अभी भी यह साल 2015-16 के जीडीपी में 66 फीसदी के योगदान से पीछे है। लेकिन यह स्थिति तब है जब देश में कोविड महामारी की वजह से हॉस्पिटैलिटी सेक्टर बुरी तरह प्रभावित रहा। बीते डेढ़ वर्ष में देश में पर्यटन गतिविधियां लगभग ठप रही हैं और इसका असर परिवहन सेवाओं पर भी देखने को मिला है। इस दौरान सर्वाधिक सक्रिय रहे हेल्थकेयर सेक्टर से भी भविष्य में काफी उम्मीद लगायी जा रही है। इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन का अनुमान है, “साल 2025 तक हेल्थकेयर सेक्टर 372 अरब डॉलर का हो जाएगा जबकि डिजीटल पेमेंट का आंकड़ा तब तक एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर को पार कर जाने की उम्मीद है।“ अंतरराष्ट्रीय ऑडिट एजेंसी डेलॉयट के मुताबिक “हर प्रकार के उद्योगों में डिजिटल उपयोग बढ़ने और देश में इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या में इजाफा होने से भविष्य में विभिन्न प्रकार की सेवाओं की मांग बढ़ेगी।“

दूसरी तरफ मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में अभी चुनौतियां अधिक हैं। सरकार औद्योगिक इकाइयां स्थापित करने और देश को मैन्यूफैक्चरिंग का हब बनाने के निरंतर प्रयास कर रही है। प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम का विस्तार कर इसे कई सेक्टरों में लागू किया गया है। इलेक्ट्रॉनिक मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में पीएलआइ स्कीम ने नतीजे दिखाये हैं। उत्तर प्रदेश के नोएडा में सैमसंग की विशाल इकाई की स्थापना हुई। इसके अलावा मोबाइल मैन्यूफैक्चरिंग में भी कई कंपनियों ने अपनी उत्पादन इकाइयां स्थापित की हैं। लेकिन अभी अन्य क्षेत्रों में इस स्कीम के फायदे दिखना बाकी है। खासतौर पर टेक्सटाइल क्षेत्र में क्योंकि यह ऐसा सेक्टर है जिसका संबंध सीधे निर्यात बाजार से है। अगर टेक्सटाइल सेक्टर में मैन्यूफैक्चरिंग को मजबूती मिलती है तो यह अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारत की स्थिति को मजबूत करने में सहायक साबित होगा।

इसका अर्थ यह है कि फिलहाल अर्थव्यवस्था पूरी तरह सेवा और कृषि क्षेत्र के प्रदर्शन के भरोसे है। कृषि क्षेत्र ने साल 2020-21 में देश की अर्थव्यवस्था में 20.2 फीसदी का योगदान किया था। अगर इसकी रफ्तार यही बनी रही और आने वाले वर्षों में सेवा क्षेत्र का योगदान कोविड पूर्व की स्थिति में आ जाता है तो अर्थव्यवस्था की विकास की गति पटरी पर आने लगेगी। हालांकि अर्थव्यवस्था के जानकार अभी स्थितियों को उतना सहज नहीं मान रहे हैं। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डॉ. डी के जोशी कहते हैं, “पिछले कुछ महीनों से लॉकडाउन की सख्ती कम होने से सर्विस सेक्टर को लाभ हुआ है। इससे लोगों के संपर्क वाले क्षेत्रों मसलन होटेल, सिनेमा जैसी सेवाओं में काम शुरू हुआ है। अक्टूबर में सर्विस सेक्टर की पीएमआइ 58.4 फीसद की ऊंचाई तक गई है। लेकिन इस क्षेत्र की वास्तविक तस्वीर तभी सामने आएगी जब यह कोविड पूर्व स्थिति में पहुंचेगा। सर्विस सेक्टर की ग्रोथ इस बात पर भी निर्भर करेगी कि कोविड महामारी की तीसरी लहर कैसा रूप दिखाती है।“ भले ही जानकार अभी इस बात पर सहमत नहीं हो रहे हैं कि देश की अर्थव्यवस्था का दारोमदार पूरी तरह सर्विस सेक्टर ने उठा लिया है।

*दैनिक जागरण के राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख रहे नितिन प्रधान बीते 30 वर्ष से मीडिया और कम्यूनिकेशन इंडस्ट्री में हैं। आर्थिक पत्रकारिता का लंबा अनुभव।

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