ज्योति शर्मा*
काली मैना
(ससुराल से वापस आने के बाद एक बेटी की
अपनी माँ से बातचीत )
संस्कारों की पोटली इतनी भारी
कि उसको ढोते-ढोते मैंने लहूलुहान
कर ली अपनी पीठ
ज़ख्मों पर मरहम
लगाने वाले कोई हाथ ना थे कभी
और मेरे अपने हाथ माँ
ज़ख्मों तक नहीं पहुँच सके
उन ज़ख्मों की अकेली गवाह
खिड़की पर बैठी काली मैना है
सोचती हूँ
क्यों नहीं आई वो उड़कर तुम तक
तुम्हें ये बतलाने कि
संस्कारों के बोझ तले दबी तुम्हारी बेटी
रोने को भी तरस रही है?
किन्नर
अर्धनिर्मित स्त्री या अर्धनिर्मित पुरूष
इसे समझने में निकला आधा जीवन
फिर अंधेरे सीलन भरे मकान में
जब मिला अंत में आसरा
तो अपनी ही देह को जैसे
खुद से अलग हो कर देखा
रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और सड़क-पार झाडिय़ों में!
कितनी यातना कितनी घृणा सहती ये देह
संघर्ष की अंतिम सीमा पर पहुंची
जहां फिर से आरम्भ हुई इस देह की परीक्षा
मेरे शव पर साथियों ने किए पनाह से असंख्य वार
कि अगले जन्म में न मिले जीवन किन्नर का।
मत्स्यगंधा
एसिड अटैक के बाद मत्स्यगंधा
हो जाती है लड़कियां
त्वचा से आती है
सड़ी मछली की गंध
मत्स्यगंधा की तरह
आईने से डरती है रात भर
आंसुओं के नमक को रोकने के लिए
अब नहीं रही पलकें
जो छाया सी करती थीं पेड़ की तरह
तपते गालों पर।
*ज्योति शर्मा स्त्री-मन की अतल गहराइयों को छूने वाली कवितायें लिख रही हैं। वृन्दावन के एक (उन्हीं के शब्दों में) ‘रूढ़िवादी महंत परिवार’ में जन्मी ज्योति ने बचपन से ही वृन्दावन में रहने वाली विधवाओं की खूब संगत की – उनसे उनके दुख-दर्द भी सुने तो उनकी मधुर स्मृतियों पर उनके साथ मुस्कराई भी। उनका संवेदनशील किशोर-मन कवि भी बन गया और कहानीकार भी। ज्योतिआकाशवाणी से समय-समय पर काव्य और कथा पाठ करती हैं। उनका कविता संग्रह नेपथ्य की नायिका बोधि प्रकाशन से शीघ्र आ रहा है।
अद्भुत रचनाएं