सुधीरेन्द्र शर्मा* रिश्तेदारी का उद्गम कैसे और कब हुआ इस पर विचार करने से अच्छा तो यह है कि हम यह जांचें कि 'यह कहाँ आ गए यूँ ही साथ-साथ चल के'।  जहाँ तक...
डॉ मधु कपूर* काल का व्यक्तित्व बहु आयामी है। हमारी हर क्रिया में काल कहीं  न कहीं  नेपथ्य में  छिपा रहता है। कोई कहता है यह नित्य अपरिवर्तनीय, निरपेक्ष...
विभिन्न दार्शनिक सिद्धांतों से परिचित होने के लिए पिछले कुछ सप्ताह में डॉ मधु कपूर के चार लेख आप पहले पढ़ चुके हैं। आज के अपने लेख में...
सुधीरेन्द्र शर्मा* दोहराना तो हमारे जीवन का जैसे मूल मंत्र है। सुबह से शाम तक सब कुछ दोहराया जाता है, बिना यह जाने कि ऐसा क्यों है और क्यों हम दोहराने से थकते नहीं।...
सुधीरेन्द्र शर्मा* 'सच' सब सुनना चाहते हैं, लेकिन सच बोलना कोई-कोई! शायद इसलिए सच बोलने से सब कतराते हैं कि कहीं सच को हथियार बनाकर सच-बोलने वाले पर ही उसका...
डॉ मधु कपूर* विभिन्न दार्शनिक सिद्धांतों से परिचित होने के लिए पिछले कुछ सप्ताह में डॉ मधु कपूर के तीन लेख आप पहले पढ़ चुके हैं। पहला था “मैं कहता आँखिन देखी” और...
डॉ मधु कपूर* पिछले दो सप्ताह में डॉ मधु कपूर के दो लेख आप पहले पढ़ चुके हैं। पहला था “मैं कहता आँखिन देखी” और दूसरा “कालः पचतीति वार्ता”  -...
  नन्दिता मिश्र* आज हम जिस दुनिया में जी रहे हैं उसमें संचार और सम्पर्क के साधनों की कोई कमी नहीं है। जितना व्यक्तिगत सम्पर्क इस समय हो रहा है, इतना पहले कभी नहीं...
डॉ मधु कपूर* करीब सप्ताह भर पहले हमने दर्शनशास्त्र की अध्येता एवं प्रोफेसर डॉ मधु कपूर का यह लेख (मैं कहता आँखिन देखी) प्रकाशित किया था जिसमें उन्होंने हमारे देखने और...
डॉ मधु कपूर* हमें दर्शनशास्त्र की अध्येता एवं प्रोफेसर डॉ मधु कपूर का यह लेख प्राप्त हुआ है जिसमें उन्होंने एक दार्शनिक सिद्धांत को बहुत रुचिकर ढंग से समझाया है। यह लेख...

RECENT POSTS