ओंकार केडिया*
एक उदास सी चिड़िया
वक़्त-बेवक्त
कभी भी आ जाती है
मुझसे मिलने,
मेरा हाल जानने!
मेरी खिड़की पर बैठकर
मुझे गीत सुनाती है
और नाचकर दिखाती है!
उड़ने से पहले वो
धीमे से कहती है,
“अन्दर क्यों बैठे हो?
थोड़ा बाहर निकलो न,
तुम्हें पिंजरे में देखकर मुझे अच्छा नहीं लगता!”
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (24-04-2020) को “मिलने आना तुम बाबा” (चर्चा अंक-3681) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
वाह!!!
बहुत सुन्दर…
वाह ! बहुत ही सुंदर सृजन
गहन भाव
वाह!बहुत सुंदर सृजन !
वाह सुन्दर