सरकार के सामने यक्ष प्रश्न : महंगाई पर नियंत्रण करें या फिर अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ाएँ?

नितिन प्रधान*

देश में महंगाई अपने रिकॉर्ड पर है। महीने दर महीने महंगाई के सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि महंगाई लगातार ऊपर की तरफ बढ़ रही है। अर्थव्यवस्था के अन्य संकेतक इस बात की गवाही दे रहे हैं कि आर्थिक विकास को अब रफ्तार मिलने लगी है। लेकिन दूसरी तरफ महंगाई ने न केवल आम जनता की कमर तोड़ रखी है, बल्कि यही स्थिति बनी रही तो आगे चलते हुए उद्योगों के लिए भी परेशानी खड़ी हो सकती है। नवंबर 2020 में एक तरफ खुदरा और थोक मूल्यों पर आधारित महंगाई की दरों ने और सिर उठा लिया है। थोक मूल्य महंगाई की दर तो बीते 12 वर्ष के उच्चतम स्तर 14.2 प्रतिशत पर जा पहुंची है। यह इस वित्त वर्ष का लगातार आठवां महीना है जब थोक मूल्यों पर आधारित महंगाई की दर दहाई में बनी हुई है। इसी तरह खुदरा महंगाई की दर भी इस महीने पिछले तीन महीने के अधिकतम 4.91 प्रतिशत पर है। महंगाई की दर में लगातार वृद्धि आर्थिक विकास की दर के लिए तो दिक्कत पैदा कर ही रही है बल्कि आम आदमी की जेब पर भी मार कर रही है। अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि अगले तीन चार महीने आम जनता को बाज़ार में कीमतों से राहत मिलने की उम्मीद फिलहाल नहीं है।

कोरोना की दुश्वारियों से निकलकर अर्थव्यवस्था ने विकास की राह तो पकड़ी है। लेकिन आम जनता की परेशानी अभी दूर नहीं होती दिखती। एक तरफ चालू वित्त वर्ष में लगातार बढ़ती महंगाई उसकी जेब में छेद कर रही है तो प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय औसत आय में कमी बताती है कि लोगों के लिए आमदनी भी बड़ी दिक्कत रूप में सामने आ रही है। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के उद्देश्य से रिज़र्व बैंक के लिए महंगाई अभी तक बहुत अधिक चिंता नहीं रही है। बीती कई मौद्रिक नीतियों में रिज़र्व बैंक ने ब्याज की निचली दरों को बनाये रखा है। इसकी वजह यह भी है कि खुदरा महंगाई की दर ऊंची होने के बावजूद आरबीआइ के तय लक्ष्य से नीचे बनी हुई है। इसलिए महंगाई को काबू करने की दिशा में रिज़र्व बैंक ने अभी तक ब्याज की दरों में किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की है।

महंगाई की दर बढ़ने की प्रमुख वजह फिलहाल कच्चे तेल की ऊंची कीमतें बनी हुई हैं। केंद्र सरकार की तरफ से पेट्रोलियम उत्पादों पर एक्साइज़ ड्यूटी और राज्यों की तरफ से वैट में हुई कटौती के बाद तेल की कीमतों में आई कमी का भी नवंबर में खुदरा महंगाई की दर पर बहुत अधिक असर नहीं दिखा है। पिछले कई महीनों से डीज़ल की ऊंची कीमतों की वजह से माल ढुलाई में हुई वृद्धि अभी भी बनी हुई है। इसलिए बाज़ार में उत्पादों और सेवाओं की दरों में किसी तरह की कमी नहीं दिखी है। खाद्य उत्पादों का सुचकांक भी अभी उच्च स्तर पर बना हुआ है। महंगाई को आंकने वाले सूचकांक में यही वर्ग आम उपभोक्ताओं को सबसे अधिक परेशान करता है। अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि इस स्थिति में अभी आने वाले तीन चार महीने किसी तरह की राहत मिलने की गुंजाइश कम दिख रही है। यानी ऊंची कीमतों से लोगों को अभी जूझना होगा।

महंगाई को रोकने के लिए सरकार फिलहाल प्रयास करती नहीं दिख रही। उसकी प्रमुख वजह अर्थव्यवस्था को रफ्तार देना है। आर्थिक गतिविधियों की रफ्तार को बनाये रखने के लिए आवश्यक है कि सिस्टम में वित्त का प्रवाह बना रहे। उद्योगों की गति बढ़ाने के लिए सरकार बैंकिंग और वित्तीय संस्थाओं के पास फंड की उपलब्धता को बनाये रखना चाहती है। इसके नतीजे भी देखने को मिले हैं। अक्टूबर में कारखानों में उत्पादन की गति बढ़ी है और औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में वृद्धि हुई है। लेकिन अगर आम आदमी के नज़रिये से देखा जाए तो यह समय उसके लिए सबसे अधिक खराब रहा है। पेट्रोल डीज़ल से लेकर खाने-पीने के सामान की मंहगाई ने जनता के पास उपलब्ध बचत के सभी उपायों को निष्क्रिय कर दिया है। कोरोना की वजह से देश में बढ़ी बेरोज़गारी ने आमदनी के साधनों को भी सीमित कर दिया है। हालांकि सरकार की तरफ से मिल रहे मुफ्त राशन ने काफी हद तक राहत प्रदान की है। उसी तरह किसानों को मिल रही नकद राशि भी ग्रामीण क्षेत्र में एक बड़े वर्ग को राहत दे रही है। लेकिन शहरी मध्य वर्ग को महंगाई से निपटने के लिए इस प्रकार के किसी उपाय का सहारा नहीं है। उसके लिए भी आय के स्रोत सीमित हुए हैं और आमदनी घटी है। लेकिन बढ़ी हुई महंगाई ने उसकी जेब ढीली कर रखी है। महंगाई का सबसे अधिक असर समाज के इसी वर्ग पर है।

सरकार लोगों को राहत देने के लिए किस तरह के कदम उठाती है, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा। लेकिन हाल ही बैंक ऑफ इंग्लैंड ने ब्याज दरों में वृद्धि का कदम उठा, कोरोना महामारी की शुरुआत के बाद दरों में इज़ाफा करने वाला पहला केंद्रीय बैंक बन गया है। माना जा रहा है कि अब दुनिया के बाकी देशों के केंद्रीय बैंक भी बैंक ऑफ इंग्लैंड के नक्शे कदम पर चलेंगे। हालांकि भारतीय रिज़र्व बैंक स्थानीय परिस्थितियों के आकलन के बाद ही कोई कदम उठाएगा। यह अब सरकार को तय करना है कि वह अभी भी आर्थिक विकास को ही प्राथमिकता देती है या आम लोगों की तकलीफों को देखते हुए महंगाई पर नियंत्रण के कुछ उपाय करेगी। अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि अगली त्रैमासिक मौद्रिक नीति में भी रिज़र्व बैंक ब्याज दरों को यथावत बनाये रखते हुए देश की अर्थव्यवस्था में सुधार के अपने कार्यक्रम को वरीयता दे सकता है। लेकिन अंतिम फैसला सरकार का होगा कि वो किस दिशा में आगे बढ़ना चाहती है।

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*दैनिक जागरण के राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख रहे नितिन प्रधान बीते 30 वर्ष से मीडिया और कम्यूनिकेशन इंडस्ट्री में हैं। आर्थिक पत्रकारिता का लंबा अनुभव।

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1 COMMENT

  1. ये आदिम यक्ष प्रश्न है। हमेशा अर्थव्यवस्था का ही चुनाव करना होता है, क्योंकि लोक कल्याणकारी राज्य को दान अनुदान के लिए जो राशि चाहिए वो महँगाई कम करने से नहीं आएगी, अर्थ बढ़ाने से आएगी ??

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