वसंत और अन्य कवितायेँ 

पुष्पिता अवस्थी*

1. वसंत

धरती से उपजता है वसंत

अंगड़ाई लेता हुआ हवाओं में 

बदल देता है पृथ्वी को

अपनी ही प्रकृति में 

पकने लगती है जिसमें 

सौंदर्य की सुगंध 

जैसे खेत में पकती है फसल 

बालियों के भीतर अनाज के दाने 

जैसे 

शब्दों के भीतर पकते हैं अर्थ 

जिनसे बनती है शब्दों की पहचान 

और फिर

उपजते हैं जिनसे हमारे निशान! 

धरती से उपजता है वसंत
पक्षियों की टेर में 

गमकने लगती है उनकी अपनी ही 

प्रणयी जिजीविषा 

जिसमें बजती है वासंती झंकार 

और फिर

कवि  भी गुनने लगता है 

संजीवनी टेर 

अपने जीवन के लिए 

और सबके जीवन के लिए! 

प्रणय

प्रणय साधना है 

साधना है ये

आत्माओं के अभिन्न और एकात्म होने के निमित्त!

प्रणय है 

बस एक अमूर्त आत्मसिद्धि 

पर्याप्त है जिसके लिए 

निश्छल चित्त और 

विदेह 

अशेष सपनों के लिए! 

प्रेम की देह में 

और

देह के प्रेम में 

सिद्ध करने हेतु प्रणय मन्त्र 

पर्याप्त है निज चेतना में चेतन का विलय 

निश्छल होने के लिए 

विदेह होने के लिए!

संभव है क्या कभी 

अंतर्रात्मा की प्रणयानुभूति 

बिना विदेह हुए?

प्रणय ही शक्ति है 

संबंधों की 

संवाद की 

चेतना की 

आत्मा की 

विदेह में विलय की!

चित्त की आकाशगंगा

मैं 

पृथ्वी हूँ 

तुम्हारे प्रेम की 

और

तुम 

मेरे प्रेम के अनंत अंतरिक्ष! 

मेरी आत्मा की गहराई में 

उतरते हो तुम जड़ों की तरह 

और 

मैं तुम्हारी चेतना में पसरती हूँ

लताओं की तरह!

जड़ों की तरह

धंसकर मुझ में तुम

अर्जित करते हो 

मेरी आत्मा का ईश्वरीय विलक्षण प्रेम 

और उधर 

मैं छेंक लेती हूँ 

तुम्हारा सर्वस्व अंतरिक्ष 

अपने चित्त की आकाशगंगा की 

अक्षय चकाचौंध से! 

*प्रो0 डा0 पुष्पिता अवस्थी (https://www.linkedin.com/in/pushpitaawasthi/)

राष्ट्रीय अध्यक्षा – आचार्यकुल, वर्धा

अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्षा – हिन्दी यूनिवर्स फाउन्डेशन, नीदरलैंड

अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्षा – नाॅन वायलेंस एण्ड पीस एकेडमी, वर्धा, नीदरलैंड्स

अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्षा – गार्जियन ऑफ अर्थ एण्ड ग्लोबल कल्चर नीदरलैंड्स, वर्धा

ग्लोबल अम्बेसडर –    MIT World Peace University and World Peace Dome

Banner Image by Brigitte is happy … about coffee time :)) from Pixabay

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