मधुकर पवार*
थियेटर में नाटक का मंचन हो रहा है। ज़मींदार को उनका कारिंदा किसी मुद्दे पर सलाह देने को आतुर हो रहा है लेकिन अदब के कारण कहने से सकुचा भी रहा है यह सोचकर कि कहीं मालिक को बुरा न लग जाये। यदि बुरा नहीं लगा तो ठीक है वरना सज़ा का डर तो रहता ही है। आखिर जब उससे नहीं रहा गया तो यह कहकर “… हुज़ूर, बुरा न मानें तो एक बात कहूं, छोटा मुंह बड़ी बात होगी। अगर मेरी बात में दम लगे तो इनाम दीजिये नहीं तो आपका जूता और मेरा सिर! मैंने तो आपका नमक खाया है इसलिये नेक सलाह देना मेरा फर्ज बनता है” यह बात केवल रंगमंच तक ही सीमित नहीं है बल्कि इस तरह के वाकये तो आए दिन होते ही रहते हैं।
छोटा मुंह बड़ी बात तो वही लोग कहते हैं जो पद, प्रतिष्ठा, जाति आदि में उससे अधिक रुतबा रखने वाले के सामने याचक की मुद्रा में खड़ा रहता है। जब कभी उसे लगता है कि मेरी भी कुछ हैसियत है तब वह सलाह देने की हिमाकत कर जाता है। लेकिन समय, काल और परिस्थिति के कारण छोटा मुंह बड़ी बात के मायने बदल गये हैं। अब तो छोटे मुंह वाले भी न सिर्फ बड़ी बात करने के पहले इजाज़त नहीं मांगते हैं बल्कि सीना ठोक कर कहते हैं। और अब एक नई परिस्थिति सामने आई है कि अब बड़े-बड़े मुंह वालों से भी छोटी बातें सुनाई देनी लगी है। अब आप उन्हें छोटी कहें या ओछी, यह आपके विवेक पर निर्भर करता है। यदि विश्वास न हो तो कुछ वर्षों में हुए चुनाव के दौरान बड़े – बड़े लोगों द्वारा दिये गये भाषणों को ही याद कर लीजिये। किसी सिनेमा की भांति आपके जेहन में पूरी फिल्म आंखों के सामने से गुजर जायेगी। कभी ये बातें किसी व्यक्ति विशेष को लक्ष्य करके कही जाती हैं तो उससे भी बढ़कर अब तो ऐसी बातें पूरे-पूरे समुदाय के खिलाफ भी कहीं जाती हैं। कहने वालों में राजनीति के उच्च शिखरों पर विराजमान नेता होते हैं और उनके इन सत्वचनों के निशाने पर किसी भी धर्म या जाति के लोग हो सकते हैं। यहाँ यह कहना होगा कि इन ओछे अपवचनों के कहने वाले किसी एक दल या जाति या धर्म के नहीं हैं बल्कि ऐसे लोग हर राजनीतिक दल और हर सरकार में होते हैं। आश्चर्य होता है कि कैसे ये तथाकथित बड़े लोग भी कितनी शान से छोटी – छोटी बातें कहकर सीना तान कर चलते हैं। कुछ ऐसे भी होते हैं जो कहने का साहस नहीं जुटा पाते लेकिन फिर कुछ नया कुछ ऐसा कहने की कोशिश करते हैं कि किसी तरह मीडिया में खबर बन ही जाए। कहने की आवश्यकता नहीं कि जो जितनी ओछी बात करता है, वह उसी अनुपात में खबरी टेलीविजन में सुर्खियां बटोर लेता है।
अब तो पूरा देश ही एक थियेटर बन गया है और बड़े – बड़े लोगों के मुंह से छोटी- छोटी बांते चारों ओर सुनाई देने लगी है। जैसे – जैसे बड़ा चुनाव नजदीक आयेगा…. बड़े – बड़े मुंह से अनेक छोटी – छोटी बांते निकलेंगी जिन पर खूब हंगामा तो होगा ही, जनता का भरपूर मनोरंजन भी होना तय है। और टी.वी. पर गरमागरम डिबेट भी होगी जिनमें सिर फुटौव्वल तक की नौबत आने का खतरा बना रहेगा।
समय से साथ चार शब्दों (छोटा मुंह बड़ी बात) को आगे पीछे कर उनमें प्रयुक्त मात्राओं का समायोजन भर करने से इस वाक्य का मजमून ही बदल गया और इसका प्रभाव व भाव भी। छोटा मुंह बड़ी बात कहने वाले का सिर तो सदैव झुका ही रहता है लेकिन बड़ा मुंह छोटी बात कहने वाला तो चोरी और सीनाजोरी भी करता है। छोटी बात तो छोटी ही होती है और इसे कहने भर से कोई छोटा तो नहीं हो जाता लेकिन जब बड़े व्यक्ति अपने मुखारबिंद से छोटी बात कहता है तो जन मानस इसे बहुत ही गम्भीरता से लेता है।
गनीमत तो यह है कि बड़े – बड़े लोगों के मुखारविंद से छोटी – छोटी और उससे भी छोटी बातें सार्वजनिक रूप से नहीं कही जा रही है जिसमें मां, बाप, भाई, बहिन और सभी रिश्तेदारों को शामिल किया जाता है। लेकिन जिस तरह से छोटी – छोटी बातों का स्तर रसातल में जा रहा है, वह दिन दूर नहीं जब बड़े – बड़े मुंह द्वारा बंद कमरे में कही जाने वाली बातें भी सार्वजनिक रूप से कही जाने लगेंगी। अभी तो इस तरह की घटनाएं यदा-कदा हो ही जाती हैं जिसे सम्मानजनक भाषा में ज़बान फिसल जाना कहते हैं। आखिर ज़बान क्यों न फिसले… इसकी भी एक बड़ी वजह है। ज़बान में हड्डी तो होती नहीं इसलिये आसानी से फिसल जाती है।
सारी समस्या की जड़ तो यह दो इंच की ज़बान ही हैं जो किसी को अर्श से फर्श पर तो किसी को फर्श से अर्श पर बिठा देती है। ज़बान से निकले ये शब्द किसी को सत्ता से दूर कर देते हैं तो किसी को सत्ता दिला देते हैं। कहते हैं कि फलदार वृक्ष की टहनी झुक जाती है। लेकिन जब कोई प्रकृति का नियम तोड़ता है तो देर-सवेर ही सही, उसे फल भी वैसा ही मिलता है।
कबीरदास जी ने सही ही कहा है जो हर काल में मौजूं है… ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोय… औरन को शीतल करे आपहुं शीतल होय। यदि इस दोहे के अनुसार बड़े–बड़े लोग भी विनम्र भाषा का प्रयोग करने लग जायें तो पंचायत, जिला पंचायत, विधानसभा और संसद सहित पूरे देश का कामकाज बिना किसी विवाद और बाधा के सुचारू रूप से चलता रहेगा। एक स्वस्थ लोकतंत्र की यह आवश्यक शर्त है कि जहां हमें अपनी बात कहने की स्वतंत्रता है, वहीं हमें दूसरे की बात को सुनने का धैर्य भी होना चाहिए। देश को फिर से विश्व-गुरू और सोने की चिड़िया बनाने के लिए यह आवश्यक है कि हम एक दूसरे के खिलाफ ओछी बातें करना बंद करके सब एक साथ देश-निर्माण के काम में लग जाएँ।
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*मधुकर पवार वर्तमान में भोपाल में निवासरत हैं. मार्च 2021 में केंद्रीय संचार ब्यूरो. सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार, इंदौर से सेवानिवृत्त होने के बाद इन दिनों स्वतंत्र लेखन के साथ राष्ट्रीय कृषि अखबार “कृषक जगत” में नियमित रूप से कृषि, जल संरक्षण, ग्रामीण विकास आदि विषयों पर लेखन कर रहे हैं. सम्पर्क 9425071942 और 8770218785.
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