कहाँ चली गई घर की बनी राखी?

नन्दिता मिश्र*

ऊपर का यह चित्र हमारे घर पर हाथ से बनी राखी का चित्र है। जब मैं छोटी थी तब अम्मा सुंदर-सुंदर राखियाँ बना कर मेरे नाम से भाइयों को भेजतीं थीं। आगे चलकर ये जिम्मेदारी मैंने सम्भाल ली। बहुत सालों तक मैंने अपने पिताजी और मां के हाथ के काते हुए सूत की राखी अपने भाइयों को भेजी है। अब हाथ का कता  सूत नहीं मिलता। खादी के सूत की राखी गांधी विचारधारा वाली संस्थाओं में प्रचलित थी। अब है कि नहीं पता नहीं।

हाथ के कते सूत के अभाव में अब मैं भी घर पर राखी नहीं बना पाती। मेरे जीवन में हाथ की बनी राखी का महत्व सदा रहा है। ऊपर जो चित्र आप देख रहे हैं, इसका सफेद हिस्सा कते हुए सूत का है। राखी के बीच में रोली, हल्दी और चावल लगे हैं। भाई की कलाई में बांधने की डोरी कभी सफेद सूत की होती थी और कभी मौली की। मौली एक पवित्र कच्चा सूत है जो हम आज भी पूजा पाठ के बाद कलाई में प्रतीक रूप में बंधवाते हैं।

सूत के इन्हीं धागों के कारण शायद राखी को धागों का त्योहार कहा जाता था। पहले हमारे घर क्या, आस-पड़ोस में सब जगह पाट की राखी और कच्चे रेशम की राखी हमारे घरों में बांधी जाती थी। फिर धीरे धीरे बाजार में कई तरह की राखी आने लगी। खूब सलमा सितारों वाली, प्लास्टिक के फूलों वाली । बच्चों को लुभाने मिकी माउस, चाचा चौधरी, घड़ी राखी, और न जाने कितने तरह की‌ राखी। इस साल हो सकता है इस बार की राखी में चन्दयान-3 को भी राखी में स्थान मिला गया हो।

बाज़ारवाद में घर पर बनी राखी की सादगी और उससे जुड़ी पवित्रता जैसे गायब होती गयी। राखी के रूप के साथ-साथ उसकी साइज़ भी बढ़ती चली गयी। चांदी सोने की राखी पुराने समय में भगवान को चढ़ाई जाती थी।  राजा महाराजा अपने पुरोहितों से राखी बंधवाते थे। सुना है कि इस ज़माने में भी अमीर भाई-बहनों के बीच हीरे की राखी और उसी स्तर के उपहारों का आदान-प्रदान होता है।

अब राखी भेजने के कई तरीके आ गये हैं। पहले तो बहन भाई के घर खुद जाने की कोशिश करती थी या साधारण डाक से भेजती थी। कभी ऐसा नहीं होता था कि राखी समय से न पहुंचे। अब स्पीड पोस्ट और कूरियर से भेजने पर भी समय से नहीं मिलती। और तो और आन लाइन भी बहुत लोकप्रिय है। इसमें आपकी जैसी हैसियत हो, राखी के साथ रोली, चावल और हल्दी टीका करने के लिये। मिठाई और उपहार – जैसा खर्च करेंगे वैसी शानदार राखी भाई के पास पहुंचाने की गारंटी रहती है। बहन भी खुश और भैया भी।

तरह-तरह की और मंहगी राखियां बहनों के बीच प्रतिस्पर्धा ले आईं हैं। अब बहनें भाई के घर राखी बांधने जातीं हैं तो मन में यही रहता है मेरी राखी दूसरी बहनों की राखी से कम न होने पाये। तरह-तरह की मिठाई और उपहार राखी के नये मापदंड हो गये हैं । आधुनिकता अपनाना अच्छी बात है पर उसके कारण दूसरे लोगों को अपना दर्जा कम लगने लगे तो वो अनुचित है।

भाई भी बहनों के लिये मंहगे मंहगे उपहार लाते हैं। जो भाई ऐसा नहीं कर पाते वे खुद को कमतर समझते हैं। हमने राखी जैसे महत्वपूर्ण भाई बहनों के त्योहार का स्वरूप बदल दिया है। सादे और स्नेह से भरे पूरे पर्व का मतलब बदल दिया है।    

पहले के त्योहार आत्मीयता से भरे हुए होते थे। त्योहारों पर पूरा परिवार एक जगह  इकट्ठा होता था। घर की महिलाएं उस अवसर के लिये तरह-तरह की मिठाई और नमकीन बनाती थीं। रक्षा बंधन पर भी ऐसा होता था। घर पर बनी मिठाइयों का स्वाद अनोखा होता था। राखी पर भोजन में खीर जरूर बनती थी। गुलाब जामुन और बेसन की बरफी या लड्डू तो बनते ही थे। अब इनकी जगह मेवों से बनी मिठाई, आइसक्रीम और पेस्ट्री चाकलेट आदि ने ले ली है। कई बरस से आप त्यौहारों से पहले एक प्रसिद्ध चॉकलेट कंपनी के विज्ञापन अवश्य देख रहे होंगे जिनमें घरेलू मिठाइयों के स्थान पर चॉकलेट अपनाने का मशवरा दिया जाता है।

शायद समय का तकाज़ा है जिसने विशेष अवसरों चाहे वो रक्षा बंधन हो , दीपावली हो, जन्मदिन हो या शादी ब्याह सब का स्वरूप भव्य कर दिया है। खूब हो-हल्ला और धूमधाम होना चाहिए – लो बस मन गया ना त्योहार। हमने भाई बहन के इस त्योहार को आपसी स्पर्धा का त्योहार बना दिया है। आइये कुछ ऐसा करें कि इस त्योहार की सादगी और सरलता बनाये रखने की कोशिश करें। अपने सामर्थ्य से रक्षाबंधन मनायें‌। भाइयों को प्रेम से श्रद्धा से राखी बांधें और रक्षा बंधन को सार्थक करें।

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वर्षों आकाशवाणी के समाचार सेवा प्रभाग और केंद्र सरकार के अन्य संचार माध्यमों में कार्य-रत रहने के बाद नन्दिता मिश्र अब स्वतंत्र लेखन करती हैं।

डिस्क्लेमर : इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं और इस वैबसाइट का उनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है। यह वैबसाइट लेख में व्यक्त विचारों/सूचनाओं की सच्चाई, तथ्यपरकता और व्यवहारिकता के लिए उत्तरदायी नहीं है।  

2 COMMENTS

  1. बहुत अच्छा लेख।
    लिखती रहिए।
    रक्षाबंधन के त्योहार की बधाई।

  2. भूली बिसरी यादें, अब हुई पुरानी बातें।

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