दुनिया के साथ-साथ देश के ‘साइबर-स्पेस’ में भी काफी भीड़ है। हिन्दी की दुनिया में भी है ही। हम ये कहने बिलकुल नहीं जा रहे कि हम इस भीड़ से अलग और कुछ बेहतर करने जा रहे हैं। हम सिर्फ इतना कहेंगे कि हम कुछ अपना करने जा रहे हैं और उस अपनी बात कहने के लिए हमें कोई प्लैटफ़ार्म, कोई मंच चाहिए था। दूसरों के द्वारा बनाए गए प्लैटफ़ार्म भी इस्तेमाल करने का विकल्प मित्रों ने सुझाया था लेकिन वो ऐसे मित्र थे जिन्हें हमारी योग्यता में और दूसरे प्लैटफ़ार्म चलाने वालों की उदारता पर ज़्यादा भरोसा था। हमें इन दोनों बातों में उतना भरोसा ना था। ?
सच कहें तो हमें लगा कि दूसरे लोग भी हमारी बात को शायद अपने यहाँ आसानी से ना लेना चाहें। आखिर कौन हैं हम जिन्हें लोग निस्संकोच जगह दें। मीडिया की दुनिया में दशकों तक रहने के बावजूद अब तक की जिम्मेवारियाँ अलग प्रकार की थीं और उन जिम्मेवारियों के चलते अपनी बात स्वतन्त्रता से कहने का अवसर नहीं था। आप जानते ही हैं कि सरकार में रह कर पत्रकारिता कुछ इसी तरह की होती है। चाहे आप रेडियो के समाचार प्रभाग में हों या पत्र सूचना कार्यालय में, और या फिर प्रकाशन विभाग या अन्य किसी मीडिया यूनिट में – सभी जगह आप अपनी योग्यतानुसार हिस्सेदारी तो करते हैं किन्तु वो एक दिये गए फ्रेमवर्क में ही हो सकती है। उसमें कोई गलती भी नहीं क्योंकि आपने सोच-समझ ही अपना प्रॉफ़ेशन चुना था। कुल मिलाकर ये कि कभी ऐसी स्थिति ही नहीं बनी कि अपना कोई नाम इस रूप में जानता कि चलो भाई ये भी कुछ कहना चाहे तो उसे पब्लिक-स्पेस में जगह दे दो। ऐसी स्थिति में अपना ही मंच बनाना आसान विकल्प लगा और शुरू से आदत रही है कि हम आसान विकल्प ही चुनते हैं।
एक और बात भी थी – ये सिर्फ अपनी बात कहने का मंच नहीं है। हम इस मंच को एक चौपाल, एक चौक की तरह इस्तेमाल करना चाहते हैं जहां सभी तरह की बातें खुल कर लोग कहें। इस अंदाज़ में कहें कि उससे आगे का संवाद बने, रास्ता निकले। तो ये ऐसे सब दोस्तों की बातों को भी प्रकाशित करने की जगह है जिनकी बात चाहे हमसे अलग विचार की हो किन्तु संवाद बनाने की नियत से की जा रही हो, बात थोपने की नियत से नहीं तो हम उन बातों की कदर करेंगे। हम ऐसे दोस्तों से, जानकारों से स्वयं संपर्क साधेंगे और उनसे अनुरोध करेंगे कि वह हमारे इस मंच पर आयें।
इस वैबसाइट को हम सिर्फ हिन्दी तक सीमित नहीं रखना चाहते। आदर्श स्थिति तो ये हो कि ये एक बहुभाषी मंच बने लेकिन चूंकि अपनी ऐसी कोई हैसियत नहीं रही कि कई भाषाओं के जानकार वॉलंटियर के रूप में हमारे साथ जुडते, इसलिए फिलहाल ये मुख्यत: हिन्दी और ज़्यादा से ज़्यादा इंगलिश में (यदि कोई अच्छा कंटैंट उपलब्ध हुआ तो) रहेगी। संसाधनों के बारे में बता दें कि इस वैबसाइट को बिना किसी पूंजी लगाए शुरू किया जा रहा है। इसलिए बहुत सारी सीमाओं में काम शुरू करने जा रहे हैं। आपकी शुभ कामनाएँ होंगी तो हम इस मंच को सार्वजनिक स्पेस में बनाए रखना चाहेंगे ताकि समाज में संवाद चलाये रखने की जो परंपरा है, उसमें हमारी भी भागीदारी हो।