बजट पर लिखने की रस्म-पूर्ति

आज की बात

कल बजट पेश होने के बाद से लेकर अभी यह लिखे जाने तक इस स्तंभकार ने दर्जनों विशेषज्ञों के विचार पढ़े और ये प्रयास किया कि इसी बहाने देश की अर्थव्यवस्था की हालत का मोटा-मोटी अनुमान हो जाएगा।

लेकिन जितना ज़्यादा पढ़ा, लगा कि देश की अर्थव्यवस्था के हालात के बारे में जानना उतना ही मुश्किल है। ये समझने की कोशिश करते हुए सबसे पहली बात तो ये समझ आई कि पीयूष गोयल जी ने बजट में चुनावी गणित का तो बहुत ज़्यादा ध्यान रखा है किन्तु हमारे अन्तरिम वित्तमंत्री बजट के गणित में कहीं लड़खड़ा गए लगते हैं।

पीयूष गोयल ने अपने बजट को अन्तरिम बजट तो कहा जिसका अर्थ ये होना चाहिए था कि फिलहाल कुछ महीने काम चलाने के लिए ‘वोट ऑन अकाउंट’ पास हो जाता किन्तु बजट में जो नीतिगत फैसले लिए जाते हैं, उन्हें नई सरकार के लिए छोड़ा जाता। लेकिन इस बजट में अन्तरिम जैसी कोई बात दिखी नहीं बल्कि पीयूष गोयल ने अपने भाषण में कई बार 2030 तक भी बातें की।

इस आलेख में हम कुछ ऐसे बिन्दुओं पर बात कर लेते हैं जो थोड़े विवादग्रस्त रहे।

आर्थिक विषयों के एक वरिष्ठ पत्रकार और लेखक शंकर अय्यर ने अपने एक ट्वीट में कहा कि (बजट में दिये आय-व्यय के ब्यौरे के अनुसार) सरकार प्रतिदिन 7627 करोड़ रुपए खर्च करेगी लेकिन उसके पास प्रतिदिन आएगा केवल 5418.33 करोड़ रुपया। इसका मतलब उसे हर रोज़ 1928.76 करोड़ रुपया उधार लेना होगा। इसका अर्थव्यवस्था पर कैसा असर होगा, अनुमान लगाया जा सकता है।

फिर एक अर्थशास्त्री असित रंजन मिश्रा ने मिंट अखबार के अपने लेख में कहा कि बजट में आय के कुछ अनुमान वास्तविकता से परे हैं। उदाहरण के लिए बजट में विनिवेश या disinvestment के लिए 90 हज़ार करोड़ का अनुमान रखा गया है जबकि इस वर्ष में अब तक केवल 35 हज़ार करोड़ का विनिवेश हुआ है जबकि लक्ष्य 80 करोड़ के विनिवेश का था।

इसी तरह जीएसटी से होने वाली आय में 18% वृद्धि का अनुमान किया गया है जबकि इस वर्ष इसका ‘कलेक्शन’ उम्मीद से कहीं कम हुआ। इससे करों से होने वाली कुल आय में 14.9% की वृद्धि का अनुमान किया गया है जो यह देखते हुए बहुत ज़्यादा है कि इसी अवधि के लिए जीडीपी वृद्धि दर 11.5% अनुमान की गई है। इस तरह के अतिशयोक्ति वाले अनुमान नई सरकार को (चाहे वो भाजपा सरकार ही क्यों ना हो) काफी पशोपेश में डाल देगी।

बजट की एक अन्य बहुचर्चित घोषणा थी दो हेक्टेयर से कम भूमि रखने वाले किसानों को साल भर में तीन किश्तों में छ्ह हज़ार रुपए (यानि पाँच सौ रुपए प्रति माह) मिलेंगे। इस आलोचना के अलावा कि किसान की हालत देखते हुए ये बिलकुल नाकाफी रकम है, सबसे ठोस आलोचना ये सामने आई है सरकार के भूमि के रेकॉर्ड तो इतने खराब हैं कि ये उसके पास फिलहाल ये पता लगाने का कोई भरोसेमंद तरीका नहीं है कि दो हेक्टेयर से कम भूमि वाले कौनसे किसान हैं। फिर इस बार चुनावों से पहले आखिर ये 20 हज़ार करोड़ रुपए किन किसानों में बाँट दिये जाएँगे। यहाँ ये याद दिला दें कि बजट में 6000 रुपए का प्रावधान पीछे से यानि retrospectively किया गया है और ये 1 दिसम्बर 2018 की तिमाही से मिलेंगे।

अभी ऊपर वाला अनुच्छेद लिखते समय सोचा कि एक बार देख लें कि सही जानकारी ही उद्धृत की है ना, तो स्वराज पार्टी के अध्यक्ष योगेंद्र यादव का एक ट्वीट सामने आया जिसमें उन्होंने बताया है कि जहां वित्तमंत्री ने अपने  भाषण में 2 हेक्टेयर से कम जोत वाले किसानों के लिए छ्ह हज़ार का प्रावधान बताया, वहीं बजट पेपर्स में कहा गया है कि ये खेती योग्य ज़मीन रखने वाले सभी किसानों के लिए है। तो कौनसी बात सही मानी जाए?

ऐसा लगता है कि राहुल गांधी द्वारा न्यूनतम आय गारंटी की योजना को अपने घोषणा-पत्र में रखने की बात से हरकत में आई सरकार ने अंतिम समय पर किसानों के लिए ये प्रावधान किया होगा और इसलिए बजट पेपर्ज़ और भाषण में ये फर्क आ गया होगा!

वित्तमंत्री ने जिस चीज़ पर सबसे ज़्यादा वाह-वाही लूटी और जिसको उन्होंने अपने भाषण के अंत के लिए बचा रखा था, यानि पाँच लाख रुपए तक की आय को पूर्णत: आयकर मुक्त रखा जाएगा, यह घोषणा भी कुछ देर तक भ्रम फैलाती रही। धीरे धीरे पता चला कि इसकी अनुपालना तो नई सरकार चुने जाने के बाद ही लागू होगी। कारण ये कि नई सरकार ही वित्त बिल या finance Bill पास करवाएगी, तभी ये निर्णय लागू होगा।

हमारा उद्देश्य इस आलेख में सभी तरह की आलोचनाओं को शामिल करना नहीं है और ना ही वो हमारे लिए संभव है। हमने केवल दो-तीन ऐसे बिन्दुओं को उठाने का प्रयास किया है जो हमें लगा कि अपने मूल रूप में ही कहीं गड़बड़ हैं। जैसे बजट का गणित खराब होना, व्यहार्य से ज़्यादा आय का अनुमान लगाना या किसानों को नकद सहायता पहुँचाने की योजना में बाधाएँ इत्यादि।

इसी तरह के एक और बिन्दु की तरफ आपका ध्यान दिलाना चाहते हैं। वह बिन्दु है रक्षा बजट में “अभूतपूर्व वृद्धि” का! भाजपा के आई टी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने ट्वीट कर कहा कि रक्षा बजट 3 लाख करोड़ कर दिया गया तो अभी तक का सबसे ज़्यादा है! इस पर उन्होने कुछ तंज भी कसा। उनके ट्वीट को निशाना बनाते हुए रक्षा विशेषज्ञ सुशांत सरीन ने अपने ट्वीट में लिखा कि असल में इस बार का बजट 1962 से भी कम है क्योंकि ऐसी सभी तुलनाएं जीडीपी के प्रतिशत के रूप में होती हैं।

सरीन ने  ये भी लिखा कि ऐसे ही अगर बजट कट होते रहे तो हम चीन और पाकिस्तान दो दुश्मनों से तो क्या, खाली पाकिस्तान से भी निपट लेंगे तो बड़ी बात होगी। यहाँ ये भी ज़िक्र किया जा सकता है कि सुशांत सरीन आम तौर पर hawk माने जाते हैं और सुरक्षा संबंधी मामलों पर अक्सर सरकार के पक्ष में दिखते हैं।

और अंत में एक बहुत ही सुंदर लेख का ज़िक्र जो पीयूष गोयल द्वारा अपने बजट भाषण में इस्तेमाल की गई कविता की पंक्ति पर आधारित है। “एक पाँव रखता हूँ, सौ रहें फूटती हैं” – आपको शायद याद होगा कि वित्तमंत्री ने ये पंक्ति तो पढ़ी अपने भाषण में अपने लिए जोड़ ली किन्तु वो कवि का नाम नहीं लेना चाहते होंगे। वरिष्ठ पत्रकार प्रियदर्शन ने सिर्फ इस विषय पर लेख लिखा और निसंकोच कहा कि “ना तो मुक्तिबोध ने, जिनकी ये कविता थी, कभी छुपाया कि वे एक खास राजनीतिक चेतना के कवि हैं और न बीजेपी ने यह जताने में कोई शर्मिंदगी महसूस की कि वह इस विचारधारा से नफरत करती है.” आप चाहें लिंक प्रियदर्शन को क्लिक करके उनका ये लेख पूरा पढ़ सकते हैं। 

हमारी वैबसाइट के पास संसाधनों की कमी के चलते हम किसी अर्थशास्त्री से तो बजट का विश्लेषण नहीं करवा सकते थे। इसलिए प्रतिक्रियाएँ पढ़ते हुए जो बातें ज़िक्र करने लायक लगीं, उन्हें हम आपके संज्ञान में लाकर मुक्त होते हैं। इस तरह बजट पर लिखने की ये रस्मपूर्ति भी हो गई।

विद्या भूषण अरोरा

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